महाभारतम्-01-आदिपर्व-185
दिखावट
← आदिपर्व-184 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-185 वेदव्यासः |
आदिपर्व-186 → |
पाञ्चालनगरं गच्छतां पाण्डवानां मार्गे ब्राह्मणैः सह संवादः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-185-1x |
गते भगवति व्यासे पाण्डवा हृष्टमानसाः। `ते प्रयाता नरव्याघ्रा मात्रा सह परन्तपाः।। | 1-185-1a 1-185-1b |
ब्राह्मणान्गच्छतो पश्यन्पाञ्चालान्सगणान्पथि। अथ ते ब्राह्मणा ऊचुः पाण्डवान्ब्रह्मचारिणः।। | 1-185-2a 1-185-2b |
क्व भवन्तो गमिष्यन्ति कुतो वाऽऽगच्छथेति ह। | 1-185-3a |
युधिष्ठिर उवाच। | 1-184-3x |
प्रयातानेकचक्रायाः सोदर्यान्देवदर्शिनः।। | 1-185-3b |
भवन्तो नोऽभिजानन्तु सहितान्ब्रह्मचारिणः। गच्छतो नस्तु पाञ्चालान्द्रुपदस्य पुरं प्रति।। | 1-185-4a 1-185-4b |
इच्छामो भवतो ज्ञातुं परं कौतूहलं हि नः।। | 1-185-5a |
ब्राह्मणा ऊचुः। | 1-185-6x |
एते सार्धं प्रयाताः स्मो वयमप्यत्र गामिनः। तत्राप्यद्भुतसङ्काश उत्सवो भविता महान्।। | 1-185-6a 1-185-6b |
ततस्तु यज्ञसेनस्य द्रुपदस्य महात्मनः। यासावयोनिजा कन्या स्थास्यते सा स्वयंवरे।। | 1-185-7a 1-185-7b |
दर्शनीयाऽनवद्याङ्गी सुकुमारी यशस्विनी। धृष्टद्युम्नस्य भगिनी द्रोणशत्रोः प्रतापिनः।। | 1-185-8a 1-185-8b |
जातो यः पावकाच्छूरः सशरः सशरासनः। सुसमिद्धान्महाभागः सोमकानां महारथः।। | 1-185-9a 1-185-9b |
यस्मिन्संजायमाने हि वागुवाचाशरीरिणी। एष मृत्युश्च शिष्यश्च भारद्वाजस्य जायते।। | 1-185-10a 1-185-10b |
स्वसा तस्य तु वेद्याश्च जाता तस्मिन्महामखे। स्त्रीरत्नमसितापाङ्गी श्यामा नीलोत्पलद्युतिः।। | 1-185-11a 1-185-11b |
तां यज्ञसेनस्य सुतां द्रौपदीं परमां स्त्रियम्। गच्छामस्तत्र वै द्रष्टुं तं चैवास्याः स्वयंवरम्।। | 1-185-12a 1-185-12b |
राजानो राजपुत्राश्च यज्वानो भूरिदक्षिणाः। स्वाध्यायवन्तः शुचयो महात्मानो धृतव्रताः।। | 1-185-13a 1-185-13b |
तरुणा दर्शनीयाश्च बलवन्तो दुरासदाः। महारथाः कृतास्त्राश्च समेष्यन्तीह भूमिपाः।। | 1-185-14a 1-185-14b |
ते तत्र विविधं दानं विजयार्थं नरेश्वराः। प्रदास्यन्ति धनं गाश्च भक्ष्यभोज्यानि सर्वशः।। | 1-185-15a 1-185-15b |
प्रतिलप्स्यामहे सर्वं दृष्ट्वा कृष्णां स्वयंवरे। यं च सा क्षत्रियं रङ्गे कुमारी वरयिष्यति।। | 1-185-16a 1-185-16b |
तदा वैतालिकाश्चैव नर्तकाः सूतमागधाः। निबोधकाश्च देशेभ्यः समेष्यन्ति महाबलाः।। | 1-185-17a 1-185-17b |
एतत्कौतूहलं तत्र दृष्ट्वा वै प्रतिगृह्य च। सहास्माभिर्महात्मानो मात्रा सह निवत्स्यथ।। | 1-185-18a 1-185-18b |
दर्शनीयांश्च वः सर्वानेकरूपानवस्थितान्। समीक्ष्य कृष्मा वरयेत्संगत्यान्यतमं पतिम्।। | 1-185-19a 1-185-19b |
अयमेकश्च वो भ्राता दर्शनीयो महाभुजः। नियुध्यमानो विजयेत्संगत्य द्रविणं महत्।। | 1-185-20a 1-185-20b |
युधिष्ठिर उवाच। | 1-185-21x |
परमं भो गमिष्यामो द्रष्टुं तत्र स्वयंवरम्। द्रौपदीं यज्ञसेनस्य कन्यां तस्यास्तथोत्सवम्।।' | 1-185-21a 1-185-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि चैत्ररथपर्वणि पञ्चाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 185 ।। |
आदिपर्व-184 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-186 |