महाभारतम्-01-आदिपर्व-057
दिखावट
← आदिपर्व-056 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-057 वेदव्यासः |
आदिपर्व-058 → |
सर्पसत्रे हतानां नागानां नामकथनम्।। 1 ।
शौनक उवाच। | 1-57-1x |
ये सर्पाः सर्पसत्रेऽस्मिन्पतिता हव्यवाहने। तेषां नामानि सर्वेषां श्रोतुमिच्छामि सूतज।। | 1-57-1a 1-57-1b |
सौतिरुवाच। | 1-57-2x |
सहस्राणि बहून्यस्मिन्प्रयुतान्यर्बुदानि च। न शक्यं परिसंख्यातुं बहुत्वाद्द्विजसत्तम।। | 1-57-2a 1-57-2b |
यथास्मृति तु नामानि पन्नगानां निबोध मे। उच्यमानानि मुख्यानां हुतानां जातवेदसि।। | 1-57-3a 1-57-3b |
वासुकेः कुलजातांस्तु प्राधान्येन निबोध मे। नीलरक्तान्सितान्घोरान्महाकायान्विषोल्बणान्।। | 1-57-4a 1-57-4b |
अवशान्मातृवाग्दण्डपीडितान्कृपणान्हूतान्। कोटिशो मानसः पूर्णः शलः पालो हलीमकः।। | 1-57-5a 1-57-5b |
पिच्छलः कौणपश्चक्रः कालवेगः प्रकालनः। हिरण्यबाहुः शरणः कक्षकः कालदन्तकः।। | 1-57-6a 1-57-6b |
एते वासुकिजा नागाः प्रविष्टा हव्यवाहने। अन्ये च बहवो विप्र तथा वै कुलसंभवाः। प्रदीप्ताग्नौ हुताःसर्वे घोररूपा महाबलाः।। | 1-57-7a 1-57-7b 1-57-7c |
तक्षकस्य कुले जातान्प्रवक्ष्यामि निबोध तान्। पुच्छाण्डको मण्डलकः पिण्डसेक्ता रभेणकः।। | 1-57-8a 1-57-8b |
उच्छिखः शरभो भङ्गो बिल्वतेजा विरोहणः। शिली शलकरो मूकः सुकुमारः प्रवेपनः।। | 1-57-9a 1-57-9b |
मुद्गरः शिशुरोमा च सुरोमा च महाहनुः। एते तक्षकजा नागाः प्रविष्टा हव्यवाहनम्।। | 1-57-10a 1-57-10b |
पारावतः पारियात्रः पाण्डरो हरिणः कृशः। विहङ्गः शरभो मोदः प्रमोदः संहतापनः।। | 1-57-11a 1-57-11b |
ऐरावतकुलादेते प्रविष्टा हव्यवाहनम्। कौरव्यकुलजान्नागाञ्शृणु मे त्वं द्विजोत्तम।। | 1-57-12a 1-57-12b |
एरकः कुण्डलो वेणी वेणीस्कन्धः कुमारकः। बाहुकः शृङ्गबेरश्च धूर्तकः प्रातरातकौ।। | 1-57-13a 1-57-13b |
कौरव्यकुलजास्त्वेते प्रविष्टा हव्यवाहनम्। धृतराष्ट्रकुले जाताञ्शृणु नागान्यथातथम्।। | 1-57-14a 1-57-14b |
कीर्त्यमानान्मया ब्रह्मन्वातवेगान्विषोल्बणान्। शङ्कुकर्णः पिठरकः कुठारमुखसेचकौ।। | 1-57-15a 1-57-15b |
पूर्णाङ्गदः पूर्णमुखः प्रहासः शकुनिर्दरिः। अमाहठः कामठकः सुषेणो मानसोऽव्ययः।। | 1-57-16a 1-57-16b |
`अष्टावक्रः कोमलकः श्वसनो मौनवेपगः।' भैरवो मुण्डवेदाङ्गः पिशङ्गश्चोदपारकः। ऋषभो वेगवान्नागः पिण्डारकमहाहनू।। | 1-57-17a 1-57-17b 1-57-17c |
रक्ताङ्गः सर्वसारङ्गः समृद्धपटवासकौ। वराहको वीरणकः सुचित्रश्चित्रवेगिकः।। | 1-57-18a 1-57-18b |
पराशरस्तरुणको मणिः स्कन्धस्तथाऽऽरुणिः। इति नागा मया ब्रह्मन्कीर्तिताः कीर्तिवर्धनाः।। | 1-57-19a 1-57-19b |
प्राधान्येन बहुत्वात्तु न सर्वे परिकीर्तिताः। एतेषां प्रसवो यश्च प्रसवस्य च सन्ततिः।। | 1-57-20a 1-57-20b |
न शक्यं परिसंख्यातुं ये दीप्तं पावकं गताः। `द्विशीर्षाः पञ्चशीर्षाश्च सप्तशीर्षास्तथाऽपरे। दशशीर्षाः शतशीर्षास्तथान्ये बहुशीर्षकाः'।। | 1-57-21a 1-57-21b 1-57-21c |
कालानलविषा घोरा हुताः शतसहस्रशः। महाकाया महावेगाः शैलशृङ्गसमुच्छ्रयाः।। | 1-57-22a 1-57-22b |
योजनायामविस्तारा द्वियोजनसमायताः। कामरूपाः कामबला दीप्तानलविषोल्बणाः।। | 1-57-23a 1-57-23b |
दग्धास्तत्र महासत्रे ब्रह्मदण्डनिपाडिताः।। | 1-57-24a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सप्तपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 57 ।। |
1-57-23 योजनायमविस्तारा अपि मन्त्रसामर्थ्यात्स्वल्पप्रमाणाः अगस्त्यकरगतसमुद्रवद्वह्नौ प्रवेशयोग्या भवन्ति।। सप्तपञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 57 ।।
आदिपर्व-056 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-058 |