महाभारतम्-01-आदिपर्व-227
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द्रौपद्या नमस्कृतया गान्धार्या तद्रूपदर्शनेन तस्याः स्वपुत्रमृत्युत्ववितर्कः।। 1 ।।
धृतराष्ट्रेण युधिष्ठिरस्य धर्मराज्येऽभिषेकः।। 2 ।।
पाण्डवानां खाण्डवप्रस्थगमनम्।। 3 ।।
श्रीकृष्णचिन्तितेनेन्द्रेण विश्वकर्मणः प्रेषणम्।। 4 ।।
विश्वकर्मणा इन्द्रप्रस्थपुरनिर्माणम्।। 5 ।।
तत्रागतानां सर्वेषां विसर्जनम्।। 6 ।।
`वैशंपायन उवाच। | 1-227-1x |
दुर्योधनस्य महिषी काशिराजसुता तदा। धृतराष्ट्रस्य पुत्राणां वधूभिः सहिता तदा।। | 1-227-1a 1-227-1b |
पाञ्चालीं प्रतिजग्राह साध्वीं श्रियमिवापराम्। पूजयामास पूजार्हां शचीदेवीमिवागताम्।। | 1-227-2a 1-227-2b |
ववन्दे तत्र गान्धारीं कृष्णया सह माधवी। आशिषश्च प्रयुक्त्वा तु पाञ्चालीं परिषस्वजे।। | 1-227-3a 1-227-3b |
परिष्वज्यैव गान्धारी कृष्णां कमललोचनाम्। पुत्राणां मम पाञ्चाली मृत्युरेवेत्यमन्यत।। | 1-227-4a 1-227-4b |
संचिन्त्य विदुरं प्राह युक्तितः सुबलात्मजा। कुन्तीं राजसुतां क्षत्तः सवधूं सपरिच्छदाम्।। | 1-227-5a 1-227-5b |
पाण्डोर्निवेशनं शीघ्रं नीयतां यदि रोचते। करणेन मुहूर्तेन नक्षत्रेण शुभे तिथौ।। | 1-227-6a 1-227-6b |
यथा सुखं तथा कुन्ती रंस्यते स्वगृहे सुतैः। तथेत्येव तदा क्षत्ता कारयामास तत्तथा।। | 1-227-7a 1-227-7b |
पूजयामासुरत्यर्थं बान्धवाः पाण्डवांस्तदा। नागराः श्रेणिमुख्याश्च पूजयन्ति स्म पाण्डवान्।। | 1-227-8a 1-227-8b |
भीष्मो द्रोणः कृपः कर्णो बाह्लीकः ससुतस्तदा। शासनाद्धृतराष्ट्रस्य अकुर्वन्नतिथिक्रियाम्।। | 1-227-9a 1-227-9b |
एवं विहरतां तेषां पाण्डवानां महात्मनाम्। नेता सर्वस्य कार्यस्य विदुरो राजशासनात्।।' | 1-227-10a 1-227-10b |
विश्रान्तास्ते महात्मानः कंचित्कालं सकेशवाः। आहूता धृतराष्ट्रेण राज्ञा शान्तनवेन च।। | 1-227-11a 1-227-11b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 1-227-12x |
भ्रातृभिः सह कौन्तेय निबोधेदं वचो मम। `पाण्डुना वर्धितं राज्यं पाण्डुना पालितं जगत्।। | 1-227-12a 1-227-12b |
शासनान्मम कौन्तेय मम भ्राता महाबलः। कृतवान्दुष्करं कर्म नित्यमेव विशांपते।। | 1-227-13a 1-227-13b |
तस्मात्त्वमपि कौन्तेय शासनं कुरु मा चिरम्। मम पुत्रा दुरात्मानः सर्वेऽहंकारसंयुताः।। | 1-227-14a 1-227-14b |
शासनं न करिष्यन्ति मम नित्यं युधिष्ठिर। स्वकार्यनिरतैर्नित्यमवलिप्तैर्दुरात्मभिः।।' | 1-227-15a 1-227-15b |
पुनर्वै विग्रहो मा भूत्खाण्डवप्रस्थमाविश। न हि वो वसतस्तत्र कश्चिच्छक्तः प्रबाधितुम्।। | 1-227-16a 1-227-16b |
संरक्ष्यमाणान्पार्थेन त्रिदशानिव वज्रिणा। अर्धराज्यं तु संप्राप्य खाण्डवप्रस्थणाविश।। | 1-227-17a 1-227-17b |
`केशवो यदि मन्यते तत्कर्तव्यमसंशयम्।।' | 1-227-18a |
वैशंपायन उवाच। | 1-227-19x |
प्रतिगृह्य तु तद्वाक्यं नृपं सर्वे प्रणम्य च। `वासुदेवेन संमन्त्र्य पाण्डवाः समुपाविशन्।। | 1-227-19a 1-227-19b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 1-227-20x |
अभिषेकस्य संभारान्क्षत्तरानय मा चिरम्। अभिषिक्तं करिष्यामि ह्यद्य वै कुरुनन्दनम्।। | 1-227-20a 1-227-20b |
ब्राह्मणा नैगमश्रेष्ठाः श्रेणीमुख्याश्च सर्वतः। आहूयन्तां प्रकृतयो बान्धवाश्च विशेषतः।। | 1-227-21a 1-227-21b |
पुण्याहं वाच्यतां तात गोसहस्रं प्रदीयताम्। ग्राममुख्याश्च विप्रेभ्यो दीयन्तां बहुदक्षिणाः।। | 1-227-22a 1-227-22b |
अङ्गदे मकुटं क्षत्तर्हस्ताभरणमानय। मुक्तावलीश्च हारं च निष्काणि कटकानि च।। | 1-227-23a 1-227-23b |
कटिबन्धश्च सूत्रं च तथोदरनिबन्धनम्। अष्टोत्तरसहस्रं तु ब्राह्मणाधिष्ठिता गजाः।। | 1-227-24a 1-227-24b |
जाह्नवीसलिलं शीघ्रमानीयन्तां पुरोहितैः। अभिषेकोदकक्लिन्नं सर्वाभरणभूषितम्।। | 1-227-25a 1-227-25b |
औपवाह्योपरिगतं दिव्यचारमरवीजितम्। सुवर्णमणिचित्रेण श्वेतच्छत्रेण शोभितम्।। | 1-227-26a 1-227-26b |
जयेति द्विजवाक्येनु स्तूयमानं नृपैस्तथा। दृष्ट्वा कुन्तीसुतं ज्येष्ठमाजमीढं युधिष्ठिरम्।। | 1-227-27a 1-227-27b |
प्रीताः प्रीतेन मनसा प्रशंसन्तु परे जनाः। पाण्डोः कृतोपकारस्य राज्यं दत्वा ममैव च।। | 1-227-28a 1-227-28b |
प्रतिक्रिया कृतमिदं भविष्यति न संशयः। भीष्मो द्रोणः कृपः क्षत्ता साधुसाध्वित्यथाब्रुवन्।। | 1-227-29a 1-227-29b |
श्रीवासुदेव उवाच। | 1-227-30x |
युक्तमेतन्महाभाग कौरवाणां यशस्करम्। शीघ्रमद्यैव राजेन्द्र त्वयोक्तं कर्तुमर्हसि।। | 1-227-30a 1-227-30b |
इत्येवमुक्तो वार्ष्णेयस्त्वरयामास तत्तदा। तथोक्तं धृतराष्ट्रेण कारयामास केशवः।। | 1-227-31a 1-227-31b |
तस्मिन्क्षणे महाराज कृष्णद्वैपायनस्तदा। आगत्य कुरुभिः सर्वैः पूजितः ससुहृद्गणैः।। | 1-227-32a 1-227-32b |
मूर्धाभिषिक्तैः सहितो ब्राह्मणैर्वेदपारगैः। कारयामास विधिवत्केशवानुमते तदा।। | 1-227-33a 1-227-33b |
कृपो द्रोणश्च भीष्मश्च धौम्यश्च व्यासकेशवौ। बाह्लीकः सोमदत्तश्च चातुर्वेद्यपुरस्कृताः।। | 1-227-34a 1-227-34b |
अभिषेकं तदा चक्रुर्भद्रपीठे सुसंस्कृतम्।। | 1-227-35a |
व्यास उवाच। | 1-227-36x |
जित्वा तु पृथिवीं कृत्स्नां वशे कृत्वा नृपान्भवान्। राजसूयादिभिर्यज्ञैः क्रतुभिर्वरदक्षिणैः।। | 1-227-36a 1-227-36b |
स्नात्वा ह्यवभृथस्नानं मोदतां बान्धवैः सह। एवमुक्त्वा तु ते सर्वे आशीर्भिरभिपूजयन्।। | 1-227-37a 1-227-37b |
मूर्धाभिषिक्तः कौरव्यः सर्वाभरणभूषितः। जयेति संस्तुतो राजा प्रददौ धनमक्षयम्।। | 1-227-38a 1-227-38b |
सर्वमूर्धाभिषिक्तैश्च पूजितः कुरनन्दनः। औपवाह्यमथारुह्य श्वेतच्छत्रेण शोभितः।। | 1-227-39a 1-227-39b |
रराज राजाभिमतो महेन्द्र इव दैवतैः। ततः प्रदक्षिणीकृत्य नगरं नागसाह्वयम्।। | 1-227-40a 1-227-40b |
प्रविवेश तदा राजा नागरैः पूजितो गृहम्। मूर्धाभिषिक्तं कौन्तेयमभ्यगच्छन्त कौरवाः।। | 1-227-41a 1-227-41b |
गान्धारिपुत्राः शोचन्तः सर्वे ते सह बान्धवैः। ज्ञात्वा शोकं च पुत्राणां धृतराष्ट्रोऽब्रवीदिदं।। | 1-227-42a 1-227-42b |
समक्षं वासुदेवस्य कुरूणां च समक्षतः। अभिषेकस्त्वया प्राप्तो दुष्प्रापो ह्यकृतात्मभिः।। | 1-227-43a 1-227-43b |
गच्छ त्वमद्यैव नृप कृतकृत्योऽसि कौरव। आयुः पुरूरवा राजन्नहुषेण ययातिना।। | 1-227-44a 1-227-44b |
तत्रैव निवसन्ति स्म खाण्डवे तु नृपोत्तम। राजधानी तु सर्वेषां पौरवाणां महाभुज।। | 1-227-45a 1-227-45b |
विनाशितं मुनिगणैर्लोभाद्बुधसुतस्य वै। तस्मात्त्वं खाण्डवप्रस्थं पुरं राष्ट्रं च वर्धय।। | 1-227-46a 1-227-46b |
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्च कृतलक्षणाः। त्वद्भक्त्या जन्तवश्चान्ये भजन्त्येव पुरं शुभम्।। | 1-227-47a 1-227-47b |
पुरं राष्ट्रं समृद्धं वै धनधान्यसमाकुलम्। तस्माद्गच्छस्व कौन्तेय भ्रातृभिः सहितोऽनघ।। | 1-227-48a 1-227-48b |
वैशंपायन उवाच। | 1-227-49x |
प्रतिगृह्य तु तद्वाक्यं तस्मै सर्वे प्रणम्य च। रथैर्नागैर्हयैश्चापि सहितास्तु पदातिभिः।। | 1-227-49a 1-227-49b |
प्रतस्थिरे ततो घोषसंयुक्तैः स्यन्दनैर्वरैः। तान्दृष्ट्वा नागराः सर्वे भक्त्या चैव प्रतस्थिरे।। | 1-227-50a 1-227-50b |
गच्छतः पाण्डवैः सार्धं दृष्ट्वा नागपुरालयात्। पाण्डवैः सहिता गन्तुं नार्हतेति च नागरान्।। | 1-227-51a 1-227-51b |
घोषयामास नगरे धार्तराष्ट्रः ससौबलः।' ततस्ते पाण्डवास्तत्र गत्वा कृष्णपुरोगमाः।। | 1-227-52a 1-227-52b |
मण्डयाञ्चक्रिरे तद्वै पुरं स्वर्गादिव च्युतम्। `वासुदेवो जगन्नाथश्चिन्तयामास वासवम्।। | 1-227-53a 1-227-53b |
महेन्द्रश्चिन्तितो राजन्विश्वकर्माणमादिशत्। विश्वकर्मन्महाप्राज्ञ अद्यप्रभृति तत्पुरम्।। | 1-227-54a 1-227-54b |
इन्द्रप्रस्थमिति ख्यातं दिव्यं भूम्यां भविष्यति। महेन्द्रशासनाद्गत्वा विश्वकर्मा तु केशवम्।। | 1-227-55a 1-227-55b |
प्रणम्य प्रणिपातार्हं किं करोमीत्यभाषत। वासुदेवस्तु तच्छ्रुत्वा विश्वकर्माणमूचिवान्।। | 1-227-56a 1-227-56b |
कुरुष्व कुरुराजस्य महेन्द्रपुरसन्निभम्। इन्द्रेण कृतनामानमिन्द्रप्रस्थं महापुरम्।। | 1-227-57a 1-227-57b |
वैशंपायन उवाच।' | 1-227-58x |
ततः पुण्ये शिवे देशे शान्तिं कृत्वा महारथाः। स्वस्तिवाच्य यथान्यायमिन्द्रप्रस्थं भवत्विति।। | 1-227-58a 1-227-58b |
तत्पुरं मापयामासुर्द्वैपायनपुरोगमाः। `ततः स विश्वकर्मा तु चकार पुरमुत्तमम्।।' | 1-227-59a 1-227-59b |
सागरप्रतिरूपाभिः परिखाभिरलङ्कृतम्। प्राकारेण च संपन्नं दिवमावृत्य तिष्ठता।। | 1-227-60a 1-227-60b |
पाण्डुराभ्रप्रकाशेन हिमरश्मिनिभेन च। शुशुभे तत्पुरश्रेष्ठं नागैर्भोगवती यथा।। | 1-227-61a 1-227-61b |
द्विपक्षगरुडप्रख्यैर्द्वारैः सौधैश्च शोभितम्। गुप्तमभ्रचयप्रख्यैर्गोपुरैर्मन्दरोपमैः।। | 1-227-62a 1-227-62b |
विविधैरपि निर्विद्धैः शस्त्रोपेतैः सुसंवृतैः। शक्तिभिश्चावृतं तद्धि द्विजिह्वैरिव पन्नगैः।। | 1-227-63a 1-227-63b |
तल्पैश्चाभ्यासिकैर्युक्तं शुशुभे योधरक्षितम्। थीक्ष्णाङ्कुशशतघ्नीभिर्यन्त्रजालैश्च शोभितम्।। | 1-227-64a 1-227-64b |
आयसैश्च महाचक्रैः शुशुभे तत्पुरोत्तमम्। सुविभक्तमहारथ्यं देवताबाधवर्जितम्।। | 1-227-65a 1-227-65b |
विरोचमानं विविधैः पाण्डुरैर्भवनोत्तमैः। तत्त्रिविष्टपसंकाशमिन्द्रप्रस्थं व्यरोचत।। | 1-227-66a 1-227-66b |
मेघवृन्दमिवाकाशे विद्धं विद्युत्समावृतम्। तत्र रम्ये शिवे देशे कौरव्यस्य निवेशनम्।। | 1-227-67a 1-227-67b |
शुशुभे धनसंपूर्णं धनाध्यक्षक्षयोपमम्। तत्रागच्छन्द्विजा राजन्सर्ववेदविदां वराः।। | 1-227-68a 1-227-68b |
निवासं रोचयन्ति स्म सर्वभाषाविदस्तथा। वणिजश्चाययुस्तत्र नानादिग्भ्यो धनार्थिनः।। | 1-227-69a 1-227-69b |
सर्वशिल्पविदस्तत्र वासायाभ्यागमंस्तदा। उद्यानानि च रम्याणि नगरस्य समन्ततः।। | 1-227-70a 1-227-70b |
आम्रैराम्रातकैर्नीपैरशोकैश्चम्पकैस्तथा। पुन्नागैर्नागपुष्पैश्च लकुचैः पनसैस्तथा।। | 1-227-71a 1-227-71b |
शालतालतमालैश्च बकुलैश्च सकेतकैः। मनोहरैः सुपुष्पैश्च फलभारावनामितैः।। | 1-227-72a 1-227-72b |
प्राचीनामलकैर्लोध्रैरङ्कोलैश्च सुपिष्पितैः। जम्बूभिः पाटलाभिश्च कुब्जकैरतिमुक्तकैः।। | 1-227-73a 1-227-73b |
करवीरैः पारिजातैरन्यैश्च विविधैर्द्रुमैः। नित्यपुष्पफलोपेतैर्नानाद्विजगणायुतैः।। | 1-227-74a 1-227-74b |
मत्तबर्हिणसंघुष्टकोकिलैश्च सदामदैः। गृहैरादर्शविमलैर्विविधैश्च लतागृहैः।। | 1-227-75a 1-227-75b |
मनोहरैश्चित्रगृहैस्तथाऽजगतिप्रवतैः। वापीभिर्विविधाभिश्च पूर्णाभिः परमाम्भसा।। | 1-227-76a 1-227-76b |
सरोभिरतिरम्यैश्च पद्मोत्पलसुगन्धिभिः। हंसकारण्डवयुतैश्चक्रवाकोपशोभितैः।। | 1-227-77a 1-227-77b |
रम्याश्च विविधास्तत्र पुष्करिण्यो वनावृताः। तडागानि च रम्याणि बृहन्ति सुबहूनि च।। | 1-227-78a 1-227-78b |
`नदी च नन्दिनी नाम सा पुरीमुपगूहति। चातुर्वर्ण्यसमाकीर्णमन्यैः शिल्पिभिरावृतम्।। | 1-227-79a 1-227-79b |
सर्वदाभिसृतं सद्भिः कारितं विश्वकर्मणा। उपभोगसमृद्धैश्च सर्वद्रव्यसमावृतम्।। | 1-227-80a 1-227-80b |
नित्यमार्यजनोपेतं नरनारीगणैर्युतम्। वाजिवारणसंपूर्णं गोभिरुष्ट्रैः खरैरजैः।। | 1-227-81a 1-227-81b |
तत्त्रिविष्टपसङ्काशमिन्द्रप्रस्थं व्यरोचत। पुरीं सर्वगुणोपेतां निर्मितां विश्वकर्मणा।। | 1-227-82a 1-227-82b |
पौरवाणामधिपतिः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। कृतमङ्गलसत्कारैर्ब्राह्मणैर्वेदपारगैः।। | 1-227-83a 1-227-83b |
द्वैपायनं पुरस्कृत्य धौम्यस्याभिमते स्थितः। भ्रातृभिः सहितो राजा राजमार्गमतीत्य च।। | 1-227-84a 1-227-84b |
औपवाह्यगतो राजा केशवेन सहाभिभूः। तोरणद्वारसुमुखं द्वात्रिंशद्द्वारसंयुतम्।। | 1-227-85a 1-227-85b |
वर्धमानपुरद्वारात्प्रविवेश महाद्युतिः। शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषाः श्रूयन्ते बहवो भृशम्।। | 1-227-86a 1-227-86b |
जयेति ब्राह्मणगिरः श्रूयन्ते च सहस्रशः। संस्तूयमानो मुनिभिः सूतमागधबन्दिभिः।। | 1-227-87a 1-227-87b |
औपवाह्यगतो राजा राजमार्गमतीत्य च। कृतमङ्गलसत्कारं प्रविवेश गृहोत्तमम्।। | 1-227-88a 1-227-88b |
प्रविश्य भवनं राजा नागरैरभिसंवृतः। प्रहृष्टमुदितैरासीत्सत्कारैरभिपूजितः।। | 1-227-89a 1-227-89b |
पूजयामास विप्रेन्द्रान्केशेन महात्मना। ततस्तु राष्ट्रं नगरं नरनारीगणायुतम्।। | 1-227-90a 1-227-90b |
गोधनैश्च समाकीर्णं सस्यैर्वृद्धिं तदागमत्।।' | 1-227-91a |
तेषां पुण्यजनोपेतं राष्ट्रमाविशतां महत्। पाण्डवानां महाराज शश्वत्प्रीतिरवर्धत।। | 1-227-92a 1-227-92b |
`सौबलेन च कर्णेन धार्तराष्ट्रैः कृपेण च।' तथा भीष्मेण राज्ञा च धर्मप्रणयिना सदा।। | 1-227-93a 1-227-93b |
पाण्डवाः समपद्यन्त खाण्डवप्रस्थवासिनः। पञ्चभिस्तैर्महेष्वासैरिन्द्रकल्पैः समावृतम्।। | 1-227-94a 1-227-94b |
शुशुभे तत्पुरश्रेष्ठं नागैर्भोगवती यथा। `ततस्तु विश्वकर्माणं पूजयित्वा विसृज्य च।। | 1-227-95a 1-227-95b |
द्वैपायनं च संपूज्य विसृज्य च नराधिपः। वार्ष्णेयमब्रवीद्राजा गन्तुकामं कृतक्षणम्।। | 1-227-96a 1-227-96b |
तव प्रसादाद्वार्ष्णेय राज्यं प्राप्तं मयाऽनघ। प्रसादादेव ते वीर शून्यं राष्ट्रं सुदुर्गमम्।। | 1-227-97a 1-227-97b |
तवैव तु प्रसादेन राज्यस्थाश्च भवामहे। गतिस्त्वमापत्कालेऽपि पाण्डवानां च माधव।। | 1-227-98a 1-227-98b |
ज्ञात्वा तु कृत्यं कर्तव्यं कारयस्व भवान्हि नः। यदिष्टमनुमन्तव्यं पाण्डवानां त्वयाऽनघ।। | 1-227-99a 1-227-99b |
श्रीवासुदेव उवाच। | 1-227-100x |
त्वत्प्रभावान्महाराज्यं संप्राप्तं हि स्वधर्मतः। पितृपैतामहं राज्यं कथं न स्यात्तव प्रभो।। | 1-227-100a 1-227-100b |
धार्तराष्ट्रा दुराचाराः किं करिष्यन्ति पाण्डवान्। यथेष्टं पालय जगच्छश्वद्धर्मधुरं वह।। | 1-227-101a 1-227-101b |
पुनः पुनश्च संहर्षाद्ब्राह्मणान्भर पौरव। अद्यैव नारदः श्रीमानागमिष्यति सत्वरः।। | 1-227-102a 1-227-102b |
आदत्स्व तस्य वाक्यानि शासनं कुरु तस्य वै। एवमुक्त्वा ततः कुन्तीमभिवाद्य जनार्दनः।। | 1-227-103a 1-227-103b |
उवाच श्लक्ष्णया वाचा गमिष्यामि नमोस्तु ते। | 1-227-104a |
कुन्त्युवाच। | 1-227-104x |
जातुषं गृहमासाद्य मया प्राप्तं यदानघ।। | 1-227-104b |
आर्येण समभिज्ञातं त्वया वै यदुपुङ्गव। त्वया नाथेन गोविन्द दुःखं तीर्णं महत्तरम्।। | 1-227-105a 1-227-105b |
त्वं हि नाथस्त्वनाथानां दरिद्राणां विशेषतः। सर्वदुःखानि शाम्यन्ति तव संदर्शनान्मम।। | 1-227-106a 1-227-106b |
स्मरस्वैनान्महाप्राज्ञ तेन जीवन्ति पाण्डवाः।। | 1-227-107a |
वैशंपायन उवाच। | 1-227-108x |
करिष्यामीति चामन्त्र्य अभिवाद्य पितृष्वसाम्। गमनाय मतिं चक्रे वासुदेवः सहानुगः।।' | 1-227-108a 1-227-108b |
तान्निवेश्य ततो वीरः सह रामेण कौरवान्। ययौ द्वारवतीं राजन्पाण्डवानुमते तदा।। | 1-227-109a 1-227-109b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि सप्तविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 227 ।। |
आदिपर्व-226 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-228 |