महाभारतम्-01-आदिपर्व-091
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मृगयाप्रसङ्गेन दुष्यन्तस्य कण्वाश्रमगमनम्।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-91-1x |
ततो मृगसहस्राणि हत्वा सबलवाहनः। तत्र मेघघनप्रख्यं सिद्धचारणसेवितम्।। | 1-91-1a 1-91-1b |
वनमालोकयामास नगराद्योजनद्वये। मृगाननुचरन्वन्याञ्श्रमेण परिपीडितः।। | 1-91-2a 1-91-2b |
मृगाननुचरन्राजा वेगेनाश्वानचोदयत्। राजा मृगप्रसङ्गेन वनमन्यद्विवेश ह।। | 1-91-3a 1-91-3b |
एक एवोत्तमबलः क्षुत्पिपासाश्रमान्वितः। स वनस्यान्तमासाद्य महच्छून्यं समासदत्।। | 1-91-4a 1-91-4b |
तच्चाप्यतीत्य नृपतिरुत्तमाश्रमसंयुतम्। मनःप्रह्लादजननं दृष्टिकान्तमतीव च।। | 1-91-5a 1-91-5b |
सीतमारुतसंयुक्तं जगामान्यन्महद्वनम्। पुष्पितैः पादपैः कीर्णमतीव सुखशाद्वलम्।। | 1-91-6a 1-91-6b |
विपुलं मधुरारावैर्नादितं विहगैस्तथा। पुंस्कोकिलनिनादैश्च झिल्लीकगणनादितम्।। | 1-91-7a 1-91-7b |
प्रवृद्धविटपैर्वृक्षैः सुखच्छायैः समावृतम्। षट्पदाघूर्णिततलं लक्ष्म्या परमया युतम्।। | 1-91-8a 1-91-8b |
नापुष्पः पादपः कश्चिन्नाफलो नापि कण्टकी। षट्पदैर्नाप्यपाकीर्णस्तस्मिन्वै काननेऽभवत्।। | 1-91-9a 1-91-9b |
विगहैर्नादितं पुष्पैरलङ्कृतमतीव च। सर्वर्तुकुसुमैर्वृक्षैः सुखच्छायैः समावृतम्।। | 1-91-10a 1-91-10b |
मनोरमं सहेष्वासो विवेश वनमुत्तमम्। मारुता कलितास्तत्र द्रुमाः कुसुमशाखिनः।। | 1-91-11a 1-91-11b |
पुष्पवृष्टिं विचित्रां तु व्यसजंस्ते पुनः पुनः। दिवस्पृशोऽथ संघुष्टाः पक्षिभिर्मधुरस्वनैः।। | 1-91-12a 1-91-12b |
विरेजुः पादपास्तत्र विचित्रकुसुमाम्बराः। तेषां तत्र प्रवालेषु पुष्पभारावनामिषु।। | 1-91-13a 1-91-13b |
रुवन्ति रावान्मधुरान्षट्पदा मधुलिप्सवः। तत्र प्रदेशांश्च बहून्कुसुमोत्करमण्डितान्।। | 1-91-14a 1-91-14b |
लतागृहपरिक्षिप्तान्मनसः प्रीतिवर्धनान्। संपश्यन्सुमहातेजा बभूव मुदितस्तदा।। | 1-91-15a 1-91-15b |
परस्पराश्लिष्टशाखैः पादपैः कुसुमान्वितैः। अशोभत वनं तत्तु महेन्द्रध्वजसन्निभैः।। | 1-91-16a 1-91-16b |
सिद्धचारणसङ्घैश्च गन्धर्वाप्सरसां गणैः। सेवितं वनमत्यर्थं मत्तवानरकिन्नरैः।। | 1-91-17a 1-91-17b |
सुखः शीतः सुगन्धी च पुष्परेणुवहोऽनिलः। परिक्रामन्वने वृक्षानुपैतीव रिरंसया।। | 1-91-18a 1-91-18b |
एवंगुणसमायुक्तं ददर्श स वनं नृपः। नदीकच्छोद्भं कान्तमुच्छ्रितध्वजसन्निभम्।। | 1-91-19a 1-91-19b |
प्रेक्षमाणो वनं तत्तु सुप्रहृष्टविहङ्गमम्। आश्रमप्रवरं रम्यं ददर्श च मनोरमम्।। | 1-91-20a 1-91-20b |
नानावृक्षसमाकीर्णं संप्रज्वलितपावकम्। तं तदाऽप्रतिमं श्रीमानाश्रमं प्रत्यपूजयत्।। | 1-91-21a 1-91-21b |
यतिभिर्वालखिल्यैश्च वृतं मुनिगणान्वितम्। अग्न्यगारैश्च बहुभिः पुष्पसंस्तरसंस्तृतम्।। | 1-91-22a 1-91-22b |
महाकच्छैर्बृहद्भिश्च विभ्राजितमतीव च। मालिनीमभितो राजन्नदीं पुण्यां सुखोदकाम्।। | 1-91-23a 1-91-23b |
नैकपक्षिगणाकीर्णां तपोवनमनोरमाम्। तत्रव्यालमृगान्सैम्यान्पश्यन्प्रीतिमवाप सः।। | 1-91-24a 1-91-24b |
तं चाप्रतिरथः श्रीमानाश्रमं प्रत्यपद्यत। देवलोकप्रतीकाशं सर्वतः सुमनोहरम्।। | 1-91-25a 1-91-25b |
नदीं चाश्रमसंश्लिष्टां पुण्यतोयां ददर्श सः। सर्वप्राणभृतां तत्र जननीमिव धिष्ठिताम्।। | 1-91-26a 1-91-26b |
सचक्रवाकपुलिनां पुष्पफेनप्रवाहिनीम्। सकिन्नरगणावासां वारनर्क्षनिषेविताम्।। | 1-91-27a 1-91-27b |
पुण्यस्वाध्यायसंघुष्टा पुलिनैरुपशोभिताम्। मत्तवारणशार्दूलभुजगेन्द्रनिषेविताम्।। | 1-91-28a 1-91-28b |
तस्यास्तीरे भगवतः काश्यपस्य महात्मनः। आश्रमप्रवरं रम्यं महर्षिगणसेवितम्।। | 1-91-29a 1-91-29b |
नदीमाश्रमसंबद्धां दृष्ट्वाश्रमपदं तथा। चकाराभिप्रवेशाय मतिं स नृपतिस्तदा।। | 1-91-30a 1-91-30b |
अलङ्कृतं द्वीपवत्या मालिन्या रम्यतीरया। नरनारायणस्थानं गङ्गयेवोपशोभितम्।। | 1-91-31a 1-91-31b |
मत्तबर्हिणसंघुष्टं प्रविवेश महद्वनम्। तत्स चैत्ररथप्रख्यं समुपेत्य नरर्षभः।। | 1-91-32a 1-91-32b |
अतीव गुणसंपन्नमनिर्देश्यं च वर्चसा। महर्षिं काश्यपं द्रष्टुमथ कण्वं तपोधनम्।। | 1-91-33a 1-91-33b |
ध्वजिनीमश्वसंबाधां पदातिगजसङ्कुलाम्। अवस्थाप्य वनद्वारि सेनामिदमुवाच सः।। | 1-91-34a 1-91-34b |
मुनिं विरजसं द्रष्टुं गमिष्यामि तपोधनम्। काश्यपं स्थीयतामत्र यावदागमनं मम।। | 1-91-35a 1-91-35b |
तद्वनं नन्दनप्रख्यमासाद्य मनुजेश्वरः।। क्षुत्पिपासे जहौ राजा मुदं चावाप पुष्कलाम्।। | 1-91-36a 1-91-36b |
सामात्यो राजलिङ्गानि सोपनीय नराधिपः। पुरोहितसहायश्च जगामाश्रममुत्तमम्।। | 1-91-37a 1-91-37b |
दिदृक्षुस्तत्र तमृषिं तपोराशिमथाव्ययम्। ब्रह्मलोकप्रतीकाशमाश्रमं सोऽभिवीक्ष्य ह। षट्पदोद्गीतसंघुष्टं नानाद्विजगणायुतम्।। | 1-91-38a 1-91-38b 1-91-38c |
विस्मयोत्फुल्लनयनो राजा प्रीतो बभूवह। ऋचो बह्वृचमुख्यैश्च प्रेर्यमाणाः पदक्रमैः। शुश्राव मनुजव्याघ्रो विततेष्विह कर्मसु।। | 1-91-39a 1-91-39b 1-91-39c |
यज्ञविद्याङ्गविद्भिश्च यजुर्विद्भिश्च शोभितम्। मधुरैः सामगीतैश्च ऋषिभिर्नियतव्रतैः।। | 1-91-40a 1-91-40b |
भारुण्डसामगीताभिरथर्वशिरसोद्गतैः। यतात्मभिः सुनियतैः शुशुभे स तदाश्रमः।। | 1-91-41a 1-91-41b |
अथर्ववेदप्रवराः पूगयज्ञियसामगाः। संहितामीरयन्ति स्म पदक्रमयुतां तु ते।। | 1-91-42a 1-91-42b |
शब्दसंस्कारसंयुक्तर्ब्रुवद्भिश्चापरैर्द्विजैः। नादितः स बभौ श्रीमान्ब्रह्मलोक इवापरः।। | 1-91-43a 1-91-43b |
यज्ञसंस्तरविद्भिश्च क्रमशिक्षाविशारदैः। न्यायतत्त्वात्मविज्ञानसंपन्नैर्वेदपारगैः।। | 1-91-44a 1-91-44b |
नानावाक्यसमाहारसमवायविशारदैः। विशेषकार्यविद्भिश्च मोक्षधर्मपरायणैः।। | 1-91-45a 1-91-45b |
स्तापनाक्षेपसिद्धान्तपरमार्थज्ञतां गतैः। शब्दच्छन्दोनिरुक्तज्ञैः कालज्ञानविशारदैः।। | 1-91-46a 1-91-46b |
द्रव्यकर्मगुणज्ञैश्च कार्यकारणवेदिभिः। पक्षिवानररुतज्ञैश्च व्यासग्रन्थसमाश्रितैः।। | 1-91-47a 1-91-47b |
नानाशास्त्रेषु मुख्यैश्च शुश्राव स्वनमीरितम्। लोकायतिकमुख्यैश्च समन्तादनुनादितम्।। | 1-91-48a 1-91-48b |
तत्रतत्र च विप्रेन्द्रान्नियतान्संशितव्रतान्। जपहोमपरान्विप्रान्ददर्श परवीरहा।। | 1-91-49a 1-91-49b |
आसनानि विचित्राणि रुचिराणि महीपतिः। प्रयत्नोपहितानि स्म दृष्ट्वा विस्मयमागमत्।। | 1-91-50a 1-91-50b |
देवतायतनानां च प्रेक्ष्य पूजां कृतां द्विजैः। ब्रह्मलोकस्थमात्मानं मेने स नृपसत्तमः।। | 1-91-51a 1-91-51b |
स काश्यपतपोगुप्तमाश्रमप्रवरं शुभम्। नातृप्यत्प्रेक्षमाणो वै तपोवनगुणैर्युतम्।। | 1-91-52a 1-91-52b |
स काश्यपस्यायतनं महाव्रतै- र्वृतं समान्तादृषिभिस्तपोधनैः। विवेश सामात्यपुरोहितोऽरिहा विविक्तमत्यर्थमनोहरं शुभम्।। | 1-91-53a 1-91-53b 1-91-53c 1-91-53d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि एकनवतितमोऽध्यायः।। 91 ।। |
1-91-4 शून्यं वृक्षादिरहितमूषरम्।। 1-91-18 रिरंसया रमयितुमिच्छया।। 1-91-19 नदीकच्छोद्भवं कच्छः सजलोऽनूपप्रदेशः।। 1-91-29 काश्यपस्य कश्यपगोत्रस्य कण्वस्य।। 1-91-39 विततेषु वैतानिकेषु इष्टिपशुसोमादिषु प्रवर्तमानेषु।। 1-91-40 यज्ञविद्यायामङ्गभूतानि कल्पसूत्रादीनि।। 1-91-41 भारुण्डसामानि पूगयज्ञियसामानि च साम्नामवान्तरभेदाः।। 1-91-46 स्थापनं प्रथमं स्वसिद्धान्तव्यवस्था ततस्तत्र शङ्काऽऽक्षेपः तस्याः परिहारः सिद्धान्तस्तैर्या परमार्थज्ञता तां गतैः।। 1-91-48 लोके एव आयतन्ते ते लोकायतिकाः तेषु लोकरञ्जनपरेषु मुख्यैः।। एकनवतितमोऽध्यायः।। 91 ।।
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