महाभारतम्-01-आदिपर्व-176
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भिक्षाटनार्थं गतानां युधिष्ठिरादीनां गृहं प्रत्यागमनम्।। 1 ।।
भीमो बकं प्रति प्रेष्यत इति ज्ञातवतो युधिष्ठिरस्य संतापः।। 2 ।।
भीमसेनप्रभावकथनेन कुन्त्या कृतं युधिष्ठिराश्वासनम्।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-176-1x |
करिष्य इति भीमेन प्रतिज्ञातेऽथ भारत। आजग्मुस्ते ततः सर्वे भैक्षमादाय पाण्डवाः।। | 1-176-1a 1-176-1b |
`भीमसेनं ततो दृष्ट्वा आपूर्णवदनं तथा। बुबोध धर्मराजस्तु हृषितं भीममच्युतम्।। | 1-176-2a 1-176-2b |
तोषस्य कारणं यत्तु मनसाऽचिन्तयद्गुरुः। स समीक्ष्य तदा राजन्योद्धुकामं युधिष्ठिरः।।' | 1-176-3a 1-176-3b |
आकारेणैव तं ज्ञात्वा पाण्डुपुत्रो युधिष्ठिरः। रहः समुपविश्यैकस्ततः पप्रच्छ मातरम्।। | 1-176-4a 1-176-4b |
किं चिकीर्षत्ययं कर्म भीमो भमपराक्रमः। भवत्यनुमते कच्चित्स्वयं वा कर्तुमिच्छति।। | 1-176-5a 1-176-5b |
कुन्त्युवाच। | 1-176-6x |
ममैव वचनादेष करिष्यति परन्तपः। ब्राह्मणार्थे महत्कृत्यं मोक्षाय नगरस्य च।। | 1-176-6a 1-176-6b |
`बकाय कल्पितं पुत्र महान्तं बलिमुत्तमम्। भीमो भुनक्तु सुस्पष्टमप्येकाहं तपःसुतः।।' | 1-176-7a 1-176-7b |
युधिष्ठिर उवाच। | 1-176-8x |
किमिदं साहसं तीक्ष्णं भवत्या दुष्करं कृतम्। परित्यागं हि पुत्रस्य न प्रशंसन्ति साधवः।। | 1-176-8a 1-176-8b |
कथं परसुतस्यार्थे स्वसुतं त्यक्तुमिच्छसि। लोकवेदविरुद्धं हि पुत्रत्यागात्कृतं त्वया।। | 1-176-9a 1-176-9b |
यस्य बाहू समाश्रित्य सुखं सर्वे शयामहे। राज्यं चापहृतं क्षुद्रैराजिहीर्षामहे पुनः।। | 1-176-10a 1-176-10b |
यस्य दुर्योधनो वीर्यं चिन्तयन्नमितौजसः। न शेते रजनीः सर्वा दुःखाच्छकुनिना सह।। | 1-176-11a 1-176-11b |
यस्य वीरस्य वीर्येण मुक्ता जतुगृहाद्वयम्। अन्येभ्यश्चैव पापेभ्यो निहतश्च पुरोचनः।। | 1-176-12a 1-176-12b |
यस्य वीर्यं समाश्रित्य वसुपूर्णां वसुन्धराम्। इमां मन्यामहे प्राप्तां निहत्य धृतराष्ट्रजान्।। | 1-176-13a 1-176-13b |
तस्य व्यवसितस्त्यागो बुद्धिमास्थाय कां त्वया। कच्चिन्नु दुःखैर्बुद्धिस्ते विलुप्ता गतचेतसः।। | 1-176-14a 1-176-14b |
कुन्त्युवाच। | 1-176-15x |
युधिष्ठिर न संतापस्त्वया कार्यो वृकोदरे। न चायं बुद्धिदौर्बल्याद्व्यवसायः कृतो मया।। | 1-176-15a 1-176-15b |
`न च शोकेन बुद्धिः सा विलुप्ता गतचेकसः।' इह विप्रस्य भवने वयं पुत्र सुखोषिताः। अज्ञाता धार्तराष्ट्राणां सत्कृता वीतमन्यवः।। | 1-176-16a 1-176-16b 1-176-16c |
तस्य प्रतिक्रिया पार्थ मयेयं प्रसमीक्षिता। एतावानेव पुरुषः कृतं यस्मिन्न नश्यति।। | 1-176-17a 1-176-17b |
यावच्च कुर्यादन्योऽस्य कुर्याद्बहुगुमं ततः। `ब्राह्मणार्थे महान्धर्मो जानामीत्थं वृकोदरे।।' | 1-176-18a 1-176-18b |
दृष्ट्वा भीमस्य विक्रान्तं तदा जतुगृहे महत्। हिडिम्बस्य वधाच्चैवं विश्वासो मे वृकोदरे।। | 1-176-19a 1-176-19b |
बाह्वोर्बलं हि भीमस्य नागायुतसमं महत्। येन यूयं गजप्रख्या निर्व्यूढा वारणावतात्।। | 1-176-20a 1-176-20b |
वृकोदरेण सदृशो बलेनान्यो न विद्यते। यो व्यतीयाद्युधि श्रेष्ठमपि वज्रधरं स्वयम्।। | 1-176-21a 1-176-21b |
जातमात्रः पुरा चैव ममाङ्कात्पतितो गिरौ। शरीरगौरवादस्य शिला गात्रैर्विचूर्णिता।। | 1-176-22a 1-176-22b |
तदहं प्रज्ञया ज्ञात्वा बलं भीमस्य पाण्डव। प्रतिकार्ये च विप्रस्य ततः कृतवती मतिम्।। | 1-176-23a 1-176-23b |
नेदं लोभान्न चाज्ञानान्न च मोहाद्विनिश्चितम्। बुद्धिपूर्वं तु धर्मस्य व्यवसायः कृतो मया।। | 1-176-24a 1-176-24b |
अर्थौ द्वावपि निष्पन्नौ युधिष्ठिर भविष्यतः। प्रतीकारश्च वासस्य धर्मश्च चरितो महान्।। | 1-176-25a 1-176-25b |
यो ब्राह्मणस्य साहाय्यं कुर्यादर्थेषु कर्हिचित्। क्षत्रियः स शुभाँल्लोकानाप्नुयादिति मे मतिः।। | 1-176-26a 1-176-26b |
क्षत्रियस्यैव कुर्वाणः क्षत्रियो वधमोक्षणम्। विपुलां कीर्तिमाप्नोति लोकेऽस्मिंश्च परत्र च।। | 1-176-27a 1-176-27b |
वैश्यस्यार्थे च साहाय्यं कुर्वाणः क्षत्रियो भुवि। स सर्वेष्वपि लोकेषु प्रजा रञ्जयते ध्रुवम्।। | 1-176-28a 1-176-28b |
शूद्रं तु मोचयेद्राजा शरणार्थिनमागतम्। प्राप्नोतीह कुले जन्म सद्द्रव्ये राजपूजिते।। | 1-176-29a 1-176-29b |
एवं मां भगवान्व्यासः पुरा पौरवनन्दन। प्रोवाचासुकरप्रज्ञस्तस्मादेवं चिकीर्षितम्।। | 1-176-30a 1-176-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि बकवधपर्वणि षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 176 ।। |
1-176-6 मोक्षाय बकभयादिति शेषः।। 1-176-25 प्रतीकारः प्रत्युपकारः।। षट्सप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 176 ।।
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