महाभारतम्-01-आदिपर्व-088
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पूरुवंशकथनम्।। 1 ।।
जनमेजय उवाच। | 1-88-1x |
पुत्रं ययातेः प्रबूहि पूरुं धर्मभृतां वरम्। आनुपूर्व्येण ये चान्ये पूरोर्वंशविवर्धनाः।। | 1-88-1a 1-88-1b |
विस्तरेण पुनर्ब्रूहि दौष्यन्तेर्जनमेजयात्। संबभूव यथा राजा भरतो द्विजसत्तम।। | 1-88-2a 1-88-2b |
वैशंपायन उवाच। | 1-88-3x |
पूरुर्नृपतिशार्दूलो यथैवास्य पिता नृप। धर्मनित्यः स्थितो राज्ये शक्रतुल्यपराक्रमः।। | 1-88-3a 1-88-3b |
प्रवीरेश्वररौद्राश्वास्त्रयः पुत्रा महारथाः। पूरोः पौष्ट्यामजायन्त प्रवीरो वंशकृत्ततः।। | 1-88-4a 1-88-4b |
मनस्युरभवत्तस्माच्छूरसेनीसुतः प्रभुः। पृथिव्याश्चतुरन्ताया गोप्ता राजीवलोचनः।। | 1-88-5a 1-88-5b |
शक्तः संहननो वाग्मी सौवीरीतनयास्त्रयः। मनस्योरभवन्पुत्राः शूराः सर्वे महारथाः।। | 1-88-6a 1-88-6b |
अन्वग्भानुप्रभृतयो मिश्रकेश्यां मनस्विनः। रौद्राश्वस्य महेष्वासा दशाप्सरसि सूनवः।। | 1-88-7a 1-88-7b |
यज्वानो जज्ञिरे शूराः प्रजावन्तो बहुश्रुताः। सर्वे सर्वास्त्रविद्वासः सर्वे धर्मपरायणाः।। | 1-88-8a 1-88-8b |
ऋचेयुरथ कक्षेयुः कृकणेयुश्च वीर्यवान्। स्थण्डिलेयुर्वनेयुश्च जलेयुश्च महायशाः।। | 1-88-9a 1-88-9b |
तेजेयुर्बलावान्धीमान्सत्येयुश्चन्द्रविक्रमः। धर्मेयुः सन्नतेयुश्च दशमो देवविक्रमः।। | 1-88-10a 1-88-10b |
अनाधृष्टिरभूत्तेषां विद्वान्भुवि तथैकराट्। ऋचेयुरथ विक्रान्तो देवानामिव वासवः।। | 1-88-11a 1-88-11b |
अनाधृष्टिसुतस्त्वासीद्राजसूयाश्वमेधकृत्। मतिनार इति ख्यातो राजा परमधार्मिकः।। | 1-88-12a 1-88-12b |
मतिनारसुता राजंश्चत्वारोऽमितविक्रमाः। तंसुर्महानतिरथो द्रुह्युश्चाप्रतिमद्युतिः।। | 1-88-13a 1-88-13b |
तेषां तंसुर्महावीर्यः पौरवं वंशमुद्वहन्। आजहार यशो दीप्तं जिगाय च वसुंधराम्।। | 1-88-14a 1-88-14b |
ईलिनं तु सुतं तंसुर्जनयामास वीर्यवान्। सोऽपि कृत्स्नामिमां भूमिं विजिग्ये जयतां वरः।। | 1-88-15a 1-88-15b |
रथन्तर्यां सुतान्पञ्च पञ्चभूतोपमांस्ततः। ईलिनो जनयामास दुष्यन्तप्रभृतीन्नृपान्।। | 1-88-16a 1-88-16b |
दुष्यन्तं शूरभीमौ च प्रवसुं वसुमेव च। तेषां श्रेष्ठोऽभवद्राजा दुष्यन्तो दुर्जयो युधि।। | 1-88-17a 1-88-17b |
दुष्यन्ताल्लक्षणायां तु जज्ञे वै जनमेजयः। शकुन्तलायां भरतो दौष्यन्तिरभवत्सुतः।। | 1-88-18a 1-88-18b |
तस्माद्भरतवंशस्य विप्रतस्थे महद्यशः।। | 1-88-19a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि अष्टाशीतितमोऽध्यायः।। 88 ।। |
आदिपर्व-087 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-089 |