महाभारतम्-01-आदिपर्व-136
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पाण्डोरस्थिसंस्काराद्यन्त्येष्टिविधिः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 1-136-1x |
पाण्डोर्विदुर सर्वाणि प्रेतकार्याणि कारय। राजवद्राजसिंहस्य माद्र्याश्चैव विशेषतः।। | 1-136-1a 1-136-1b |
पशून्वासांसि रत्नानि धनानि विविधानि च। पाण्डोः प्रयच्छ माद्र्याश्च येभ्यो यावच्च वाञ्छितम्।। | 1-136-2a 1-136-2b |
यथा च कुन्ती सत्कारं कुर्यान्माद्र्यास्तथा कुरु। यथा न वायुर्नादित्यः पश्येतां तां सुसंवृताम्।। | 1-136-3a 1-136-3b |
न शोच्यः पाण्डुरनघः प्रशस्यः स नराधिपः। यस्य पञ्च सुता वीरा जाताः सुरसुतोपमाः।। | 1-136-4a 1-136-4b |
वैशंपायन उवाच। | 1-136-5x |
विदुरस्तं तथेत्युक्त्वा भीष्मेण सह भारत। पाण्डुं संस्कारयामास देशे परमपूजिते।। | 1-136-5a 1-136-5b |
ततस्तु नगरात्तूर्णमाज्यगन्धपुरस्कृताः। निर्हृताः पावका दीप्ताः पाण्डो राजन्पुरोहितैः।। | 1-136-6a 1-136-6b |
अथैनामार्तवैः पुष्पैर्गन्धैश्च विविधैर्वरैः। शिबिकां तामलङ्कृत्य वाससाऽऽच्छाद्य सर्वशः।। | 1-136-7a 1-136-7b |
तां तथा शोभितां माल्यैर्वासोभिश्च महाधनैः। अमात्या ज्ञातयश्चैनं सुहृदश्चोपतस्थिरे।। | 1-136-8a 1-136-8b |
नृसिंहं नरयुक्तेन परमालङ्कृतेन तम्। अवहन् यानमुख्येन सह माद्र्या सुसंवृतम्।। | 1-136-9a 1-136-9b |
पाण्डुरेणातपत्रेण चामरव्यजनेन च। सर्ववादित्रनादैश्च समलञ्चक्रिरे ततः।। | 1-136-10a 1-136-10b |
रत्नानि चाप्युपादाय बहूनि शतशो नराः। प्रददुः काङ्क्षमाणेभ्यः पाण्डोस्तस्यौर्ध्वदेहिके।। | 1-136-11a 1-136-11b |
अथ च्छत्राणि शुभ्राणि चामराणि बृहन्ति च। आजह्रुः कौरवस्यार्थे वासांसि रुचिराणि च।। | 1-136-12a 1-136-12b |
याजकैः शुक्लवासोभिर्हूयमाना हुताशनाः। अगच्छन्नग्रतस्तस्य दीप्यमानाः स्वलङ्कृताः।। | 1-136-13a 1-136-13b |
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैव सहस्रशः। रुदन्तः शोकसंतप्ता अनुजग्मुर्नराधिपम्।। | 1-136-14a 1-136-14b |
अयमस्मानपाहाय दुःखे चाधाय शाश्वते। कृत्वा चास्माननाथांश्च क्व यास्यति नराधिपः।। | 1-136-15a 1-136-15b |
क्रोशन्तः पाण्डवाः सर्वे भीष्मो विदुर एव च। `बाह्लीकः सोमदत्तश्च तथा भूरिश्रवा नृपः।। | 1-136-16a 1-136-16b |
अन्योन्यं वै समाश्लिष्य अनुजग्मुः सहस्रशः।' रमणीये वनोद्देशे गङ्गातीरे समे शुभे।। | 1-136-17a 1-136-17b |
न्यासयामासुरथं तां शिबिकां सत्यवादिनः। सभार्यस्य नृसिंहस्य पाण्डोरक्लिष्टकर्मणः।। | 1-136-18a 1-136-18b |
ततस्तस्य शरीरं तु सर्वगन्धाधिवासितम्। शुचिकालीयकादिग्धं दिव्यचन्दनरूषितम्।। | 1-136-19a 1-136-19b |
पर्यषिञ्चञ्जलेनाशु शातकुम्भमयैर्घटैः। चन्दनेन च शुक्लेन सर्वतः समलेपयन्।। | 1-136-20a 1-136-20b |
कालागुरुविमिश्रेण तथा तुङ्गरसेन च। अथैनं देशजैः शुक्लैर्वासोभिः समयोजयन्।। | 1-136-21a 1-136-21b |
संछन्नः स तु वासोभिर्जीवन्निव नराधिपः। शुशुभे स नव्याघ्रो महार्हशयनोचितः।। | 1-136-22a 1-136-22b |
`हयमेधाग्निना सर्वे याजकाः सपुरोहिताः। वेदोक्तेन विधानेन क्रियांचक्रुः समन्त्रकम्।।' | 1-136-23a 1-136-23b |
याजकैरभ्यनुज्ञाते प्रेतकर्मण्यनिष्ठिते। घृतावसिक्तं राजानं सह माद्र्या स्वलङ्कृतम्।। | 1-136-24a 1-136-24b |
तुङ्गपद्मकमिश्रेण चन्दनेन सुगन्धिना। `सरलं देवदारुं च गुग्गुलं लाक्षया सह।। | 1-136-25a 1-136-25b |
हरिचन्दनकाष्ठैश्च हरिबेरैरुशीरकैः।' अन्यैश्च विविधैर्गन्धैर्विधिना समदाहयन्।। | 1-136-26a 1-136-26b |
ततस्तयोः शरीरे द्वे दृष्ट्वा मोहवशं गता। हाहा पुत्रेति कौसल्या पपात सहसा भुवि।। | 1-136-27a 1-136-27b |
तां प्रेक्ष्य पतितामार्तां पौरजानपदो जनः। रुरोद दुःखसंतप्तो राजभक्त्या कृपाऽन्वितः।। | 1-136-28a 1-136-28b |
कुन्त्याश्चैवार्तनादेन सर्वाणि च विचुक्रुशुः। मानुषैः सह भूतानि तिर्यग्योनिगतान्यपि।। | 1-136-29a 1-136-29b |
तथा भीष्मः शान्तनवो विदुरश्च महामतिः। सर्वशः कौरवाश्चैव प्राणदन्भृशदुःखिताः।। | 1-136-30a 1-136-30b |
ततो भीष्मोऽथ विदुरो राजा च सह पाण्डवैः। उदकं चक्रिरे तस्य सर्वाश्च कुरुयोषितः।। | 1-136-31a 1-136-31b |
चुक्रुशुः पाण्डवाः सर्वे भीष्मः शान्तनवस्तथा। विदुरो ज्ञातयश्चैव चक्रुश्चाप्युदकक्रियाः।। | 1-136-32a 1-136-32b |
कृतोदकांस्तानादाय पाण्डवाञ्छोककर्शितान्। सर्वाः प्रकृतयो राजञ्शोचमाना न्यवारयन्।। | 1-136-33a 1-136-33b |
यथैव पाण्डवा भूमौ सुषुपुः सह बान्धवैः। तथैव नागरा राजञ्शिश्यिरे ब्राह्मणादयः।। | 1-136-34a 1-136-34b |
तद्गतानन्दमस्वस्थमाकुमारमहृष्टवत्। बभूव पाण्डवैः सार्धं नगरं द्वादश क्षपाः।। | 1-136-35a 1-136-35b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 136 ।। |
1-136-19 कालीयकादिग्धं कृष्णागुरुलिप्तम्।। 1-136-25 तुङ्गपद्मकौ गन्धद्रव्यविशेषौ।। षट्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 136 ।।
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