महाभारतम्-01-आदिपर्व-178
दिखावट
← आदिपर्व-177 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-178 वेदव्यासः |
आदिपर्व-179 → |
बकवधानन्तरं समागतानां तत्परिवाराणां भीमेन समयकरणम्।। 1 ।।
नगरद्वारदेशे बकशरीरं निधाय ब्राह्मणगृहमा गत्य भीमेन कुन्त्यादीन्प्रति बकवृत्तान्तकथनम्।। 2 ।।
मृतबकदर्शार्थं पौराणां गमनम्।। 3 ।।
ब्रह्ममहोत्सवकरणम्।। 4 ।।
बकवधेन पौराणां भीमसेवनम्।। 5 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-178-1x |
ततः स भग्नपार्श्वाङ्गो नदित्वा भैरवं रवम्। शैलराजप्रतीकाशो गतासुरभवद्बकः।। | 1-178-1a 1-178-1b |
तेन शब्देन वित्रस्तो जनस्तस्याथ रक्षसः। निष्पपात गृहाद्राजन्सहैव परिचारिभिः।। | 1-178-2a 1-178-2b |
`बकानुजस्तदा राजन्भीमं शरणमेयिवान्। ततस्तु निहतं दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रं महाबलम्। राक्षसाः परमत्रस्ता भीमं शऱणमाययुः।।' | 1-178-3a 1-178-3b 1-178-3c |
तान्भीतान्विगतज्ञानान्भीमः प्रहरतां वरः। सांत्वयामास बलवान्समये च न्यवेशयत्।। | 1-178-4a 1-178-4b |
न हिंस्या मानुषा भूयो युष्माभिरिति कर्हिचित्। हिंसतां हि वधः शीघ्रमेवमेव भवेदिति।। | 1-178-5a 1-178-5b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा तानि रक्षांसि भारत। एवमस्त्विति तं प्राहुर्जगृहुः समयं च तम्।। | 1-178-6a 1-178-6b |
`सगणस्तु बकभ्राता प्राणमत्पाण्डवं तदा।' ततः प्रभृति रक्षांसि तत्र सौम्यानि भारत। नगरे प्रत्यदृश्यन्त नरैर्नगरवासिभिः।। | 1-178-7a 1-178-7b 1-178-7c |
ततो भीमस्तमादाय गतासुं पुरुषादकम्। `निष्कर्णनेत्रं निर्जिह्वं निःसंज्ञं कण्ठपीडनात्। कुर्वन्बहुविधां चेष्टां पुरद्वारमकर्षत।। | 1-178-8a 1-178-8b 1-178-8c |
द्वारदेशे विनिक्षिप्य पुरमागात्स मारुतिः। स एव राक्षसो नूनं पुनरायाति नः पुरीम्।। | 1-178-9a 1-178-9b |
सबालवृद्धाः पुरुषा इति भीताः प्रदुद्रुवुः। ततो भीमो बकं हत्वा गत्वा ब्राह्मणवेश्म तत्।। | 1-178-10a 1-178-10b |
बलीवर्दौ च शकटं ब्राह्मणाय न्यवेदयत्। तूष्णीमन्तर्गृहं गच्छेत्यभिधाय द्विजोत्तमम्।। | 1-178-11a 1-178-11b |
मातृभ्रातृसमक्षं च गत्वा शयनमेव च। आचचक्षेऽथ तत्सर्वं रात्रौ युद्धमभूद्यथा।।' | 1-178-12a 1-178-12b |
ततो नरा विनिष्क्रान्ता नगरात्कल्यमेव तु। ददृशुर्निहतं भूमौ राक्षसं रुधिरोक्षितम्।। | 1-178-13a 1-178-13b |
तमद्रिकूटसदृशं विनिकीर्णं भयानकम्। दृष्ट्वा संहृष्टरोमाणो बभूवुस्तत्र नागराः।। | 1-178-14a 1-178-14b |
एकचक्रां ततो गत्वा प्रवृत्तिं प्रददुः पुरे। ततः सहस्रशो राजन्नरा नगरवासिनः।। | 1-178-15a 1-178-15b |
तत्राजग्मुर्बकं द्रष्टुं सस्त्रीवृद्धकुमारकाः। ततस्ते विस्मिताः सर्वे कर्म दृष्ट्वाऽतिमानुषम्। दैवतान्यर्चयाञ्चक्रुः प्रार्थितानि पुरा भयात्।। | 1-178-16a 1-178-16b 1-178-16c |
ततः प्रगणयामासुः कस्य वारोऽद्य भोजने। ज्ञात्वा चागम्य तं विप्रं पप्रच्छुः सर्व एव ते।। | 1-178-17a 1-178-17b |
एवं पृष्टः स बहुशो रक्षमाणश्च पाण्डवान्। उवाच नागरान्सर्वानिदं विप्रर्षभस्तदा।। | 1-178-18a 1-178-18b |
ब्राह्मण उवाच। | 1-179-19x |
आज्ञापितं मामशने रुदन्तं सह बन्धुभिः। ददर्श ब्राह्मणः कश्चिन्मन्त्रसिद्धो महामनाः।। | 1-178-19a 1-178-19b |
परिपृच्छ्य स मां पूर्वं परिक्लेशं पुरस्य च। अब्रवीद्ब्राह्मणश्रेष्ठो विश्वास्य प्रहसन्निव।। | 1-178-20a 1-178-20b |
प्रापयिष्याम्यहं तस्मा अन्नमेतद्दुरात्मने। मन्निमित्तं भयं चापि न कार्यमिति चाब्रवीत्।। | 1-178-21a 1-178-21b |
स तदन्नमुपादाय गतो बकवनं प्रति। तेन नूनं भवेदेतत्कर्म लोकहितं कृतम्।। | 1-178-22a 1-178-22b |
ततस्ते ब्राह्मणाः सर्वे क्षत्रियाश्च सुविस्मिताः। वैश्याः शूद्राश्च मुदिताश्चक्रुर्ब्रह्ममहं तदा।। | 1-178-23a 1-178-23b |
ततो जानपदाः सर्वे आजग्मुर्नगरं प्रति। तमद्भुततमं द्रष्टुं पार्थास्तत्रैव चावसन्।। | 1-178-24a 1-178-24b |
वेत्रकीयगृहे सर्वे परिवार्य वृकोदरम्। विस्मयादभ्यगच्छन्त भीमं भीमपराक्रमम्।। | 1-178-25a 1-178-25b |
न वै न संभवेत्सर्वं ब्राह्मणेषु महात्मसु। इति सत्कृत्य तं पौराः परिवव्रुः समन्ततः।। | 1-178-26a 1-178-26b |
अयं त्राता हि खेदानां पितेव परमार्थतः। अस्य शुश्रूषवः पादौ परिचर्य उपास्महे।। | 1-178-27a 1-178-27b |
पशुमद्दधिमनच्चास्य वारं भक्तमुपाहरन्। तस्मिन्हते ते पुरुषा भीताः समनुबोधनाः।। | 1-178-28a 1-178-28b |
ततः संप्राद्रवन्पार्थाः सह मात्रा परन्तपाः। आगच्छन्नेकचक्रां ते गाण्डवाः संशितव्रताः।। | 1-178-29a 1-178-29b |
वैदिकाध्ययने युक्ता जटिला ब्रह्मचारिणः। अवसंस्ते च तत्रापि ब्राह्मणस्य निवेशने। मात्रर सहैकचक्रायां दीर्घकालं सहोषिताः।। | 1-178-30a 1-178-30b 1-178-30c |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि बकवधपर्वणि अष्टसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 178 ।। | |
।। समाप्तं च बकवधपर्व ।। |
1-178-13 कल्यं प्रातःकाले।। 1-178-19 आज्ञापितं राजकीयैरिति शेषः। अशने राक्षसस्य भोजनार्थम्।। अष्टसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 178 ।।
आदिपर्व-177 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-179 |