महाभारतम्-01-आदिपर्व-108
दिखावट
← आदिपर्व-107 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-108 वेदव्यासः |
आदिपर्व-109 → |
शान्तनुसत्यवतीविवाहः।। 1 ।।
चित्राङ्गदविचित्रवीर्ययोरुत्पत्तिः।। 2 ।।
शान्तनुमरणम्।। 3 ।।
चित्राङ्गदमरणम्।। 4 ।।
विचित्रवीर्यस्य राज्येऽभिषेकः।। 5 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-108-1x | ||
`चेदिराजसुतां ज्ञात्वा दाशराजेन वर्धिताम्। विवाहं कारयामास शास्त्रदृष्टेन कर्मणा।।' | 1-108-1a 1-108-1b | ||
ततो विवाहे निर्वृत्ते स राजा शान्तनुर्नृपः। तां कन्यां रूपसंपन्नां स्वगृहे संन्यवेशयत्।। | 1-108-2a 1-108-2b | ||
ततः शान्तनवो धीमान्सत्यवत्यामजायत। वीरश्चित्राङ्गदो नाम वीर्यवान्पुरुषेश्वरः।। | 1-108-3a 1-108-3b | ||
अथापरं महेष्वासं सत्यवत्यां सुतं प्रभुः। विचित्रवीर्यं राजानं जनयामास वीर्यवान्।। | 1-108-4a 1-108-4b | ||
अप्राप्तवति तस्मिंस्तु यौवनं पुरुषर्षभे। स राजा शान्तनुर्धीमान्कालधर्ममुपेयिवान्।। | 1-108-5a 1-108-5b | ||
स्वर्गते शान्तनौ भीष्मश्चित्राङ्गदमरिन्दनम्। स्थापयामास वै राज्ये सत्यवत्या मते स्थितः।। | 1-108-6a 1-108-6b | ||
स तु चित्राङ्गदः शौर्यात्सर्वांश्चिक्षेप पार्थिवान्। मनुष्यं न हि मेन स कंचित्सदृशमात्मनः।। | 1-108-7a 1-108-7b | ||
तं क्षिपन्तं सुरांश्चैव मनुष्यानसुरांस्तथा। गन्धर्वराजो बलवांस्तुल्यनामाऽभ्ययात्तदा।। | 1-108-8a 1-108-8b | ||
गन्धर्व उवाच। | 1-108-9x | ||
`त्वं वै सदृशनामासि युद्धं देहि नृपात्मज। नाम वाऽन्यत्प्रगृह्णीष्व यदि युद्धं न दास्यसि।। | 1-108-9a 1-108-9b | ||
त्वयाहं युद्धमिच्छामि त्वत्सकाशं तु नामतः। आगतोस्मि वृथाऽऽभाष्य न गच्छेन्नाम ते मम।। | 1-108-10a 1-108-10b | ||
इत्युक्त्वा गर्जमानौ तौ हिरण्वत्यास्तटं गतौ'। तेनास्य सुमहद्युद्धं कुरुक्षेत्रे बभूव ह।। | 1-108-11a 1-108-11b | ||
तयोर्बलवतोस्तत्र गन्धर्वकुरुमुख्ययोः। नद्यास्तीरे हिरण्वत्याः समास्तिस्रोऽभवद्रणः।। | 1-108-12a 1-108-12b | ||
तस्मिन्विमर्दे तुमुले शस्त्रवर्षसमाकुले। मायाधिकोऽवधीद्वीरं गन्धर्वः कुरुसत्तमम्।। | 1-108-13a 1-108-13b | ||
स हत्वा तु नरश्रेष्ठं चित्राङ्गदमरिन्दमम्। अन्ताय कृत्वा गन्धर्वो दिवमाचक्रमे ततः।। | 1-108-14a 1-108-14b | ||
तस्मिन्पुरुषशार्दूले निहते भूरितेजसि। भीष्मः शान्तनवो राजा प्रेतकार्याण्यकारयत्।। | 1-108-15a 1-108-15b | ||
विचित्रवीर्यं च तदा बालमप्राप्तयौवनम्। कुरुराज्ये महाबाहुरभ्यषिञ्चदनन्तरम्।। | 1-108-16a 1-108-16b | ||
विचित्रवीर्यः स तदा भीष्मस्य वचने स्थितः। अन्वशासन्महाराज पितृपैतामहं पदम्।। | 1-108-17a 1-108-17b | ||
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि अष्टाधिकशततमोऽध्यायः।। 108 ।।
|