महाभारतम्-01-आदिपर्व-069
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कुरुवंशकथनम्।। 1 ।। संक्षेपेण ययात्युपाख्यानम्।। 2 ।।
जनमेजय उवाच। | 1-69-1x |
त्वत्तः श्रुतमिदं ब्रह्मन्देवदानवरक्षसाम्। अंशावतरणं सम्यग्गन्धर्वाप्सरसां तथा।। | 1-69-1a 1-69-1b |
इमं तु भूय इच्छामि कुरूणां वंशमादितः। कथ्यमानं त्वया विप्र विप्रर्षिगणसन्निधौ।। | 1-69-2a 1-69-2b |
वैशंपायन उवाच। | 1-69-3x |
धर्मार्थकामसहितं राजर्षीणां प्रकीर्तितम्। पवित्रं कीर्त्यमानं मे निबोधेदं मनीषिणाम्।। | 1-69-3a 1-69-3b |
प्रजापतेस्तु दक्षस्य मनोर्वैवस्वतस्य च। भरतस्य कुरोः पूरोराजमीढस्य चानघ।। | 1-69-4a 1-69-4b |
यादवानामिमं वंशं कौरवाणां च सर्वशः। तथैव भरतानां च पुण्यं स्वस्त्ययनं महत्।। | 1-69-5a 1-69-5b |
धन्यं यशस्यमायुष्यं कीर्तयिष्यामि तेऽनघ। तेजोभिरुदिताः सर्वे महर्षिसमतेजसः।। | 1-69-6a 1-69-6b |
दश प्राचेतसः पुत्राः सन्तः पुण्यजनाः स्मृताः। मुखजेनाग्निना यैस्ते पूर्वं दग्धा महौजसः।। | 1-69-7a 1-69-7b |
तेभ्यः प्राचेतसो जज्ञे दक्षो दक्षादिमाः प्रजाः। संभूताः पुरुषव्याघ्र स हि लोकपितामहः।। | 1-69-8a 1-69-8b |
वीरिण्या सह सङ्गम्य दक्षः प्राचेतसो मुनिः। आत्मतुल्यानजनयत्सहस्रं संशितव्रतान्।। | 1-69-9a 1-69-9b |
सहस्रसङ्ख्यानसंभूतान्दक्षपुत्रांश्च नारदः। मोक्षमध्यापयामास साङ्ख्यज्ञानमनुत्तमम्।। | 1-69-10a 1-69-10b |
`नाशार्थं योजयामास दिगन्तज्ञानकर्मसु'। ततः पञ्चाशतं कन्या पुत्रिका अभिसन्दधे। प्रजापतिः प्रजा दक्षः सिसृक्षुर्जनमेजय।। | 1-69-11a 1-69-11b 1-69-11c |
ददौ दश स धर्माय कश्यपाय त्रयोदश। कालस्य नयने युक्ताः सप्तविंशतिमिन्दवे।। | 1-69-12a 1-69-12b |
त्रयोदशानां पत्नीनां या तु दाक्षायणी वरा। मारीचः कश्यपस्त्वस्यामादित्यान्समजीजनत्।। | 1-69-13a 1-69-13b |
इन्द्रादीन्वीर्यसंपन्नान्विवस्वन्तमथापि च। विवस्वतः सुतो जज्ञे यमो वैवस्वतः प्रभुः।। | 1-69-14a 1-69-14b |
`मार्ताण्डस्य यमी चापि सुता राजन्नजायत'। मार्तण्डस्य मनुर्धीमानजायत सुतः प्रभुः।। | 1-69-15a 1-69-15b |
धर्मात्मा स मनुर्धीमान्यत्र वंशः प्रतिष्ठितः। मनोर्वंशो मानवानां ततोऽयं प्रथितोऽभवत्।। | 1-69-16a 1-69-16b |
ब्रह्मक्षत्रादयस्तस्मान्मनोर्जातास्तु मानवाः। ततोऽभवन्महाराज ब्रह्म क्षत्रेण सङ्गतम्।। | 1-69-17a 1-69-17b |
ब्राह्मणा मानवास्तेषां साङ्गं वेदमदारयन्। वेनं धृष्णुं नरिष्यन्तं नाभागेक्ष्वाकुमेव च।। | 1-69-18a 1-69-18b |
कारूषमथ शर्यातिं तथा चैवाष्टमीमिलाम्। पृष्टध्रं नवमं प्राहुः क्षत्रधर्मपरायणम्।। | 1-69-19a 1-69-19b |
नाभागारिष्टदशमान्मनोः पुत्रान्प्रचक्षते। पञ्चाशत्तु मनोः पुत्रास्तथैवान्येऽभवन्क्षितौ।। | 1-69-20a 1-69-20b |
अन्योन्यभेदात्ते सर्वे विनेशुरिति नः श्रुतम्। पुरूरवास्ततो विद्वानिलायां समपद्यत।। | 1-69-21a 1-69-21b |
सा वै तस्याभवन्माता पिता चैवेति नः श्रुतम्। त्रयोदश समुद्रस्य द्वीपानश्नन्पुरूरवाः।। | 1-69-22a 1-69-22b |
अमानुषैर्वृतः सत्वैर्मानुषः सन्महायशाः। विप्रैः स विग्रहं चक्रे वीर्योन्मत्तः पुरूरवाः।। | 1-69-23a 1-69-23b |
जहार च स विप्राणां रत्नान्युत्क्रोशतामपि। सनत्कुमारस्तं राजन्ब्रह्मलोकादुपेत्य ह।। | 1-69-24a 1-69-24b |
अनुदर्शं ततश्चक्रे प्रत्यगृह्णान्न चाप्यसौ। ततो महर्षिभिः क्रुद्धैः सद्यः शप्तो व्यनश्यत।। | 1-69-25a 1-69-25b |
लोभान्वितो बलमदान्नष्टसंज्ञो नराधिपः। स हि गन्धर्वलोकस्थानुर्वश्या सहितो विराट्।। | 1-69-26a 1-69-26b |
आनिनाय क्रियार्थेऽग्नीन्यथावद्विहितांस्त्रिधा। षट् सुता जज्ञिरे चैलादायुर्धीमानमावसुः।। | 1-69-27a 1-69-27b |
दृढायुश्च वनायुश्च शतायुश्चोर्वशीसुताः। नहुषं वृद्धशर्माणं रजिं गयमनेनसम्।। | 1-69-28a 1-69-28b |
स्वर्भानवी सुतानेतानायोः पुत्रान्प्रचक्षते। आयुषो नहुषः पुत्रो धीमान्सत्यपराक्रमः।। | 1-69-29a 1-69-29b |
राज्यं शशास सुमहद्धर्मेण पृथिवीपते। पितॄन्देवानृषीन्विप्रान्गन्धर्वोरगराक्षसान्।। | 1-69-30a 1-69-30b |
नहुषः पालयामास ब्रह्मक्षत्रमथो विशः। स हत्वा दस्युसंघातानृषीन्करमदापयत्।। | 1-69-31a 1-69-31b |
पशुवच्चैव तान्पृष्ठे वाहयामास वीर्यवान्। कारयामास चेन्द्रत्वमभिभूय दिवौकसः।। | 1-69-32a 1-69-32b |
तेजसा तपसा चैव विक्रमेणौजसा तथा। `विश्लिष्टो नहुषः शप्तः सद्यो ह्यजगरोऽभवत्'। यतिं ययातिं संयातिमायातिमयतिं ध्रुवम्।। | 1-69-33a 1-69-33b 1-69-33c |
नहुषो जनयामास षट् सुतान्प्रियवादिनः। यतिस्तु योगमास्थाय ब्रह्मीभूतोऽभवन्मुनिः।। | 1-69-34a 1-69-34b |
ययातिर्नाहुषः सम्राडासीत्सत्यपराक्रमः। स पालयामास महीमीजे च बहुभिर्मखैः।। | 1-69-35a 1-69-35b |
अतिभक्त्या पितॄनर्चन्देवांश्च प्रयतः सदा। अन्वगृह्णात्प्रजाः सर्वा ययातिरपराजितः।। | 1-69-36a 1-69-36b |
तस्य पुत्रा महेष्वासाः सर्वैः समुदिता गुणैः। देवयान्यां महाराज शर्मिष्ठायां च जज्ञिरे।। | 1-69-37a 1-69-37b |
देवयान्यामजायेतां यदुस्तुर्वसुरेव च। द्रुह्युश्चानुश्च पूरुश्च शर्मिष्ठायां च जज्ञिरे।। | 1-69-38a 1-69-38b |
स शाश्वतीः समा राजन्प्रजा धर्मेण पालयन्। जरामार्च्छन्महाघोरां नाहुषो रूपनाशिनीम्।। | 1-69-39a 1-69-39b |
जराऽभिभूतः पुत्रान्स राजा वचनमब्रवीत्। यदुं पूरुं तुर्वसुं च द्रुह्युं चानुं च भारत।। | 1-69-40a 1-69-40b |
यौवनेन चरन्कामान्युवा युवतिभिः सह। बिहर्तुमहमिच्छामि साह्यं कुरुत पुत्रकाः।। | 1-69-41a 1-69-41b |
तं पुत्रो दैवयानेयः पूर्वजो वाक्यमब्रवीत्। किं कार्यं भवतः कार्यमस्माकं यौवनेन ते।। | 1-69-42a 1-69-42b |
ययातिरब्रवीत्तं वै जरा मे प्रतिगृह्यताम्। यौवनेन त्वदीयेन चरेयं विषयानहम्।। | 1-69-43a 1-69-43b |
यजतो दीर्घसत्रैर्मे शापाच्चोशनसो मुनेः। कामार्थः परिहीणोऽयं तप्येयं तेन पुत्रकाः।। | 1-69-44a 1-69-44b |
मामकेन शरीरेण राज्यमेकः प्रशास्तु वः। अहं तन्वाऽभिनवया युवा काममवाप्नुयाम्।। | 1-69-45a 1-69-45b |
वैशंपायन उवाच। | 1-69-46x |
ते न तस्य प्रत्यगृह्णन्यदुप्रभृतयो जराम्। तमब्रवीत्ततः पूरुः कनीयान्सत्यविक्रमः।। | 1-69-46a 1-69-46b |
राजंश्चराभिनवया तन्वा यौवनगोचरः। अहं जरां समादाय राज्ये स्थास्यामि तेज्ञया।। | 1-69-47a 1-69-47b |
एवमुक्तः स राजर्षिस्तपोवीर्यसमाश्रयात्। संचारयामास जरां तदा पुत्रे महात्मनि।। | 1-69-48a 1-69-48b |
पौरवेणाथ वयसा राजा यौवनमास्थितः। यायातेनापि वयसा राज्यं पूरुरकारयत्।। | 1-69-49a 1-69-49b |
ततो वर्षसहस्राणि ययातिरपराजितः। स्थितः स नृपशार्दूलः शार्दूलसमविक्रमः।। | 1-69-50a 1-69-50b |
ययातिरपि पत्नीभ्यां दीर्घकालं विहृत्य च। विश्वाच्या सहितो रेमे पुनश्चैत्ररथे वने।। | 1-69-51a 1-69-51b |
नाध्यगच्छत्तदा तृप्तिं कामानां स महायशाः। अवेत्य मनसा राजन्निमां गाथां तदा जगौ।। | 1-69-52a 1-69-52b |
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति। इविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्धते।। | 1-69-53a 1-69-53b |
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः। नालमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शमं व्रजेत्।। | 1-69-54a 1-69-54b |
यदा न कुरुते पापं सर्वभूतेषु कर्हिचित्। कर्मणा मनसा वाचा ब्रह्म संपद्यते तदा।। | 1-69-55a 1-69-55b |
न बिभेति यदा चायं यदा चास्मान्न बिभ्यति। यदा नेच्छति न द्वेष्टि ब्रह्म संपद्यते तदा।। | 1-69-56a 1-69-56b |
इत्यवेक्ष्य महाप्राज्ञः कामानां फल्गुतां नृप। समाधाय मनो बुद्ध्या प्रत्यगृह्णाज्जरां सुतात्।। | 1-69-57a 1-69-57b |
`ततो वर्षसहस्रान्ते ययातिरपराजितः।' दत्वा च यौवनं राजा पूरुं राज्येऽभिषिच्य च। अतृप्त एव कामानां पूरुं पुत्रमुवाच ह।। | 1-69-58a 1-69-58b 1-69-58c |
त्वया दायादवानस्मि त्वं मे वंशकरः सुतः। पौरवो वंश इति ते ख्यातिं लोके गमिष्यति।। | 1-69-59a 1-69-59b |
वैशंपायन उवाच। | 1-69-60x |
ततः स नृपशार्दूल पूरुं राज्येऽभिषिच्य च। ततः सुचरितं कृत्वा भृगुतुङ्गे महातपाः।। | 1-69-60a 1-69-60b |
कालेन महता पश्चात्कालधर्ममुपेयिवान्। कारयित्वा त्वनशनं सदारः स्वर्गमाप्तवान्।। | 1-69-61a 1-69-61b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि एकोनसप्ततितमोऽध्यायः।। 69 ।। |
1-69-7 प्राचेतसः प्राचे देशाय यज्ञक्रियया अतति सततं गच्छतीति प्राचेताः तस्य प्राचेतसः प्राचीनबर्हिषः। पुण्यजनाः पुण्योत्पादकास्तपः शीला इत्यर्थः। यैस्ते महौजसो महाप्रभावा वृक्षौषधयो दग्धाः।। 1-69-9 वीरिण्या वीरणपुत्र्या।। 1-69-10 मोक्षं मोक्षहेतुं। सांख्यज्ञानं विवेकजं विज्ञानम्।। 1-69-15 यमी यमुना।। 1-69-21 अन्योन्यभेदात्परस्परवैरात्।। 1-69-22 मातैव लब्धपुंभावा राज्य दानात्पिताप्यभूत्। मुख्यः पिता तु बुध एव।। 1-69-25 अनुदश दर्शो दर्शनं स पश्चाद्यस्य स श्रुतियुक्त्युपदेशोऽनुदर्शस्तं तत स्तदुपदेशमित्यर्थः।। 1-69-26 विराड्विराजमानः।। 1-69-27 त्रिधा गार्हपत्यदक्षिणाग्न्याहवनीयभेदेन। आयुःशब्दः उक रान्तः सान्तश्च।। 1-69-42 कार्यं प्रयोजनम्। कार्यं कर्तव्यम्।। 1-69-44 व्रतनिर्बन्धाच्छुक्रशापाच्च कामरूपः पुरुषार्थो हीनः।। 1-69-47 तेज्ञया तव आज्ञया। पूर्वरूपमाकारलोपो वार्षः।। 1-69-52 कामामां कामभोगेन। अवेत्य कामसेवया तृप्त्यभावं ज्ञात्वा।। 1-69-53 हविषा समिदाज्यादिना।। 1-69-54 एकस्य कामिनः सर्वं नालमपर्याप्तम्। शमं कामशान्तिम्।। 1-69-59 दायादवान् पुत्रवान्।। 1-69-61 कारयित्वा कृत्वा।। एकोनसप्ततितमोऽध्यायः।। 69 ।।
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