महाभारतम्-01-आदिपर्व-015
दिखावट
← आदिपर्व-014 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-015 वेदव्यासः |
आदिपर्व-016 → |
आस्तीकोत्पत्तिः।। 1 ।। संक्षेपेण सर्पमोचनवृत्तान्तश्च।। 2 ।।
सौतिरुवाच। | 1-15-1x |
मात्रा हि भुजगाः शप्ताः पूर्वं ब्रह्मविदां वर। जनमेजयस्य वो यज्ञे धक्ष्यत्यनिलसारथिः।। | 1-15-1a 1-15-1b |
तस्य शापस्य शान्त्यर्थं प्रददौ पन्नगोत्तमः। स्वसारमृषये तस्मै सुव्रताय महात्मने।। | 1-15-2a 1-15-2b |
स च तां प्रतिजग्राह विधिदृष्टेन कर्मणा। आस्तीको नाम पुत्रश्च तस्यां जज्ञे महामनाः।। | 1-15-3a 1-15-3b |
तपस्वी च महात्मा च वेदवेदाङ्गपारगः। समः सर्वस्य लोकस्य पितृमातृभयापहः।। | 1-15-4a 1-15-4b |
अथ दीर्घस्य कालस्य पाण्डवेयो नराधिपः। आजहार महायज्ञं सर्पसत्रमिति श्रुतिः।। | 1-15-5a 1-15-5b |
तस्मिन्प्रवृत्ते सत्रे तु सर्पाणामन्तकाय वै। मोचयामास ताञ्शापादास्तीकः सुमहातपाः।। | 1-15-6a 1-15-6b |
भ्रातॄंश्च मातुलांश्चैव तथैवान्यान्स पन्नगान्। पितॄंश्च तारयामास संतत्या तपसा तथा।। | 1-15-7a 1-15-7b |
व्रतैश्च विविधैर्ब्रह्मन्स्वाध्यायैश्चानृणोऽभवत्। देवांश्च तर्पयामास यज्ञैर्विविधदक्षिणैः।। | 1-15-8a 1-15-8b |
ऋषींश्च ब्रह्मचर्येम सन्तत्या च पितामहान्। अपहृत्य गुरं भारं पितॄणां संशितव्रतः।। | 1-15-9a 1-15-9b |
जरत्कारुर्गतः स्वर्गं सहितः स्वैः पितामहैः। आस्तीकं च सुतं प्राप्य धर्मं चानुत्तमं मुनिः।। | 1-15-10a 1-15-10b |
जरत्कारुः सुमहता कालेन स्वर्गमेयिवान्। एतदाख्यानमास्तीकं यथावत्कथितं मया। प्रब्रूहि भृगुशार्दूल किमन्यत्कथयामि ते।। | 1-15-11a 1-15-11b 1-15-11c |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। |
आदिपर्व-014 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-016 |