महाभारतम्-01-आदिपर्व-150
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द्रुपदोत्पत्तिः।। 1 ।।
जनमेजय उवाच। | 1-150-1x |
द्रुपदस्यापि विप्रर्षे श्रोतुमिच्छामि संभवम्। कथं चापि समुत्पन्नः कथमस्त्राण्यवाप्तवान्।।' | 1-150-1a 1-150-1b |
एतदिच्छामि भगवंस्त्वत्तः श्रोतुं द्विजोत्तम। कौतूहलं जन्मसु मे कीर्त्यमानेष्वनेकशः।। | 1-150-2a 1-150-2b |
वैशंपायन उवाच। | 1-150-3x |
राजा बभूव पाञ्चालः पुत्रार्थी पुत्रकारणात्। वनं गतो महाराजस्तपस्तेपे सुदारुणम्।। | 1-150-3a 1-150-3b |
आराधयन्प्रयत्नेन महर्षीन्संशितव्रतान्। तस्य संतप्यमानस्य वने मृगगणायुते।। | 1-150-4a 1-150-4b |
कालस्तु सुमहान्राजन्नत्ययात्सुतकारणात्। स तु राजा महातेजास्तपस्तीव्रं समाददे।। | 1-150-5a 1-150-5b |
कंचित्कालं वायुभक्षो निराहारस्तथैव च। तथैव तु महाबाहोर्वर्तमानस्य भारत।। | 1-150-6a 1-150-6b |
कालस्तस्य महाराज यातो वै नृपसत्तम। ततो नातिचिरात्काले वसन्ते कामदीपने।। | 1-150-7a 1-150-7b |
फुल्लाशोकवने चैव प्राणिनां सुमनोहरे। नद्यास्तीरं ततो गत्वा गङ्गायाः पद्मलोचनः।। | 1-150-8a 1-150-8b |
नियमस्थश्च राजासीत्तदा भरतसत्तम। ततो नातिचिरात्काले वनं तन्मनुजेश्वर।। | 1-150-9a 1-150-9b |
संप्राप्ता ह्यप्सरा राजन्मेनकेत्यभिविश्रुता। पुष्पद्रुमान्सज्जमाना राज्ञो दर्शनमागमत्।। | 1-150-10a 1-150-10b |
न ददर्श तु सा राजंस्तत्र स्थानगतं नृपम्। दृष्ट्वा चाप्सरसं तां तु शुक्रं राज्ञोऽपतद्भुवि।। | 1-150-11a 1-150-11b |
ततः स राजा राजेन्द्र लज्जया नृपतिः स्वयम्। पद्भ्यामाक्रमतायुष्मंस्ततस्तु द्रुपदोऽभवत्।। | 1-150-12a 1-150-12b |
ततस्तु तपसा तस्य राजर्षेर्भावितात्मनः। पुत्रः समभवच्छीघ्रं पदोस्तस्य क्रमेण तु।। | 1-150-13a 1-150-13b |
तेनास्य ऋषयः सर्वे समागम्य तपोधनाः। नाम चुक्रुर्हि विद्वांसो द्रुपदोऽस्त्विति भारत।। | 1-150-14a 1-150-14b |
स तस्यैवाश्रमे राजन्भरद्वाजस्य भारत। ववृधे सुमुखं तत्र कामैः सर्वैर्नृपोत्तम।। | 1-150-15a 1-150-15b |
पाञ्चालोऽपि हि राजेन्द्र स्वराज्यं गतवान्प्रभुः। भरद्वाजस्य विद्यार्थं सुतं दत्वा महात्मनः।। | 1-150-16a 1-150-16b |
स कुमारस्ततो राजन्द्रोणेन सहितो वने। वेदांश्चाधिजगे साङ्गान्धनुर्वेदांश्च भारत।। | 1-150-17a 1-150-17b |
परया स मुदा युक्तो विचचार वने सुखम्। तस्यैवं वर्तमानस्य वने वनचरैः सह।। | 1-150-18a 1-150-18b |
कालेनातिचिराद्राजन्पिता स्वर्गमुपेयिवान्। स समागम्य पाञ्चालैः पाञ्चालेष्वभिषेचितः।। | 1-150-19a 1-150-19b |
प्राप्तश्च राज्यं राजेन्द्र सुहृदां प्रीतिवर्धनः। राज्यं ररक्ष धर्मेण यथा चेन्द्रस्त्रिविष्टपम्।। | 1-150-20a 1-150-20b |
एतन्मया ते राजेन्द्र यथावत्परिकीर्तितम्। द्रुपदस्य च राजर्षेर्धृष्टद्युम्नस्य जन्म च।। | 1-150-21a 1-150-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि
संभवपर्वणि पञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः।। 150 ।।
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