महाभारतम्-01-आदिपर्व-250
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पुनर्निवेदितविघ्नवृत्तान्तेन ब्रह्मणा आज्ञुप्तस्याग्नेः कृष्णार्जुनौप्रति आगमनम्।। 1 ।।
वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति खाण्डवदाहकारणकथनसमापनम्।। 2 ।।
अर्जुनेन दिव्यानां रथाश्वधनुरादीनां याचनम्।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-250-1x |
स तु नैराश्यमापन्नः सदा ग्लानिसमन्वितः। पितामहमुपागच्छत्संक्रुद्धो हव्यवाहनः।। | 1-250-1a 1-250-1b |
तच्च सर्वं यथान्यायं ब्रह्मणे संन्यवेदयत्। उवाच चैवनं भगवान्मुहूर्तं स विचिन्त्य तु।। | 1-250-2a 1-250-2b |
उपायः परिदृष्टो मे यथा त्वं धक्ष्यसेऽनघ। कालं च कंचित्क्षमतां ततस्तद्धक्ष्यते भवान्।। | 1-250-3a 1-250-3b |
भविष्यतः सहायौ ते नरनारायणौ तदा। ताभ्यां त्वं सहितो दावं धक्ष्यसे हव्यवाहन।। | 1-250-4a 1-250-4b |
एवमस्त्विति तं वह्निर्ब्रह्माणं प्रत्यभाषत। संभूतौ तौ विदित्वा तु नरनारायणावृषी।। | 1-250-5a 1-250-5b |
कालस्य महतो राजंस्तस्य वाक्यं स्वयंभुवः। अनुस्मृत्य जगामाथ पुनरेव पितामहम्।। | 1-250-6a 1-250-6b |
अब्रवीच्च तदा ब्रह्मा यथा त्वं धक्ष्यसेऽनल। खाण्डवं दावमद्यैव मिषतोऽस्य शचीपतेः।। | 1-250-7a 1-250-7b |
नरनारायणौ यौ तौ पूर्वदेवौ विभावसो। संप्राप्तौ मानुषे लोके कार्यार्थं हि दिवौकसाम्।। | 1-250-8a 1-250-8b |
अर्जुनं वासुदेवं च यौ तौ लोकोऽभिमन्यते। तावेतौ सहितावेहि खाण्डवस्य समीपतः।। | 1-250-9a 1-250-9b |
तौ त्वं याचस्व साहाय्ये दाहार्थं खाण्डवस्य च। ततो धक्ष्यसि तं दावं रक्षितं त्रिदशैरपि।। | 1-250-10a 1-250-10b |
तौ तु सत्वानि सर्वाणि यत्नतो वारयिष्यतः। देवराजं च सहितौ तत्र मे नास्ति संशयः।। | 1-250-11a 1-250-11b |
एतच्छ्रुत्वा तु वचनं त्वरितो हव्यवाहनः। कृष्णपार्थावुपागम्य यमर्थं त्वभ्यभाषत।। | 1-250-12a 1-250-12b |
तं ते कथितवानस्मि पूर्वमेव नृपोत्तम। तच्छ्रुत्वा वचनं त्वग्नेर्बीभत्सुर्जातवेदसम्।। | 1-250-13a 1-250-13b |
अब्रवीन्नृपशार्दूल तत्कालसदृशं वचः। दिधक्षुं खाण्डवं दावमकामस्य शतक्रतोः।। | 1-250-14a 1-250-14b |
अर्जुन उवाच। | 1-250-15x |
उत्तमास्त्राणि मे सन्ति दिव्यानि च बहूनि च। यैरहं शक्नुयां योद्धुमपि वज्रधरान्बहून्।। | 1-250-15a 1-250-15b |
धनुर्मे नास्ति भगवन्बाहुवीर्येण संमितम्। कुर्वतः समरे यत्नं वेगं यद्विषहेन्मम।। | 1-250-16a 1-250-16b |
शरैश्च मेऽर्थो बहुभिरक्षयैः क्षिप्रमस्यतः। न हि वोढुं रथः शक्तः शरान्मम यथेप्सितान्।। | 1-250-17a 1-250-17b |
अश्वांश्च दिव्यानिच्छेयं पाण्डुरान्वातरंहसः। रथं च मेघनिर्घोषं सूर्यप्रतिमतेजसम्।। | 1-250-18a 1-250-18b |
तथा कृष्णस्य वीर्येण नायुधं विद्यते समम्। येन नागान्पिशाचांश्च निहन्यान्माधवो रणे।। | 1-250-19a 1-250-19b |
उपायं कर्मसिद्धौ च भघवन्वक्तुमर्हसि। निवारयेयं येनेन्द्रं वर्षमाणं महावने।। | 1-250-20a 1-250-20b |
पौरुषेण तु यत्कार्यं तत्कर्ताऽहं स्म पावक। करणानि समर्थानि भगवन्दातुमर्हसि।। | 1-250-21a 1-250-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि खाण्डवदाहपर्वणि पञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 250 ।। |
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