महाभारतम्-01-आदिपर्व-207
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पाण्डवावासे धृष्टद्युम्नस्य निलीयावस्थानम्।। 1 ।।
भीमाद्यानीतस्य भैक्षस्य कुन्त्याज्ञया द्रौपद्या परिवेषणम्।। 2 ।।
सर्वं पाण्डववृत्तान्तं ज्ञात्वा धृष्टद्युम्नस्य प्रतिनिवर्तनम्।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-207-1x |
धृष्टद्युमनस्तु पाञ्चाल्यः पृष्ठतः कुरुनन्दनौ। अन्वगच्छत्तदा यान्तौ भार्गवस्य निवेशने।। | 1-207-1a 1-207-1b |
सोज्ञायमानः पुरुषानवधाय समन्ततः। स्वयमारान्निलीनोऽभूद्भार्गवस्य निवेशने।। | 1-207-2a 1-207-2b |
सायं च भीमस्तु रिपुप्रमाथी जिष्णुर्यमौ चापि महानुभावौ। भैक्षं चरित्वा तु युधिष्ठिराय निवेदयांचक्रुरदीनसत्वाः।। | 1-207-3a 1-207-3b 1-207-3c 1-207-3d |
ततस्तु कुन्ती द्रुपदात्मजां ता- मुवाच काले वचनं वदान्या। ततोऽग्रमादाय कुरुष्व भद्रे बलिं च विप्राय च देहि भिक्षाम्।। | 1-207-4a 1-207-4b 1-207-4c 1-207-4d |
ये चान्नमिच्छन्ति ददस्व तेभ्यः परिश्रिता ये परितो मनुष्याः। ततश्च शेषं प्रविभज्य शीघ्र- मर्धं चतुर्णां मम चात्मनश्च।। | 1-207-5a 1-207-5b 1-207-5c 1-207-5d |
अर्धं तु भीमाय च देहि भद्रे य एष नागर्षभतुल्यरूपः। गौरो युवा संहननोपपन्न एषो हि वीरो बहुभुक् सदैव।। | 1-207-6a 1-207-6b 1-207-6c 1-207-6d |
सा हृष्टरूपैव तु राजपुत्री तस्या वचः साध्वविशङ्कमाना। यथावदुक्तं प्रचकार साध्वी ते चापि सर्वे बुभुजुस्तदन्नम्।। | 1-207-7a 1-207-7b 1-207-7c 1-207-7d |
कुशैस्तु भूमौ शयनं चकार माद्रीपुत्रः सहदेवस्तपस्वी। अथात्मकीयान्यजिनानि सर्वे संस्तीर्य वीराः सुषुपुर्धरण्याम्।। | 1-207-8a 1-207-8b 1-207-8c 1-207-8d |
अगस्त्यकान्तामभितो दिशं तु शिरांसि तेषां कुरुसत्तमानाम्। कुन्ती पुरस्तात्तु बभूव तेषां पादान्तरे चाथ बभूव कृष्णा।। | 1-207-9a 1-207-9b 1-207-9c 1-207-9d |
अशेत भूमौ सह पाण्डुपुत्रैः पादोपधानीव कृता कुशेषु। न तत्र दुःखं मनसापि तस्या न चावमेने कुरुपुङ्गवांस्तान्।। | 1-207-10a 1-207-10b 1-207-10c 1-207-10d |
ते तत्र शूराः कथयांबभूवुः कथा विचित्राः पृतनाधिकाराः। अस्त्राणि दिव्यानि रथांश्च नागान् खड्गान्गदाश्चापि परश्वधांश्च।। | 1-207-11a 1-207-11b 1-207-11c 1-207-11d |
तेषां कथास्ताः परिकीर्त्यमानाः पाञ्चालराजस्य सुतस्तदानीम्। सुश्राव कृष्णां च तदा निषण्णां ते चापि सर्वे ददृशुर्मनुष्याः।। | 1-207-12a 1-207-12b 1-207-12c 1-207-12d |
धृष्टद्युम्नो राजपुत्रस्तु सर्वं वृत्तं तेषां कथितं चैव रात्रौ। सर्वं राज्ञे द्रुपदायाखिलेन निवेदयिष्यंस्त्वरितो जगाम।। | 1-207-13a 1-207-13b 1-207-13c 1-207-13d |
पाञ्चालराजस्तु विषण्णरूप- स्तान्पाण्डवानप्रतिविन्दमानः। धृष्टद्युम्नं पर्यपृच्छन्महात्मा क्व सा गता केन नीता च कृष्णा।। | 1-207-14a 1-207-14b 1-207-14c 1-207-14d |
कच्चिन्न शूद्रेण न हीनजेन वैश्येन वा करदेनोपपन्ना। कच्चित्पदं मूर्ध्नि न पङ्कदिग्धं कच्चिन्न माला पतिता श्मशाने।। | 1-207-15a 1-207-15b 1-207-15c 1-207-15d |
कच्चित्स वर्णप्रवरो मनुष्य उद्रिक्तवर्णोऽप्युत एव कच्चित्। कच्चिन्न वामो मम मूर्ध्नि पादः कृष्णाभिमर्शेन कृतोऽद्य पुत्र।। | 1-207-16a 1-207-16b 1-207-16c 1-207-16d |
कच्चिन्न तप्स्ये परमप्रतीतः संयुज्य पार्थेन नरर्षभेण। वदस्व तत्त्वेन महानुभाव कोऽसौ विजेता दुहितुर्ममाद्य।। | 1-207-17a 1-207-17b 1-207-17c 1-207-17d |
विचित्रवीर्यस्य सुतस्य कच्चि- त्कुरुप्रवीरस्य ध्रियन्ति पुत्राः। कच्चित्तु पार्थेन यवीयसाऽध्य धनुर्गृहीतं निहतं च लक्ष्यम्।। | 1-207-18a 1-207-18b 1-207-18c 1-207-18d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि स्वयंवरपर्वणि सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 207 ।। | |
।। समाप्तं स्वयंवरपर्व ।। |
1-207-4 अग्रं प्रथममादाय बलिं कुरुष्व भिक्षां च देहि।। 1-207-18 ध्रेयन्ति जीवन्ति।। सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 207 ।।
आदिपर्व-206 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-208 |