महाभारतम्-01-आदिपर्व-079
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विषयानुभवेन ययातेर्वैराग्यप्राप्तिः।। 1 ।। पूरोः ययातिना यौवनप्रत्यर्पणम्।। 2 ।। तस्य राज्याभिषेकः।। 3 ।। ययातेर्वनं प्रति गमनम्।। 4 ।। यदुप्रभृतीनां वंशकथनम्।। 5 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-79-1x |
पौरवेणाथ वयसा ययातिर्नहुषात्मजः। `रूपयौवनसंपन्नः कुमारः समपद्यत।' प्रीतियुक्तो नृपश्रेष्ठश्चरा विषयान्प्रियान्।। | 1-79-1a 1-79-1b 1-79-1c |
यथाकामं यथोत्साहं यथाकालं यथासुखम्। धर्माविरुद्धं राजेन्द्रो यथा भवति सोऽन्वभूत्।। | 1-79-2a 1-79-2b |
देवानतर्पयद्यज्ञैः श्राद्धैस्तद्वित्पितॄनपि। दीनाननुग्रहैरिष्टैः कामैश्च द्विजसत्तमान्।। | 1-79-3a 1-79-3b |
अतिथीनन्नपानैश्च विशश्च परिपालनैः। आनृशंस्येन शूद्रांश्च दस्यून्सन्निग्रहेण च।। | 1-79-4a 1-79-4b |
धर्मेण च प्रजाः सर्वा यथावदनुरञ्जयन्। ययातिः पालयामास साक्षादिन्द्र इवापरः।। | 1-79-5a 1-79-5b |
स राजा सिंहविक्रान्तो युवा विषयगोचरः। अविरोधेन धर्मस्य चचार सुखमुत्तमम्।। | 1-79-6a 1-79-6b |
स संप्राप्य शुभान्कामांस्तृप्तः खिन्नश्च पार्थिवः। कालं वर्षसहस्रान्तं सस्मार मनुजाधिपः।। | 1-79-7a 1-79-7b |
परिसंख्याय कालज्ञः कलाः काष्ठाश्च वीर्यवान्। यौवनं प्राप्य राजर्षिः सहस्रपरिवत्सरान्।। | 1-79-8a 1-79-8b |
विश्वाच्या सहितो रेमे व्यभ्राजन्नन्दने वने। अलकायां स कालं तु मेरुशृङ्गे तथोत्तरे।। | 1-79-9a 1-79-9b |
यदा स पश्यते कालं धर्मात्मा तं महीपतिः। पूर्णं मत्वा ततः कालं पूरुं पुत्रमुवाच ह।। | 1-79-10a 1-79-10b |
ययातिरुवाच। | 1-79-11x |
यथाकामं यथोत्साहं यथाकालमरिन्दम। सेविता विषयाः पुत्र यौवनेन मया तव।। | 1-79-11a 1-79-11b |
न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति। हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्धते।। | 1-79-12a 1-79-12b |
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः। एकस्यापि न पर्याप्तं तस्मान्नृष्णां परित्यजेत्।। | 1-79-13a 1-79-13b |
या दुस्त्यजा दुर्मतिभिर्या न जीर्यति जीर्यतः। योऽसौ प्राणान्तिको रोगस्तांतृष्णां त्यजतः सुखम्।। | 1-79-14a 1-79-14b |
पूर्णं वर्षसहस्रं मे विषयासक्तचेतसः। तथाप्यनुदिनं तृष्णा ममैतेष्वभिजायते।। | 1-79-15a 1-79-15b |
तस्मादेनामहं त्यक्त्वा ब्रह्मण्याधाय मानसम्। निर्द्वन्द्वो निर्ममो भूत्वा चरिष्यामि मृगैः सह।। | 1-79-16a 1-79-16b |
पूरो प्रीतोऽस्मि भद्रं ते गृहाणेदं स्वयौवनम्। राज्यं चेदं गृहाण त्वं `यावदिच्छसि यौवनम्। तावद्दीर्घायुषा भुङ्ख' त्वं हि मे प्रियकृत्सुतः।। | 1-79-17a 1-79-17b 1-79-17c |
वैशंपायन उवाच।' | 1-79-18x |
प्रतिपेदे जरां राजा ययातिर्नाहुषस्तदा। यौवनं प्रतिपेदे च पूरुः स्वं पुनरात्मवान्।। | 1-79-18a 1-79-18b |
अभिषेक्तुकामं नृपतिं पूरुं पुत्रं कनीयसम्। ब्राह्मणप्रमुखा वर्णा इदं वचनमब्रुवन्।। | 1-79-19a 1-79-19b |
कथं शुक्रस्य नप्तारं देवयान्याः सुतं प्रभो। ज्येष्ठं यदुमतिक्रम्य राज्यं पूरोः प्रयच्छसि।। | 1-79-20a 1-79-20b |
यदुर्ज्येष्ठस्तव सुतो जातस्तमनु तुर्वसुः। शर्मिष्ठायाः सुतो द्रुह्युस्ततोऽनुः पूरुरेव च।। | 1-79-21a 1-79-21b |
कथं ज्येष्ठानतिक्रम्य कनीयान्राज्यमर्हति। एतत्संबोधयामस्त्वां धर्मं त्वं प्रतिपालय।। | 1-79-22a 1-79-22b |
ययातिरुवाच। | 1-79-23x |
ब्राह्मणप्रमुखा वर्णाः सर्वे शृण्वन्तु मे वचः। ज्येष्ठं प्रति यथा राज्यं न देयं मे कथंचन।। | 1-79-23a 1-79-23b |
मम ज्येष्ठेन यदुना नियोगो नानुपालितः। प्रतिकूलः पितुर्यश्च न स पुत्रः सतां मतः।। | 1-79-24a 1-79-24b |
मातापित्रोर्वचनकृद्धितः पथ्यश्च यः सुतः। स पुत्रः पुत्रवद्यश्च वर्तते पितृमातृषु।। | 1-79-25a 1-79-25b |
`पुदिति नरकस्याख्या दुःखं च नरकं विदुः। पुतस्त्राणात्ततः पुत्त्रमिहेच्छन्ति परत्र च।। | 1-79-26a 1-79-26b |
आत्मनः सदृशः पुत्रः पितृदेवर्षिपूजने। यो बहूनां गुणकरः स पुत्रो ज्येष्ठ उच्यते।। | 1-79-27a 1-79-27b |
मूकोऽन्धो बधिरः श्वित्री स्वधर्मं नानुतिष्ठति। चोरः किल्बिषिकः पुत्रो ज्येष्ठो न ज्येष्ठ उच्यते।। | 1-79-28a 1-79-28b |
ज्येष्ठांशहारी गुणकृदिह लोके परत्र च। श्रेयान्पुत्रो गुणोपेतः स पुत्रो नेतरो वृथा। वदन्ति धर्मं धर्मज्ञाः पितॄणां पुत्रकारणात्।। | 1-79-29a 1-79-29b 1-79-29c |
वेदोक्तं संभवं मह्यमनेन हृदयोद्भवम्। तस्य जातमिदं कृत्स्नमात्मा पुत्र इति श्रुतिः'।। | 1-79-30a 1-79-30b |
यदुनाऽहमवज्ञातस्तथा तुर्वसुनापि च। द्रुह्युना चानुना चैव मय्यवज्ञ कृता भृशम्।। | 1-79-31a 1-79-31b |
पूरुणा तु कृतं वाक्यं मानितं च विशेषतः। कनीयान्मम दायादो धृता येन जरा मम।। | 1-79-32a 1-79-32b |
मम कामः स च कृतः पूरुणा मित्ररूपिणा। शुक्रेण च वरोदत्तः काव्येनोशनसा स्वयम्।। | 1-79-33a 1-79-33b |
पुत्रो यस्त्वाऽनुवर्तेत स राजा पृथिवीपतिः। `यो वानुवर्ती पुत्राणां स पुत्रो दायभाग्भवेत्'।। | 1-79-34a 1-79-34b |
भवतोऽनुनयाम्येवं पूरू राज्येऽभिषिच्यताम्। | 1-79-35a |
प्रकृतय ऊचुः। | 1-79-36x |
यः पुत्रो गुणसंपन्नो मातापित्रोर्हितः सदा।। | 1-79-35b |
सर्वमर्हति कल्याणं कनीयानपि सत्तमः। `वेद धमार्थशास्त्रेषु मुनिभिः कथितं पुरा'।। | 1-79-36a 1-79-36b |
अर्हः पूरुरिदं राज्यं यः सुतः प्रियकृत्तव। वरदानेन शुक्रस्य न शक्यं वक्तुमुत्तरम्।। | 1-79-37a 1-79-37b |
वैशंपायन उवाच। | 1-79-38x |
पौरजानपदैस्तुष्टैरित्युक्तो नाहुषस्तदा। अभ्यषिञ्चत्ततः पूरुं राज्ये स्वे सुतमात्मनः।। | 1-79-38a 1-79-38b |
`यदुं च तुर्वसुं चोभौ द्रुह्युं चैव सहानुजम्। अन्तेषु स विनिक्षिप्य नाहुषः स्वात्मजान्सुतान्'।। | 1-79-39a 1-79-39b |
दत्त्वा च पूरवे राज्यं वनवासाय दीक्षितः। पुरात्स निर्ययौ राजा ब्राह्मणैस्तापसैः सह।। | 1-79-40a 1-79-40b |
`देवयान्या च सहितः शर्मिष्ठया च भारत। अकरोत्स वने राजा सभार्यस्तप उत्तमम्'।। | 1-79-41a 1-79-41b |
यदोस्तु यादवा जातास्तुर्वसोर्यवनाः स्मृताः। द्रुह्योः सुतास्तु वै भोजा अनोस्तु म्लेच्छजातयः।। | 1-79-42a 1-79-42b |
पूरोस्तु पौरवो वंशो यत्र जातोऽसि पार्थिव। इदं वर्षसहस्राणि राज्यं कारयितुं वशी।। | 1-79-43a 1-79-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि ऊनाशीतितमोऽध्यायः।। 79 ।। |
1-79-1 चचार बुभोज।। 1-79-6 विषया दिव्यगन्धादयो गोचरे वशे यस्य स विषयगोचरः।। 1-79-19 कनीयसं कनीयांसम्।।
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