महाभारतम्-01-आदिपर्व-242
दिखावट
← आदिपर्व-241 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-242 वेदव्यासः |
आदिपर्व-243 → |
सुभद्राविवाहः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-242-1x |
कुकुरान्धकवृष्णीनामपयानं च पाण्डवः। विनिश्चित्य ततः पार्थः सुभद्रामिदमब्रवीत्।। | 1-242-1a 1-242-1b |
शृणु भद्रे यथाशास्त्रं हितार्थं मुनिभिः कृतम्। विवाहं बहुधा सत्सु वर्णानां धर्मसंयुतम्।। | 1-242-2a 1-242-2b |
कन्यायास्तु पिता भ्राता माता मातुल एव वा। पितुः पिता पितुर्भ्राता दाने तु प्रभुतां गतः।। | 1-242-3a 1-242-3b |
महोत्सवं पशुपतेर्द्रष्टुकामः पिता तव। अन्तर्द्वीपं गतो भद्रे पुत्रैः पौत्रैः सबान्धवैः।। | 1-242-4a 1-242-4b |
मम चैव विशालाक्षि विदेशस्था हि बान्धवाः। तस्मात्सुभद्रे गान्धर्वो विवाहः पञ्चमः स्मृतः।। | 1-242-5a 1-242-5b |
समागमे तु कन्यायाः क्रियाः प्रोक्ताश्चतुर्विधाः। तेषां प्रवृत्तिं साधूनां शृणु माधवि तद्यथा।। | 1-242-6a 1-242-6b |
वरमाहूय विधिना पित्रा दत्ता तथार्थिने। सा पत्नी तु परैरुक्ता सा वश्या तु पतिव्रता।। | 1-242-7a 1-242-7b |
भृत्यानां भरणार्थाय आत्मनः पोषणाय च। दाने गृहीता या नारी सा भार्येति स्मृता बुधैः।। | 1-242-8a 1-242-8b |
धर्मतो वरयित्वा तु आनीय स्वं निवेशनम्। न्यायेन दत्तातारुण्ये दाराः पितृकृताः स्मृताः।। | 1-242-9a 1-242-9b |
गान्धर्वेण विवाहेन रागात्पुत्रार्थकारणात्। आत्मनाऽनुगृहीता या वश्या सा तु प्रजावती।। | 1-242-10a 1-242-10b |
जनयेद्या तु भर्तारं जाया इत्येव नामतः। पत्नी भार्या च दाराश्च जाया चेति चतुर्विधाः।। | 1-242-11a 1-242-11b |
चतस्र एवाग्निसाक्ष्याः क्रियायुक्ताश्च धर्मतः। गान्धर्वस्तु क्रियाहीनो रागादेव प्रवर्तते।। | 1-242-12a 1-242-12b |
सकामायाः सकामेन निर्मन्त्रो रहसि स्मृतः। मयोक्तमक्रियं चापि कर्तव्यं माधवि त्वया।। | 1-242-13a 1-242-13b |
अयनं चैव मासश्च ऋतुः पक्षस्तथा तिथिः। करणं च मुहूर्तं च लग्नसंपत्तथैव च।। | 1-242-14a 1-242-14b |
विवाहस्य विशालाक्षि प्रशस्तं चोत्तरायणम्। वैशाखश्चैव मासानां पक्षाणां शुक्ल एव च।। | 1-242-15a 1-242-15b |
नक्षत्राणां तथा हस्तस्तृतीया च तिथिष्वपि। लग्नो हि मकरः श्रेष्ठः करणानां बवस्तथा।। | 1-242-16a 1-242-16b |
मैत्रो मुहूर्तो वैवाह्य आवयोः शुभकर्मणि। सर्वसंपदियं भद्रे अद्य रात्रौ भविष्यति।। | 1-242-17a 1-242-17b |
भगवानस्तमभ्येति आदित्यस्तपतां वरः। रात्रौ विवाहकालोऽयं भविष्यति न संशयः।। | 1-242-18a 1-242-18b |
नारायणोऽपि सर्वज्ञो नावबुध्येत विश्वकृत्। धर्मसङ्कटमापन्ने किं नु कृत्वा सुखं भवेत्।। | 1-242-19a 1-242-19b |
मनोभवेन कामेन मोहितं मां प्रलापिनम्। प्रतिवाक्यं च मे देवि किं न वक्ष्यसि माधवि।। | 1-242-20a 1-242-20b |
वैशंपायन उवाच। | 1-242-21x |
अर्जुनस्य वचः श्रुत्वा चिन्तयन्ती जनार्दनम्। नोवाच किंचिद्वचनं बाष्पदूषितलोचना।। | 1-242-21a 1-242-21b |
रागोन्मादप्रलापी सन्नर्जुनो जयतां वरः। चिन्तयामास पितरं प्रविश्य च लतागृहम्।। | 1-242-22a 1-242-22b |
चिन्तयानं तु कौन्तेयं मत्वा शच्या शचीपतिः। सहितो नारदाद्यैश्च मुनिभिश्च महामनाः।। | 1-242-23a 1-242-23b |
गन्धर्वैरप्सरोभिश्च चारणैश्चापि गुह्यकैः। अरुन्धत्या वसिष्ठेन ह्याजगाम कुशस्थलीम्।। | 1-242-24a 1-242-24b |
चिन्तितं च सुभद्रायाश्चिन्तयित्वा जनार्दनः। निद्रयापहृतज्ञानं रौहिणेयं विना तदा।। | 1-242-25a 1-242-25b |
सहाक्रूरेण शिनिना सत्यकेन गदेन च। वसुदेवेन देवक्या आहूकेन च धीमता।। | 1-242-26a 1-242-26b |
आजगाम पुरीं रात्रौ द्वारकां स्वजनैर्वृतः। पूजयित्वा तु देवेशो नारदादीन्महायशाः।। | 1-242-27a 1-242-27b |
कुशलप्रश्नमुक्त्वा तु देवेन्द्रेणाभियाचितः। वैवाहिकीं क्रियां कृष्णः स तथेत्येवमुक्तवान्।। | 1-242-28a 1-242-28b |
आहुको वसुदेवश्च सहाक्रूरः ससात्यकिः। अभिप्रणम्य शिरसा पाकशासनमब्रुवन्। देवदेव नमस्तेस्तु लोकनाथ जगत्पते।। | 1-242-29a 1-242-29b 1-242-29c |
वयं धन्याः स्म सहितैर्बान्धवैः सहिताः प्रभो। कृतप्रसादास्तु वयं तव वाक्येन विश्वजित्।। | 1-242-30a 1-242-30b |
वैशंपायन उवाच। | 1-242-31x |
एवमुक्त्वा प्रसाद्यैनं पूजयित्वा प्रयत्नतः। महेन्द्रशासनात्सर्वे सहिता ऋषिभिस्तदा।। | 1-242-31a 1-242-31b |
विवाहं कारयामासुः शक्रपुत्रस्य शास्त्रतः। अरुन्धती शची देवी रुग्मिणी देवकी तथा।। | 1-242-32a 1-242-32b |
दिव्यस्त्रीभिश्च सहिताः सुभद्रायाः शुभाः क्रियाः। अर्जुनेऽपि तथा सर्वाः क्रिया भद्राः प्रयोजयन्।। | 1-242-33a 1-242-33b |
महर्षिः काश्यपो होता सदस्या नारदादयः। पुण्याशिषः प्रयोक्तारः सर्वे ते हि तदार्जुने।। | 1-242-34a 1-242-34b |
अभिषेकं तदा कृत्वा महेन्द्रः पाकशासनिम्। लोकपालैस्तु सहितः सर्वदेवैरभिष्टुतः।। | 1-242-35a 1-242-35b |
किरीटाङ्गदहाराद्यैर्हस्ताभरणकुण्डलैः। भूषयित्वा तदा पार्थं द्वितीयमिव वासवम्।। | 1-242-36a 1-242-36b |
पुत्रं परिष्वज्य तदा प्रीतिमाप पुरन्दरः। शछी देवी तदा भद्रामरुन्धत्यादिभिस्तथा।। | 1-242-37a 1-242-37b |
कारयामास वैवाह्यमङ्गलान्यादवस्त्रियः। सहाप्सरोभिर्मुदिता भूषयित्वा स्वभूषणैः।। | 1-242-38a 1-242-38b |
पौलोमीमिव मन्यन्ते सुभद्रां तत्र योषितः। ततो विवाहो ववृधे कृतः सर्वगुणान्वितः।। | 1-242-39a 1-242-39b |
तस्याः पाणिं गृहीत्वा तु मन्त्रैर्होमपुरस्कृतम्। सुभद्रया बभौ जिष्णुः शच्या इव शचीपतिः।। | 1-242-40a 1-242-40b |
सा जिष्णुमधिकं भेजे सुभद्रा चारुदर्शना। पार्थस्य सदृशी भद्रा रूपेण वयसा तथा।। | 1-242-41a 1-242-41b |
सुभद्रायाश्च पार्थोऽपि सदृशो रूपलक्षणैः। इत्यूचुश्च तदा देवाः प्रीताः सेन्द्रपुरोगमाः।। | 1-242-42a 1-242-42b |
एवं निवेश्य देवास्ते गन्धर्वैः साप्सरोगणैः। आमन्त्र्य यादवाः सर्वे विप्रजग्मुर्यथागतम्।। | 1-242-43a 1-242-43b |
यादवाः पार्थमामन्त्र्य अन्तर्द्वीपं गतास्तदा। वासुदेवस्तदा पार्थमुवाच यदुनन्दनः।। | 1-242-44a 1-242-44b |
द्वाविंशद्दिवसान्पार्थ इहोष्य भरतर्षभ। मामकं रथमारुह्य शैब्यसुग्रीवयोजितम्।। | 1-242-45a 1-242-45b |
सुभद्रया सुखं पार्थ खाण्डवप्रस्थमाविश। यादवैः सहितः पश्चादागमिष्यामि भारत। यतिवेषेण नियतो वस त्वं रुक्मिणीगृहे।। | 1-242-46a 1-242-46b 1-242-46c |
वैशंपायन उवाच। | 1-242-47x |
एवमुक्त्वा प्रचक्राम अन्तर्द्वीपं जनार्दनः। कृतोद्वाहस्ततः पार्थः कृतकार्योऽभवत्तदा।। | 1-242-47a 1-242-47b |
तस्यां चोपगतो भावः पार्थस्य सुमहात्मनः। तस्मिन्भावः सुभद्राया अन्योन्यं समवर्धत।। | 1-242-48a 1-242-48b |
स तथा युयुजे वीरो भद्रया भरतर्षभः। अभिनिष्पन्नया रामः सीतयेव समन्वितः।। | 1-242-49a 1-242-49b |
अपि जिष्णुर्विजज्ञे तां ह्रीं श्रियं सन्नतिक्रियाम्। देवतानां वरस्त्रीणां रूपेण सदृशीं सतीम्।। | 1-242-50a 1-242-50b |
स प्रकृत्या श्रिया दीप्त्या संदिदीपे तयाऽधिकम्। उद्यत्सहस्रदीप्तांशुः शरदीव दिवाकरः।। | 1-242-51a 1-242-51b |
सा तु तं मनुजव्याघ्रमनुरक्ता यशस्विनी। कन्यापुरगता भूत्वा तत्परा समपद्यत।। | 1-242-52a 1-242-52b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि सुभद्राहरणपर्वणि द्विचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 242 ।। |
आदिपर्व-241 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-243 |