महाभारतम्-01-आदिपर्व-229
दिखावट
← आदिपर्व-228 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-229 वेदव्यासः |
आदिपर्व-230 → |
सुन्दोपसुन्दकथा--सुन्दोपसुन्दयोर्ब्रह्मणो वरलाभः।। 1 ।।
नारद उवाच। | 1-229-1x |
शणु मे विस्तरेणेममितिहासं पुरातनम्। भ्रातृभिः सहितः पार्थ यथा वृत्तं युधिष्ठिर।। | 1-229-1a 1-229-1b |
महासुरस्यान्ववाये हिरण्यकशिपोः पुरा। निकुम्भो नाम दैत्येन्द्रस्तेजस्वी बलवानभूत्।। | 1-229-2a 1-229-2b |
तस्य पुत्रौ महावीर्यौ जातौ भीमपराक्रमौ। सुन्दोपसुन्दौ दैत्येन्द्रौ दारुणौ क्रूरमानसौ।। | 1-229-3a 1-229-3b |
तावेकनिश्चयौ दैत्यावेककार्यार्थसंमतौ। निरन्तरमवर्तेतां समदुःखसुखावुभौ।। | 1-229-4a 1-229-4b |
विनाऽन्योन्यं न भुञ्जाते विनाऽन्योन्यं न जल्पतः। अन्योन्यस्य प्रियकरावन्योन्यस्य प्रियंवदौ।। | 1-229-5a 1-229-5b |
एकशीलसमाचारौ द्विधैवैकोऽभवत्कृतः। तौ विवृद्धौ महावीर्यौ कार्येष्वप्येकनिश्चयौ।। | 1-229-6a 1-229-6b |
त्रैलोक्यविजयार्थाय समाधायैकनिश्चयम्। दीक्षां कृत्वा गतौ विन्ध्यं तावुग्रं तेपतुस्तपः।। | 1-229-7a 1-229-7b |
तौ तु दीर्घेण कालेन तपोयुक्तौ बभूवतुः। क्षुत्पिपासापरिश्रान्तौ जटावल्कलधारिणौ।। | 1-229-8a 1-229-8b |
मलोपचितसर्वाङ्गौ वायुभक्षौ बभूवतुः। आत्ममांसानि जुह्वान्तौ पादाङ्गुष्ठाग्रधिष्ठितौ। ऊर्ध्वबाहू चानिमिषौ दीर्घकालं धृतव्रतौ।। | 1-229-9a 1-229-9b 1-229-9c |
तयोस्तपःप्रभावेण दीर्घकालं प्रतापितः। धूमं प्रमुमुचे विन्ध्यस्तद्भुतमिवाभवत्।। | 1-229-10a 1-229-10b |
ततो देवा भयं जग्मुरुग्रं दृष्ट्वा तयोस्तपः। तपोविघातार्थमथो देवा विघ्नानि चक्रिरे।। | 1-229-11a 1-229-11b |
रत्नैः प्रलोभयामासुः स्त्रीभिश्चोभौ पुनःपुनः। न च तौ चक्रतुर्भङ्गं व्रतस्य सुमहाव्रतौ।। | 1-229-12a 1-229-12b |
अथ मायां पुनर्देवास्तयोश्चक्रुर्महात्मनोः। भगिन्यो मातरो भार्यास्तयोश्चात्मजनस्तथा।। | 1-229-13a 1-229-13b |
प्रपात्यमाना विस्रस्ताः शूलहस्तेन रक्षसा। भ्रष्टाभरणकेशान्ता भ्रष्टाभरणवाससः।। | 1-229-14a 1-229-14b |
अभिभाष्य ततः सर्वास्तौ त्राहीति विचुक्रुशुः। न च तौ चक्रतुर्भङ्गं व्रतस्य सुमहाव्रतौ।। | 1-229-15a 1-229-15b |
यदा क्षोभं नोपयाति नार्तिमन्यतरस्तयोः। ततः स्त्रियस्ता भूतं च सर्वमन्तरधीयत।। | 1-229-16a 1-229-16b |
ततः पितामहः साक्षादभिगम्य महासुरौ। वरेण च्छ्दयामास क्वलोकहितः प्रभुः।। | 1-229-17a 1-229-17b |
ततः सुन्दोपसुन्दौ तौ भ्रातरौ दृढविक्रमौ। दृष्ट्वा पितामहं देवं तस्थतुः प्राञ्जली तदा।। | 1-229-18a 1-229-18b |
ऊचतुश्च प्रभुं देवं ततस्तौ सहितौ तदा। आवयोस्तपसाऽनेन यदि प्रीतः पितामहः।। | 1-229-19a 1-229-19b |
मायाविदावस्त्रविदौ बलिनौ कामरूपिणौ। उभावप्यमरौ स्यावः प्रसन्नो यदि नौ प्रभुः।। | 1-229-20a 1-229-20b |
ब्रह्मोवाच। | 1-229-21x |
ऋतेऽमरत्वं युवयोः सर्वमुक्तं भविष्यति। अन्यद्वृणीतं मृत्योश्च विधानममरैः सम्।। | 1-229-21a 1-229-21b |
प्रभविष्याव इति यन्महदभ्युद्यतं तपः। युवयोर्हेतुनानेन नामरत्वं विधीयते।। | 1-229-22a 1-229-22b |
त्रैलोक्यविजयार्थाय भवद्भ्यामास्थितं तपः। हेतुनाऽनेन दैत्येन्द्रौ न वां कामं करोम्यहम्।। | 1-229-23a 1-229-23b |
सुन्दोपसुन्दावूचतुः। त्रिषु लोकेषु यद्भूतं किंचित्स्थावरजङ्गमम्। सर्वस्मान्नौ भयं न स्यादृतेऽन्योन्यं पितामह।। | 1-229-24a 1-229-24b 1-229-24c |
पितामह उवाच। | 1-229-25x |
यत्प्रार्थितं यथोक्तं च काममेतद्ददानि वाम्। मृत्योर्विधानमेतच्च यथावद्वा भविष्यति।। | 1-229-25a 1-229-25b |
नारद उवाच। | 1-229-26x |
ततः पितामहो दत्त्वा वरमेतत्तदा तयोः। निवर्त्य तपसस्तौ च ब्रह्मलोकं जगाम ह।। | 1-229-26a 1-229-26b |
लब्ध्वा वराणि दैत्येन्द्रावथ तौ भ्रातरावुभौ। अवध्यौ सर्वलोकस्य स्वमेव भवनं गतौ।। | 1-229-27a 1-229-27b |
तौ तु लब्धवरौ दृष्ट्वा कृतकामौ मनस्विनौ। सर्वः सुहृञ्जनस्ताभ्यां प्रहर्षमुपजग्मिवान्।। | 1-229-28a 1-229-28b |
ततस्तौ तु जटा भित्त्वा मौलिनौ संबभूवतुः। महार्हाभरणोपेतौ विरजोम्बरधारिणौ।। | 1-229-29a 1-229-29b |
अकालकौमुदीं चैव चक्रतुः सार्वकालिकीम्। नित्यः प्रमुदितः सर्वस्तयोश्चैव सुहृञ्जनः।। | 1-229-30a 1-229-30b |
भक्ष्यतां भुज्यतां नित्यं दीयतां रम्यतामिति। गीयेतां पीयतां चेति शभ्दश्चासीद्गृहे गृहे।। | 1-229-31a 1-229-31b |
तत्रतत्र महानादैरुत्कृष्टतलनादितैः। हृष्टं प्रमुदितं सर्वं दैत्यानामभवत्पुरम्।। | 1-229-32a 1-229-32b |
तैस्तैर्विहारैर्बहुभिर्दैत्यानां कामरूपिणाम्। समाः संक्रीडतां तेषामहरेकमिवाभवत्।। | 1-229-33a 1-229-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि एकोनत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 229 ।। |
आदिपर्व-228 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-230 |