महाभारतम्-01-आदिपर्व-066
Jump to navigation
Jump to search
← आदिपर्व-065 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-066 वेदव्यासः |
आदिपर्व-067 → |
(अथ संभवपर्व।। 7 ।।)
अदित्यादिदक्षकन्यावंशकथनम्।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। अथ नारायणेनेन्द्रश्चकार सह संविदम्। अवतर्तुं महीं स्वर्गादंशतः महितः सुरैः।। | 1-66-1x 1-66-1a 1-66-1b |
आदिश्य च स्वयं शक्रः सर्वानेव दिवौकसः। निर्जगाम पुनस्तस्मात्क्षयान्नारायणस्य ह।। | 1-66-2a 1-66-2b |
तेऽमरारिविनाशाय सर्वलोकहिताय च। अवतेरुः क्रमेणैव महीं स्वर्गाद्दिवौकसः।। | 1-66-3a 1-66-3b |
ततो ब्रह्मर्षिवंशेषु पार्थिवर्षिकुलेषु च। जज्ञिरे राजशार्दूल यथाकामं दिवौकसः।। | 1-66-4a 1-66-4b |
दानवान्राक्षसांश्चैव गन्धर्वान्पन्नगांस्तथा। पुरुषादानि चान्यानि जघ्नुः सत्वान्यनेकशः।। | 1-66-5a 1-66-5b |
दानवा राक्षसाश्चैव गन्धर्वाः पन्नगास्तथा। न तान्बलस्थान्बाल्येऽपि जघ्नुर्भरतसत्तम।। | 1-66-6a 1-66-6b |
जनमेजय उवाच। | 1-66-7x |
देवदानवसङ्घानां गन्धर्वाप्सरसां तथा। मानवानां च सर्वेषां तथा वै यक्षरक्षसाम्।। | 1-66-7a 1-66-7b |
श्रोतुमिच्छामि तत्त्वेन संभवं कृत्स्नमादितः। प्राणिनां चैव सर्वेषां संभवं वक्तुमर्हसि।। | 1-66-8a 1-66-8b |
वैशम्पायन उवाच। | 1-66-9x |
हन्त ते कथयिष्यामि नमस्कृत्य स्वयंभुवे। सुरादीनामहं सम्यग्लोकानां प्रभवाप्ययम्।। | 1-66-9a 1-66-9b |
ब्रह्मणो मानसाः पुत्रा विदिताः षण्महर्षयः। मरीचिरत्र्यह्गिरसौ पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः।। | 1-66-10a 1-66-10b |
मरीचेः कश्यपः पुत्रः कश्यपात्तु इमाः प्रजाः। प्रजज्ञिरे महाभागा दक्षकन्यास्त्रयोदश।। | 1-66-11a 1-66-11b |
अदितिर्दितिर्दनुः काला दनायुः सिंहिका तथा। क्रोधा प्राधा च विश्वा च विनता कपिला मुनिः।। | 1-66-12a 1-66-12b |
कद्रूश्च मनुजव्याघ्र दक्षकन्यैव भारत। एतासां वीर्यसंपन्नं पुत्रपौत्रमनन्तकम्।। | 1-66-13a 1-66-13b |
अदित्यां द्वादशादित्याः संभूता भुवनेश्वराः। ये राजन्नामतस्तांस्ते कीर्तयिष्यामि भारत।। | 1-66-14a 1-66-14b |
धाता मित्रोऽर्यमा शक्रो वरुणस्त्वंश एव च। भगो विवस्वान्पूषा च सविता दशमस्तथा।। | 1-66-15a 1-66-15b |
एकादशस्तथा त्वष्टा द्वादशो विष्णुरुच्यते। जघन्यजस्तु सर्वेषामादित्यानां गुणाधिकः।। | 1-66-16a 1-66-16b |
एक एव दितेः पुत्रो हिरण्यकशिपुः स्मृतः। नाम्ना ख्यातास्तु तस्येमे पञ्च पुत्रा महात्मनः।। | 1-66-17a 1-66-17b |
प्रह्लादः पूर्वजस्तेषां संह्लादस्तदनन्तरम्। अनुह्लादस्तृतीयोऽभूत्तस्माच्च शिबिबाष्कलौ।। | 1-66-18a 1-66-18b |
प्रह्लादस्य त्रयः पुत्राः ख्याताः सर्वत्र भारत। विरोचनश्च कुम्भश्च निकुम्भश्चेति भारत।। | 1-66-19a 1-66-19b |
विरोचनस्य पुत्रोऽभूद्बलिरेकः प्रतापवान्। बलेश्च प्रथितः पुत्रो बाणो नाम महासुरः।। | 1-66-20a 1-66-20b |
रुद्रस्यानुचरः श्रीमान्महाकालेति यं विदुः। चत्वारिंशद्दनोः पुत्राः ख्याताः सर्वत्र भारत।। | 1-66-21a 1-66-21b |
तेषां प्रथमजो राजा विप्रचित्तिर्महायशाः। शम्बरो नमुचिश्चैव पुलोमा चेति विश्रुतः।। | 1-66-22a 1-66-22b |
असिलोमा च केशी च दुर्जयश्चैव दानवः। अयःशिरा अश्वशिरा अश्वशह्कुश्च वीर्यवान्।। | 1-66-23a 1-66-23b |
तथा गगनमूर्धा च वेगवान्केतुमांश्च सः। स्वर्भानुरश्वोऽश्वपतिर्वृषपर्वाऽजकस्तथा।। | 1-66-24a 1-66-24b |
अश्वग्रीवश्च सूक्ष्मश्च तुहुण्डश्च महाबलः। इषुपादेकचक्रश्च विरूपाक्षहराहरौ।। | 1-66-25a 1-66-25b |
निचन्द्रश्च निकुम्भश्च कुपटः कपटस्तथा। शरभः शलभश्चैव सूर्याचन्द्रमसौ तथा। एते ख्याता दनोर्वंशे दानवाः परिकीर्तिताः।। | 1-66-26a 1-66-26b 1-66-26c |
अन्यौ तु खलु देवानां सूर्याचन्द्रमसौ स्मृतौ। अन्यौ दानवमुख्यानां सूर्याचन्द्रमसौ तथा।। | 1-66-27a 1-66-27b |
इमे च वंशाः प्रथिताः सत्ववन्तो महाबलाः। दनुपुत्रा महाराज दश दानववंशजाः।। | 1-66-28a 1-66-28b |
एकाक्षो मृतपो वीरः प्रलम्बनरकावपि। वातापिः शत्रुतपनः शठश्चैव महासुरः।। | 1-66-29a 1-66-29b |
गविष्ठश्च वनायुश्च दीर्घजिह्वश्च दानवः। असङ्ख्येयाः स्मृतास्तेषां पुत्राः पौत्राश्च भारत।। | 1-66-30a 1-66-30b |
सिंहिका सुषुवे पुत्रं राहुं चन्द्रार्कमर्दनम्। सुचन्द्रं चन्द्रहर्तारं तथा चन्द्रप्रमर्दनम्।। | 1-66-31a 1-66-31b |
क्रूरस्वभावं क्रूरायाः पुत्रपौत्रमनन्तकम्। गणः क्रोधवशो नाम क्रूरकर्माऽरिमर्दनः।। | 1-66-32a 1-66-32b |
दनायुषः पुनः पुत्राश्चत्वारोऽसुरपुंगवाः। विक्षरो बलवीरौ च वृत्रश्चैव महासुरः।। | 1-66-33a 1-66-33b |
कालायाः प्रथिताः पुत्राः कालकल्पाः प्रहारिणः। प्रविख्याता महावीर्या दानवेषु परन्तपाः।। | 1-66-34a 1-66-34b |
विनाशनश्च क्रोधश्च क्रोधहन्ता तथैव च। क्रोधशत्रुस्तथैवान्ये कालकेया इति श्रुताः।। | 1-66-35a 1-66-35b |
असुराणामुपाध्यायः शक्रस्त्वषिसुतोऽभवत्। ख्याताश्चोशनसः पुत्राश्चत्वारोऽसुरयाजकाः।। | 1-66-36a 1-66-36b |
त्वष्टा धरस्तथात्रिश्च द्वावन्यौ रौद्रकर्मिणौ। तेजसा सूर्यसंकाशा ब्रह्मलोकपरायणाः।। | 1-66-37a 1-66-37b |
इत्येष वंशप्रभवः कथितस्ते तरस्विनाम्। असुराणां सुराणां च पुराणे संश्रुतो मया।। | 1-66-38a 1-66-38b |
एतेषां यदपत्यं तु न शक्यं तदशेषतः।। प्रसंख्यातुं महीपाल गुणभूतमनन्तकम्।। | 1-66-39a 1-66-39b |
तार्क्ष्यश्चारिष्टनेमिश्च तथैव गरुडारुणौ। आरुणिर्वारुणिश्चैव वैनतेयाः प्रकीर्तिताः।। | 1-66-40a 1-66-40b |
शेषोऽनन्तो वासुकिश्च तक्षकश्च भुजङ्गमः। कूर्मश्च कुलिकश्चैव काद्रवेयाः प्रकीर्तिताः।। | 1-66-41a 1-66-41b |
भीमसेनोग्रसेनौ च सुपर्णो वरुणस्तथा। गोपतिर्धृतराष्ट्रश्च सूर्यवर्चाश्च सप्तमः।। | 1-66-42a 1-66-42b |
सत्यवागर्कपर्णश्च प्रयुतश्चापि विश्रुतः। भीमश्चित्ररथश्चैव विख्यातः सर्वविद्वशी।। | 1-66-43a 1-66-43b |
तथा शालिशिरा राजन्पर्जन्यश्च चतुर्दशः। कलिः पञ्चदशस्तेषां नारदश्चैव षोडशः।। इत्येते देवगन्धर्वा मौनेयाः परिकीर्तिताः।। | 1-66-44a 1-66-44b 1-66-44c |
अथ प्रभूतान्यन्यानि कीर्तयिष्यामि भारत। अनवद्यां मनुं वंशामसुरां मार्गणप्रियाम्।। | 1-66-45a 1-66-45b |
अरूपां सुभगां भासीमिति प्राधा व्यजायत। सिद्धः पूर्णश्च बर्हिश्च पूर्णायुश्च महायशाः।। | 1-66-46a 1-66-46b |
ब्रह्मचारी रतिगुणः सुपर्णश्चैव सप्तमः। विश्वावसुश्च भानुश्च सुचन्द्रो दशमस्तथा।। | 1-66-47a 1-66-47b |
इत्येते देवगन्धर्वाः प्राधेयाः परिकीर्तिताः। इमं त्वप्सरसां वंशं विदितं पुण्यलक्षणम्।। | 1-66-48a 1-66-48b |
अरिष्टाऽसूत सुभगा देवी देवर्षितः पुरा। अलम्बुषा मिश्रकेशी विद्युत्पर्णा तिलोत्तमा।। | 1-66-49a 1-66-49b |
अरुणा रक्षिता चैव रम्बा तद्वन्मनोरमा। केशिनी च सुबाहुश्च सुरता सुरजा तथा।। | 1-66-50a 1-66-50b |
सुप्रिया चातिबाहुश्च विख्यातौ च हाहा हूहूः। तुम्बुरुश्चेति चत्वारः स्मृता गन्धर्वसत्तमाः।। | 1-66-51a 1-66-51b |
अमृतं ब्राह्मणा गावो गन्धर्वाप्सरसस्तथा। अपत्यं कपिलायास्तु पुराणे परिकीर्तितम्।। | 1-66-52a 1-66-52b |
इति ते सर्वभूतानां संभवः कथितो मया। यथावत्संपरिख्यातो गन्धर्वाप्सरसां तथा।। | 1-66-53a 1-66-53b |
भुजंगानां सुपर्णानां रुद्राणां मरुतां तथा। गवां च ब्राह्मणानां च श्रीमतां पुण्यकर्मणाम्।। | 1-66-54a 1-66-54b |
आयुष्यश्चैव पुण्यश्च धन्यः श्रुतिसुखावहः। श्रोतव्यश्चैव सततं श्राव्यश्चैवानसूयता।। | 1-66-55a 1-66-55b |
इमं तु वंशं नियमेन यः पठे- न्महात्मनां ब्राह्मणदेवसन्निधौ। अपत्यलाभं लभते स पुष्कलं श्रियं यशः प्रेत्य च शोभनां गतिम्।। | 1-66-56a 1-66-56b 1-66-56c 1-66-55d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।। |
[सम्पाद्यताम्]
1-66-2 क्षयात् स्थानात्।। 1-66-16 जघन्यजः पश्चाज्जातः।। 1-66-32 क्रूरायाः क्रोधायाः।। 1-66-39 गुणभूतप्रधानरूपम्।। षट्षष्टितमोऽध्यायः।। 66 ।।
आदिपर्व-065 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-067 |