महाभारतम्-01-आदिपर्व-224
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भीष्मद्रोणाभ्यामुक्तमेवावश्यं करणीयं पाण्डवा जेतुं न शक्याः दुर्योधनादीनां वचनं मा कुरु इति धृतराष्ट्रंप्रति विदुरस्योक्तिः।। 1 ।।
विदुर उवाच। | 1-224-1x |
राजन्निःसंशयं श्रेयो वाच्यस्त्वमसि बान्धवैः। न त्वशुश्रूषमाणे वै वाक्यं संप्रति तिष्ठति।। | 1-224-1a 1-224-1b |
प्रियं हितं च तद्वाक्यमुक्तवान्कुरुसत्तमः। भीष्मः शान्तनवो राजन्प्रतिगृह्णासि तन्न च।। | 1-224-2a 1-224-2b |
तथा द्रोणेन बहुधा भाषितं हितमुत्तमम्। तच्च राधासुतः कर्णो मन्यते न हितं तव।। | 1-224-3a 1-224-3b |
चिन्तयंश्च न पश्यामि राजंस्तव सुहृत्तमम्। आभ्यां पुरुषसिंहाभ्यां यो वा स्यात्प्रज्ञयाधिकः।। | 1-224-4a 1-224-4b |
इमौ हि वृद्धौ वयसा प्रज्ञया च श्रुतेन च। समौ च त्वयि राजेन्त्र तथा पाण्डुसुतेषु च।। | 1-224-5a 1-224-5b |
धर्मे चानवरौ राजन्सत्यतायां च भारत। रामाद्दाशरथेश्चैव गयाच्चैव न संशयः।। | 1-224-6a 1-224-6b |
न चोक्तवन्तावश्रेयः पुरस्तादपि किंचन। न चाप्यपकृतं किंचिदनयोर्लक्ष्यते त्वयि।। | 1-224-7a 1-224-7b |
तावुभौ पुरुषव्याघ्रावनागसि नृपे त्वयि। न मन्त्रयेतां त्वच्छ्रेयः कथं सत्यपराक्रमौ।। | 1-224-8a 1-224-8b |
प्रज्ञावन्तौ नरश्रेष्ठावस्मिँल्लोके नराधिप। त्वन्निमित्तमतो नेमौ किंचिज्जिह्मं वदिष्यतः।। | 1-224-9a 1-224-9b |
इति मे नैष्ठिकी बुद्धिर्वर्तते कुरुनन्दन। न चार्थहेतोर्धर्मज्ञौ वक्ष्यतः पक्षसंश्रितम्।। | 1-224-10a 1-224-10b |
एतद्धि परमं श्रेयो मन्येऽहं तव भारत। दुर्योधनप्रभृतयः पुत्रा राजन्यथा तव।। | 1-224-11a 1-224-11b |
तथैव पाण्डवेयास्ते पुत्रा राजन्न संशयः। तेषु चेदहितं किंचिन्मन्त्रयेयुरतद्विदः।। | 1-224-12a 1-224-12b |
मन्त्रिणस्ते न च श्रेयः प्रपश्यन्ति विशेषतः। अथ ते हृदये राजन्विशेषः स्वेषु वर्तते। अन्तरस्थं विवृण्वानाः श्रेयः कुर्युर्न ते ध्रुवम्।। | 1-224-13a 1-224-13b 1-224-13c |
एतदर्थमिमौ राजन्महात्मानौ महाद्युती। नोचतुर्विवृतं किंचिन्न ह्येष तव निश्चयः।। | 1-224-14a 1-224-14b |
यच्चाप्यशक्यतां तेषामाहतुः पुरुषर्षभौ। तत्तथा पुरुषव्याघ्र तव तद्भद्रमस्तु ते।। | 1-224-15a 1-224-15b |
कथं हि पाण्डवः श्रीमान्सव्यसाची धनञ्जयः। शक्यो विजेतुं संग्रामे राजन्मघवतापि हि।। | 1-224-16a 1-224-16b |
`भीमसेनो महाबाहुर्नागायुतबलो महान्। राक्षसानां भयकरो बाहुशाली महाबलः।। | 1-224-17a 1-224-17b |
हिडिम्बो निहतो येन बाहुयुद्धेन भारत। यो रावणसमो युद्धे तथा च बकराक्षसः।। | 1-224-18a 1-224-18b |
स युध्यमानो राजेन्द्र भीमो भीमपराक्रमः।' कथं स्म युधि शक्येत विजेतुममरैरपि।। | 1-224-19a 1-224-19b |
तथैव कृतिनौ युद्धे यमौ यमसुताविव। कथं विजेतुं शक्यौ तौ रणे जीवितुमिच्छता।। | 1-224-20a 1-224-20b |
यस्मिन्धृतिरनुक्रोशः क्षमा सत्यं पराक्रमः। नित्यानि पाण्डवे ज्येष्ठे स जीयेत रणे कथम्।। | 1-224-21a 1-224-21b |
येषां पक्षधरो रामो येषां मन्त्री जनार्दनः। किं नु तैरजितं सङ्ख्ये येषां पक्षे च सात्यकिः।। | 1-224-22a 1-224-22b |
द्रुपदः श्वशुरो येषां येषां स्यालाश्च पार्षताः। धृष्टद्युम्नमुखा वीरा भ्रातरो द्रुपदात्मजाः।। | 1-224-23a 1-224-23b |
`चैद्यश्च येषां भ्राता च शिशुपालो महारथः।' सोऽशक्यतां च विज्ञाय तेषामग्रे च भारत। दायाद्यतां च धर्मेण सम्यक्तेषु समाचर।। | 1-224-24a 1-224-24b 1-224-24c |
इदं निर्दिष्टमयशः पुरोचनकृतं महत्। तेषामनुग्रहेणाद्य राजन्प्रक्षालयात्मनः।। | 1-224-25a 1-224-25b |
तेषामनुग्रहश्चायं सर्वेषां चैव नः कुले। जीवितं च परं श्रेयः क्षत्रस्य च विवर्धनम्।। | 1-224-26a 1-224-26b |
द्रुपदोऽपि महान्राजा कृतवैरश्च नः पुरा। तस्य संग्रहणं राजन्स्वपक्षस्य विवर्धनम्।। | 1-224-27a 1-224-27b |
बलवन्तश्च दाशार्हा बहवश्च विशांपते। यतः कृष्णस्ततः सर्वे यतः कृष्णस्ततो जयः।। | 1-224-28a 1-224-28b |
यच्च साम्नैव शक्येत कार्यं साधयितुं नृप। को दैवशप्तस्तत्कार्यं विग्रहेण समाचरेत्।। | 1-224-29a 1-224-29b |
श्रुत्वा च जीवतः पार्थान्पौरजानपदा जनाः। बलवद्दर्शने हृष्टास्तेषां राजन्प्रियं कुरु।। | 1-224-30a 1-224-30b |
दुर्योधनश्च कर्णश्च शकुनिश्चापि सौबलः। अधर्मयुक्ता दुष्प्रज्ञा बाला मैषां वचः कृथाः।। | 1-224-31a 1-224-31b |
उक्तमेतत्पुरा राजन्मया गुणवतस्तव। दुर्योधनापराधेन प्रजेयं वै विनङ्क्ष्यति।। | 1-224-32a 1-224-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि विदुरागमनराज्यलाभपर्वणि चतुर्विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 224 ।। |
1-224-6 अनवरौ श्रेष्ठौ।।
1-224-7 अनयोः आभ्याम्।। 1-224-24 दायाद्यतां पितृधनभोजनार्हताम्।। चतुर्विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 224 ।।
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