महाभारतम्-01-आदिपर्व-068

विकिस्रोतः तः
← आदिपर्व-067 महाभारतम्
प्रथमपर्व
महाभारतम्-01-आदिपर्व-068
वेदव्यासः
आदिपर्व-069 →
  1. 001
  2. 002
  3. 003
  4. 004
  5. 005
  6. 006
  7. 007
  8. 008
  9. 009
  10. 010
  11. 011
  12. 012
  13. 013
  14. 014
  15. 015
  16. 016
  17. 017
  18. 018
  19. 019
  20. 020
  21. 021
  22. 022
  23. 023
  24. 024
  25. 025
  26. 026
  27. 027
  28. 028
  29. 029
  30. 030
  31. 031
  32. 032
  33. 033
  34. 034
  35. 035
  36. 036
  37. 037
  38. 038
  39. 039
  40. 040
  41. 041
  42. 042
  43. 043
  44. 044
  45. 045
  46. 046
  47. 047
  48. 048
  49. 049
  50. 050
  51. 051
  52. 052
  53. 053
  54. 054
  55. 055
  56. 056
  57. 057
  58. 058
  59. 059
  60. 060
  61. 061
  62. 062
  63. 063
  64. 064
  65. 065
  66. 066
  67. 067
  68. 068
  69. 069
  70. 070
  71. 071
  72. 072
  73. 073
  74. 074
  75. 075
  76. 076
  77. 077
  78. 078
  79. 079
  80. 080
  81. 081
  82. 082
  83. 083
  84. 084
  85. 085
  86. 086
  87. 087
  88. 088
  89. 089
  90. 090
  91. 091
  92. 092
  93. 093
  94. 094
  95. 095
  96. 096
  97. 097
  98. 098
  99. 099
  100. 100
  101. 101
  102. 102
  103. 103
  104. 104
  105. 105
  106. 106
  107. 107
  108. 108
  109. 109
  110. 110
  111. 111
  112. 112
  113. 113
  114. 114
  115. 115
  116. 116
  117. 117
  118. 118
  119. 119
  120. 120
  121. 121
  122. 122
  123. 123
  124. 124
  125. 125
  126. 126
  127. 127
  128. 128
  129. 129
  130. 130
  131. 131
  132. 132
  133. 133
  134. 134
  135. 135
  136. 136
  137. 137
  138. 138
  139. 139
  140. 140
  141. 141
  142. 142
  143. 143
  144. 144
  145. 145
  146. 146
  147. 147
  148. 148
  149. 149
  150. 150
  151. 151
  152. 152
  153. 153
  154. 154
  155. 155
  156. 156
  157. 157
  158. 158
  159. 159
  160. 160
  161. 161
  162. 162
  163. 163
  164. 164
  165. 165
  166. 166
  167. 167
  168. 168
  169. 169
  170. 170
  171. 171
  172. 172
  173. 173
  174. 174
  175. 175
  176. 176
  177. 177
  178. 178
  179. 179
  180. 180
  181. 181
  182. 182
  183. 183
  184. 184
  185. 185
  186. 186
  187. 187
  188. 188
  189. 189
  190. 190
  191. 191
  192. 192
  193. 193
  194. 194
  195. 195
  196. 196
  197. 197
  198. 198
  199. 199
  200. 200
  201. 201
  202. 202
  203. 203
  204. 204
  205. 205
  206. 206
  207. 207
  208. 208
  209. 209
  210. 210
  211. 211
  212. 212
  213. 213
  214. 214
  215. 215
  216. 216
  217. 217
  218. 218
  219. 219
  220. 220
  221. 221
  222. 222
  223. 223
  224. 224
  225. 225
  226. 226
  227. 227
  228. 228
  229. 229
  230. 230
  231. 231
  232. 232
  233. 233
  234. 234
  235. 235
  236. 236
  237. 237
  238. 238
  239. 239
  240. 240
  241. 241
  242. 242
  243. 243
  244. 244
  245. 245
  246. 246
  247. 247
  248. 248
  249. 249
  250. 250
  251. 251
  252. 252
  253. 253
  254. 254
  255. 255
  256. 256
  257. 257
  258. 258
  259. 259
  260. 260

जरासन्धादीनां संभवः।। 1 ।। द्रोणादीनां संभवः।। 2 ।। धृतराष्ट्रादीनां संभवः।। 3 ।। दुर्योधनादीनां संभवः।। 4 ।। युधिष्ठिरादीनां संभवः।। 5 ।। धृष्टद्युम्नादीनां संभवः।। 6 ।। पृथाचरित्रं। कर्णोत्पत्तिश्च।। 7 ।। बलरामादीनां संभवः।। 8 ।। द्रौपदीसंभवः।। 9 ।। कुन्तीमाद्र्योः संभवः।। 10 ।।
जनमेजय उवाच।
देवानां दानवानां च गन्धर्वोरगरक्षसाम्।
सिंहव्याघ्रमृगाणां च पन्नगानां पतत्त्रिणाम्।। 1-68-1a
 
अन्येषां चैव भूतानां संभवं भगवन्नहम्।
श्रोतुमिच्छामि तत्त्वेन मानुषेषु महात्मनाम्।
जन्म कर्म च भूतानामेतेषामनुपूर्वशः।। 1-68-2a
 
वैशंपायन उवाच।
मानुषेषु मनुष्येन्द्र संभूता ये दिवौकसः।
प्रथमं दानवाश्चैव तांस्ते वक्ष्यामि सर्वशः।। 1-68-3a
 
विप्रचित्तिरिति ख्यातो य आसीद्दानवर्षभः।
जरासन्ध इति ख्यातः स आसीन्मनुजर्षभः।। 1-68-4a
1-68-4b
दितेः पुत्रस्तु यो राजन्हिरण्यकशिपुः स्मृतः।
स जज्ञे मानुषे लोके शिशुपालो नरर्षभः।। 1-68-5a
1-68-5b
संह्लाद इति विख्यातः प्रह्लादस्यानुजस्तु यः।
स शल्य इति विख्यातो जज्ञे वाहीकपुङ्गवः।। 1-68-6a
1-68-6b
अनुह्लादस्तु तेजस्वी योऽभूत्ख्यातो जघन्यजः।
धृष्टकेतुरिति ख्यातः स बभूव नरेश्वरः।। 1-68-7a
1-68-7b
यस्तु राजञ्शिबिर्नाम दैतेयः परिकीर्तितः।
द्रुम इत्यभिविख्यातः स आसीद्भुवि पार्थिवः।। 1-68-8a
1-68-8b
बाष्कलो नाम यस्तेषामासीदसुरसत्तमः।
भगदत्त इति ख्यातः सं जज्ञे पुरुषर्षभः।। 1-68-9a
 
अयःशिरा अश्वशिरा अयःशङ्कुश्च वीर्यवान्।
तथा गगनमूर्धा च वेगवांश्चात्र पञ्चमः।। 1-68-10a

पञ्चैते जज्ञिरे राजन्वीर्यवन्तो महासुराः।
केकयेषु महात्मानः पार्थिवर्षभसत्तमाः।
केतुमानिति विख्यातो यस्ततोऽन्यःप्रतापवान्।। 1-68-11a

अमितौजा इति ख्यातः सोग्रकर्मा नराधिपः।
स्वर्भानुरिति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। 1-68-12a

उग्रसेन इति ख्यात उग्रकर्मा नराधिपः।
यस्त्वश्व इति विख्यातः श्रीमानासीन्महासुरः।। 1-68-13a

अशोको नाम राजाऽभून्महावीर्योऽपराजितः।
तस्मादवरजो यस्तु राजन्नश्वपतिः स्मृतः।। 1-68-14a

दैतेयः सोऽभवद्राजा हार्दिक्यो मनुजर्षभः।
वृषपर्वेति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। 1-68-15a

दीर्घप्रज्ञ इति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः।
अजकस्त्ववरो राजन्य आसीद्वृषपर्वणः।। 1-68-16a

स शाल्व इति विख्यातः पृथिव्यामभवन्नृपः।
अश्वग्रीव इति ख्यातः सत्ववान्यो महासुरः।। 1-68-17a

रोचमान इति ख्यातः पृथिव्यां कोऽभवन्नृपः।
सूक्ष्मस्तु मतिमान्राजन्कीर्तिमान्यः प्रकीर्तितः।। 1-68-18a

बृहद्रथ इति ख्यातः क्षितावासीत्स पार्थिवः।
तुहुण्ड इति विख्यातो य आसीदसुरोत्तमः।। 1-68-19a

सेनाबिन्दुरिति ख्यातः स बूभव नराधिपः।
इषुमान्नाम यस्तेषामसुराणां बलाधिकः।। 1-68-20a

नग्नजिन्नाम राजासीद्भुवि विख्यातविक्रमः।
एकचक्र इति ख्यात आसीद्यस्तु महासुरः।। 1-68-21a

प्रतिविन्घ्य इति ख्यातो बभूव प्रथितः क्षितौ।
विरूपाक्षस्तु दैतेयश्चित्रयोधी महासुरः।। 1-68-22a

चित्रधर्मेति विख्यातः क्षितावासीत्स पार्थिवः।
हरस्त्वरिहरो वीर आसीद्यो दानवोत्तमः।। 1-68-23a

सुबाहुरिति विख्यातः श्रीमानासीत्स पार्थिवः।
अहरस्तु महातेजाः शत्रुपक्षक्षयंकरः।। 1-68-24a

बाह्लिको नाम राजा स बभूव प्रथितः क्षितौ।
निचन्द्रश्चन्द्रवक्त्रस्तु य आसीदसुरोत्तमः।। 1-68-25a

मुञ्जकेश इति ख्यातः श्रीमानासीत्स पार्थिवः।
निकुम्भस्त्वजितः संख्ये महामतिरजायत।। 1-68-26a

भूमौ भूमिपतिश्रेष्ठो देवाधिप इति स्मृतः।
शरभो नाम यस्तेषां दैतेयानां महासुरः।। 1-68-27a

पौरवो नाम राजर्षिः स बभूव नरोत्तमः।
कुपटस्तु महावीर्यः श्रीमान्राजन्महासुरः।। 1-68-28a

सुपार्श्व इति विख्यातः क्षितौ जज्ञे महीपतिः।
कपटस्तु राजन्राजर्षिः क्षितौ जज्ञे महासुरः।। 1-68-29a

पार्वतेय इति ख्यातः काञ्चनाचलसन्निभः।
द्वितीयः शलभस्तेषामसुराणां बभूव ह।। 1-68-30a

प्रह्लादो नाम बाह्लीकः स बभूव नराधिपः।
चन्द्रस्तु दितिजश्रेष्ठो लोके ताराधिपोपमः।। 1-68-31a

चन्द्रवर्मेति विख्यातः काम्बोजानां नराधिपः।
अर्क इत्यभिविख्यातो यस्तु दानवपुङ्गवः।। 1-68-32a

ऋषिको नाम राजर्षिर्बभूव नृपसत्तमः।
मृतपा इति विख्यातो य आसीदसुरोत्तमः।। 1-68-33a

पश्चिमानूपकं विद्धि तं नृपं नृपसत्तम।
गविष्ठस्तु महातेजा यः प्रख्यातो महासुरः।। 1-68-34a

द्रुमसेन इति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः।
मयूर इति विख्यातः श्रीमान्यस्तु महासुरः।। 1-68-35a

स विश्व इति विख्यातो बभूव पृथिवीपतिः।
सुपर्ण इति विख्यातस्तस्मादवरजस्तु यः।। 1-68-36a

कालकीर्तिरिति ख्यातः पृथिव्यां सोऽभवन्नृपः।
चन्द्रहन्तेति यस्तेषां कीर्तितः प्रवरोऽसुरः।। 1-68-37a

शुनको नाम राजर्षिः स बभूव नराधिपः।
विनाशनस्तु चन्द्रस्य य आख्यातो महासुरः।। 1-68-38a

जानकिर्नाम विख्यातः सोऽभवन्मनुजाधिपः।
दीर्घजिह्वस्तु कौरव्य य उक्तो दानवर्षभः।। 1-68-39a

काशिराजः स विख्यातः पृथिव्यां पृथिवीपते।
ग्रहं तु सुषुवे यं तु सिंहिकार्केन्दुमर्दनम्।
स क्राथ इति विख्यातो बभूव मनुजाधिपः।। 1-68-40a

दनायुषस्तु पुत्राणां चतुर्णां प्रवरोऽसुरः।
विक्षरो नाम तेजस्वी वसुमित्रो नृपः स्मृतः।। 1-68-41a

द्वितीयो विक्षराद्यस्तु नराधिप महासुरः।
पाण्ड्यराष्ट्राधिप इति विख्यातः सोऽभवन्नृपः।। 1-68-42a

बली वीर इति ख्यातो यस्त्वासीदसुरोत्तमः।
पौण्ड्रमात्स्यक इत्येवं बभूव स नराधिपः।। 1-68-43a

वृत्र इत्यभिविख्यातो यस्तु राजन्महासुरः।
मणिमान्नाम राजर्षिः स बभूव नराधिपः।। 1-68-44a

क्रोधहन्तेति यस्तस्य बभूवावरजोऽसुरः।
दण्ड इत्यभिविख्यातः स आसीन्नृपतिः क्षितौ।। 1-68-45a

क्रोधवर्धन इत्येवं यस्त्वन्यः परिकीर्तितः।
दण्डधार इति ख्यातः सोऽभवन्मनुजर्षभः।। 1-68-46a

कालेयानां तु ये पुत्रास्तेषामष्टौ नराधिपाः।
जज्ञिरे राजशार्दूल शार्दूलसमविक्रमाः।। 1-68-47a

मगधेषु जयत्सेनस्तेषामासीत्स पार्थिवः।
अष्टानां प्रवरस्तेषां कालेयानां महासुरः।। 1-68-48a

द्वितीयस्तु ततस्तेषां श्रीमान्हरिहयोपमः।
अपराजित इत्येवं स बभूव नराधिपः।। 1-68-49a

तृतीयस्तु महातेजा महामायो महासुरः।
निषादाधिपतिर्जज्ञे भुवि भीमपराक्रमः।। 1-68-50a

तेषामन्यतमो यस्तु चतुर्थः परिकीर्तितः।
श्रेणिमानिति विख्यातः क्षितौ राजर्षिसत्तमः।। 1-68-51a

पञ्चमस्त्वभवत्तेषां प्रवरो यो महासुरः।
महौजा इति विख्यातो बभूवेह परन्दपः।। 1-68-52a

षष्ठस्तु मतिमान्यो वै तेषामासीन्महासुरः।
अभीरुरिति विख्यातः क्षितौ राजर्षिसत्तमः।। 1-68-53a

समुद्रसेनस्तु नृपस्तेषामेवाभवद्गणात्।
विश्रुतः सागरान्तायां क्षितौ धर्मार्थतत्त्ववित्।। 1-68-54a

बृहन्नामाष्टमस्तेषां कालेयानां नराधिप।
बभूव राजा धर्मात्मा सर्वभूतहिते रतः।। 1-68-55a

कुक्षिस्तु राजन्विख्यातो दानवानां महाबलः।
पार्वतीय इति ख्यातः काञ्चनाचलसन्निभः।। 1-68-56a

क्रथनश्च महावीर्यः श्रीमान्राजा महासुरः।
सूर्याक्ष इति विख्यातः क्षितौ जज्ञे महीपतिः।। 1-68-57a

असुराणां तु यः सकूर्यः श्रीमांश्चैव महासुरः।
दरदो नाम बाह्लीको वरः सर्वमहीक्षिताम्।। 1-68-58a

गणः क्रोधवशो नाम यस्ते राजन्प्रकीर्तितः।
ततः संजज्ञिरे वीराः क्षिताविह नराधिपाः।। 1-68-59a

मद्रकः कर्णवेष्टश्च सिद्धार्थः कीटकस्तथा।
सुवीरश्च सुबाहुश्च महावीरोऽथ बाह्लिकः।। 1-68-60a

क्रथो विचित्रः सुरथः श्रीमान्नीलश्च भूमिपः।
चीरवासाश्च कौरव्य भूमिपालश्च नामतः।। 1-68-61a

दन्तवक्त्रश्च नामासीद्दुर्जयश्चैव दानवः।
रुक्मी च नृपशार्दूलो राजा च जनमेजयः।। 1-68-62a

आषाढो वायुवेगश्च भूरितेजास्तथैव च।
एकलव्यः सुमित्रश्च वाटधानोऽथ गोमुखः।। 1-68-63a

कारूषकाश्च राजानः क्षेमधूर्तिस्तथैव च।
श्रुतायुरुद्वहश्चैव बृहत्सेनस्तथैव च।। 1-68-64a

क्षेमोग्रतीर्थः कुहरः कलिङ्गेषु नराधिपः।
मतिमांश्च मनुष्येन्द्र ईश्वरश्चेति विश्रुतः।। 1-68-65a

गणात्क्रोधवशादेष राजपूगोऽभवत्क्षितौ।
जातः पुरा महाभागो महाकीर्तिर्महाबलः।। 1-68-66a

कालनेमिरिति ख्यातो दानवानां महाबलः।
स कंस इति विख्यात उग्रसेनसुतो बली।। 1-68-67a

यस्त्वासीद्देवको नाम देवराजसमद्युतिः।
स गन्धर्वपतिर्मुख्यः क्षितौ जज्ञे नराधिपः।। 1-68-68a

बृहस्पतेर्बृहत्कीर्तेर्देवर्षेर्विद्धि भारत।
अंशाद्द्रोणं समुत्पन्नं भारद्वाजमयोनिजम्।। 1-68-69a

धन्विनां नृपशार्दूल यः सर्वास्त्रविदुत्तमः।

धनुर्वेदे च वेदे च यं तं वेदविदो विदुः।
वरिष्ठं चित्रकर्माणं द्रोणं स्वकुलवर्धनम्।। 1-68-71a

महादेवान्तकाभ्यां च कामात्क्रोधाच्च भारत।
एकत्वमुपसंपद्य जज्ञे शूरः परन्तपः।। 1-68-72a

अश्वत्थामा महावीर्यः शत्रुपक्षभयावहः।
वीरः कमलपत्राक्षः क्षितावासीन्नराधिपः।। 1-68-73a

जज्ञिरे वसवस्त्वष्टौ गङ्गायां शन्तनोः सुताः।
वसिष्ठस्य च शापेन नियोगाद्वासवस्य च।। 1-68-74a

तेषामवरजो भीष्मः कुरूणामभयङ्करः।
मतिमान्वेदविद्वाग्मी शत्रुपक्षक्षयङ्करः।। 1-68-75a

जामदग्न्येन रामेण सर्वास्त्रविदुषां वरः।
योऽप्युध्यत महातेजा भार्गवेण महात्मना।। 1-68-76a

यस्तु राजन्कृपो नाम ब्रह्मर्षिरभवत्क्षितौ।
रुद्राणां तु गणाद्विद्धि संभूतमतिपौरुषम्।। 1-68-77a

शकुनिर्नाम यस्त्वासीद्राजा लोके महारथः।
द्वापरं विद्धि तं राजन्संभूतमरिमर्दनम्।। 1-68-78a

सात्यकिः सत्यसन्धश्च योऽसौ वृष्णिकुलोद्वहः।
पक्षात्स जज्ञे मरुतां देवानामरिमर्दनः।। 1-68-79a

द्रुपदश्चैव राजर्षिस्तत एवाभवद्गणात्।
मानुषे नृप लोकेऽस्मिन्सर्वशस्त्रभृतां वरः।। 1-68-80a

ततश्च कृतवर्माणं विद्धि राजञ्जनाधिपम्।
तमप्रतिमकर्माणं क्षत्रियर्षभसत्तमम्।। 1-68-81a

मरुतां तु गणाद्विद्धि संजातमरिमर्दनम्।
विराटं नाम राजानं परराष्ट्रप्रतापनम्।। 1-68-82a

अरिष्टायास्तु यः पुत्रो हंस इत्यभिविश्रुतः।
स गन्धर्वपतिर्जज्ञे कुरुवंशविवर्धनः।। 1-68-83a

धृतराष्ट्र इति ख्यातः कृष्णद्वैपायनात्मजः।
दीर्घबाहुर्महातेजाः प्रज्ञाचक्षुर्नराधिपः।।
मातुर्दोषादृषेः कोपादन्ध एव व्यजायत।। 1-68-84a

`मरुतां तु गणाद्वीरः सर्वशस्त्रभृतां वरः।
पाण्डुर्जज्ञे महाबाहुस्तव पूर्वपितामहः।'
तस्यैवावरजो भ्राता महासत्वो महाबलः।। 1-68-85a

धर्मात्तु सुमहाभागं पुत्रं पुत्रवतां वरम्।
विदुरं विद्धि तं लोके जातं बुद्धिमतां वरम्।। 1-68-86a

कलेरंशस्तु संजज्ञे भुवि दुर्योधनो नृपः।
दुर्बद्धिर्दुर्मतिश्चैव कुरूणामयशस्करः।। 1-68-87a

जगतो यस्तु सर्वस्य विद्विष्टः कलिपूरुषः।
यः सर्वां घातयामास पृथिवीं पृथिवीपते।। 1-68-88a

उद्दीपितं येन वैरं भूतान्तकरणं महत्।
पौलस्त्या भ्रातरश्चास्य जज्ञिरे मनुजेष्विह।। 1-68-89a

शतं दुःशासनादीनां सर्वेषां क्रूरकर्मणाम्।
दुर्मुखो दुःसहश्चैव ये चान्ये नानुकीर्तिताः।। 1-68-90a

दुर्योधनसहायास्ते पौलस्त्या भरतर्षभ।
वैश्यापुत्रो युयुत्सुश्च धार्तराष्ट्रः शताधिकः।। 1-68-91a

जनमेजय उवाच।
ज्येष्ठानुज्येष्ठतामेषां नामधेयानि वा विभो।
धृतराष्ट्रस्य पुत्राणामानुपूर्व्येण कीर्तय।। 1-68-92a

वैशंपायन उवाच।
दुर्योधनो युयुत्सुश्च राजन्दुःशासनस्तथा।
दुःसहो दुःशलश्चैव दुर्मुखश्च तथापरः।। 1-68-93a

विविंशतिर्विकर्णश्च जलसन्धः सुलोचनः।
विन्दानुविन्दौ दुर्धर्षः सुबाहुर्दुष्प्रधर्षणः।। 1-68-94a

दुर्मर्षणो दुर्मुखश्च दुष्कर्णः कर्ण एव च।
चत्रोपचित्रौ चित्राक्षश्चारुचित्राङ्गदश्च ह।। 1-68-95a

दुर्मदो दुष्प्रहर्षश्च विवित्सुर्विकटः समः।
ऊर्णनाभः पद्मनाभस्तथा नन्दोपनन्दकौ।। 1-68-96a

सेनापतिः सुषेणश्च कुण्डोदरमहोदरौ।
चित्रबाहुश्चित्रवर्मा सुवर्मा दुर्विरोचनः।। 1-68-97a

अयोबाहुर्महाबाहुश्चित्रचापसुकुण्डलौ।
भीमवेगो भीमबलो बलाकी भीमविक्रमः।। 1-68-98a

उग्रायुधो भीमशरः कनकायुर्दृढायुधः।
दृढवर्मा दृढक्षत्रः सोमकीर्तिरनूदरः।। 1-68-99a

जरासन्धो दृढसन्धः सत्यसन्धः सहस्रवाक्।
उग्रश्रवा उग्रसेनः क्षेममूर्तिस्तथैव च।। 1-68-100a

अपराजितः पण्डितको विशालाक्षो दुराधनः।। 1-68-101a
दृढहस्तः सुहस्तश्च वातवेगसुवर्चसौ।
आदित्यकेतुर्बह्वाशी नागदत्तानुयायिनौ।। 1-68-102a

कवाची निषङ्गी दण्डी दण्डधारो धनुर्ग्रहः।
उग्रो भीमरथो वीरो वीरबाहुरलोलुपः।। 1-68-103a

अभयो रौद्रकर्मा च तथा दृढरथश्च यः।
अनाधृष्यः कुम्डभेदी विरावी दीर्घलोचनः।। 1-68-104a

दीर्घबाहुर्महाबाहुर्व्यूढोरुः कनकाङ्गदः।
कुण्डजश्चित्रकश्चैव दुःशला च शताधिका।। 1-68-105a

वैश्यापुत्रो युयुत्सुश्च धार्तराष्ट्रः शताधिकः।
एतदेकशतं राजन्कन्या चैका प्रकीर्तिता।। 1-68-106a

नामधेयानुपूर्व्या च ज्येष्ठानुज्येष्ठतां विदुः।
सर्वे त्वतिरथाः शूराः सर्वे युद्धविशारदाः।। 1-68-107a

सर्वे वेदविदश्चैव राजञ्शास्त्रे च परागाः।
सर्वे सङ्घ्रामविद्यासु विद्याभिजनशोभिनः।। 1-68-108a

सर्वेषामनुरूपाश्च कृता दारा महीपते।
दुःशलां समये राजसिन्धुराजाय कौरवः।। 1-68-109a

जयद्रथाय प्रददौ सौबलानुमते तदा।
धर्मस्यांशं तु राजानं विद्धि राजन्युधिष्ठिरम्।। 1-68-110a

भीमसेनं तु वातस्य देवराजस्य चार्जुनम्।
अश्विनोस्तु तथैवांशौ रूपेणाप्रतिमौ भुवि।। 1-68-111a

नकुलः सहदेवश्च सर्वभूतमनोहरौ।
स्युवर्चा इति ख्यातः सोमपुत्रः प्रतापवान्।। 1-68-112a

सोऽभिमन्युर्बृहत्कीर्तिरर्जुनस्य सुतोऽभवत्।
यस्यावतरणे राजन्सुरान्सोमोऽब्रवीदिदम्।। 1-68-113a

नाहं दद्यां प्रियं पुत्रं मम प्राणैर्गरीयसम्।
समयः क्रियतामेष न शक्यमतिवर्तितुम्।। 1-68-114a

सुरकार्यं हि नः कार्यमसुराणां क्षितौ वधः।
तत्र यास्यत्ययं वर्चा न च स्थास्यति वै चिरम्।। 1-68-115a

ऐन्द्रिर्नरस्तु भविता यस्य नारायणः सखा।
सोर्जुनेत्यभिविख्यातः पाण्डोः पुत्रः प्रतापवान्।। 1-68-116a

तस्यायं भविता पुत्रो बालो भुवि महारथः।
ततः षोडशवर्षाणि स्थास्यत्यमरसत्तमाः।। 1-68-117a

अस्य षोडशवर्षस्य स सङ्ग्रामो भविष्यति।
यत्रांशा वः करिष्यन्ति कर्म वीरनिषूदनम्।। 1-68-118a

नरनारायणाभ्यां तु स सङ्ग्रामो विनाकृतः।
चक्रव्यूहं समास्थाय योधयिष्यन्ति वःसुराः।। 1-68-119a

विमुखाञ्छात्रवान्सर्वान्कारयिष्यति मे सुतः।
बालः प्रविश्य च व्यूहमभेद्यं विचरिष्यति।। 1-68-120a

महारथानां वीराणां कदनं च करिष्यति।
सर्वेषामेव शत्रूणां चतुर्थांशं नयिष्यति।। 1-68-121a

दिनार्धेन महाबाहुः प्रेतराजपुरं प्रति।
ततो महारथैर्वीरैः समेत्य बहुशो रणे।। 1-68-122a

दिनक्षये महाबाहुर्मया भूयः समेष्यति।
एकं वंशकरं पुत्रं वीरं वै जनयिष्यति।। 1-68-123a

प्रनष्टं भारतं वंशं स भूयो धारयिष्यति। 1-68-124a
वैशंपायन उवाच।
एतत्सोमवचः श्रुत्वा तथास्त्विति दिवौकसः।। 1-68-124b
प्रत्यूचुः सहिताः सर्वे ताराधिपमपूजयन्।
एवं ते कथितं राजंस्तव जन्म पितुः पितुः।। 1-68-125a

प्रत्यूचुः सहिताः सर्वे ताराधिपमपूजयन्।
एवं ते कथितं राजंस्तव जन्म पितुः पितुः।। 1-68-125a

अग्नेर्भागं तु विद्धि त्वं धृष्टद्युम्नं महारथम्।
शिखण्डिनमथो राजंस्त्रीपूर्वं विद्धि राक्षसम्।। 1-68-126a

द्रौपदेयाश्च ये पञ्च बभूवुर्भरतर्षभ।
विश्वान्देवगणान्विद्धि संजातान्भरतर्षभ।। 1-68-127a

प्रतिविन्ध्यः सुतसोमः श्रुतकीर्तिस्तथापरः।
नाकुलिस्तु शतानीकः श्रुतसेनश्च वीर्यवान्।। 1-68-128a

शूरो नाम यदुश्रेष्ठो वसुदेवपिताऽभवत्।
तस्य कन्या पृथा नाम रूपेणासदृशी भुवि। 1-68-129a

पितुः स्वस्रीयपुत्राय सोऽनपत्याय वीर्यवान्।
अग्रमग्रे प्रतिज्ञाय स्वस्यापत्यस्य वै तदा।। 1-68-130a

अग्रजातेति तां कन्यां शूरोऽनुग्रहकाङ्क्षया।
अददत्कुन्तिभोजाय स तां दुहितरं तदा।। 1-68-131a

सा नियुक्ता पितुर्गेहे ब्राह्मणातिथिपूजने।
उग्रं पर्यचरद्धोरं ब्राह्मणं संशितव्रतम्।। 1-68-132a

निकूढनिश्चयं धर्मे यं तं दुर्वाससं विदुः।
समुग्रं शंसितात्मानं सर्वयत्नैरतोषयत्।। 1-68-133a

तुष्टोऽभिचारसंयुक्तमाचचक्षे यथाविधि।
उवाच चैनां भगवान्प्रीतोऽस्मि सुभगे तव।। 1-68-134a

यं यं देवं त्वमेतेन मन्त्रेणावाहयिष्यसि।
तस्य तस्य प्रसादात्त्वं देवि पुत्राञ्जनिष्यसि।। 1-68-135a

एवमुक्ता च सा बाला तदा कौतूहलान्विता।
कन्या सती देवमर्कमाजुहाव यशस्विनी।। 1-68-136a

प्रकाशकर्ता भगवांस्तस्यां गर्भं दधौ तदा।
अजीजनत्सुतं चास्यां सर्वशस्त्रभृतांवरम्।। 1-68-137a

सकुण्डलं सकवचं देवगर्भं श्रियान्वितम्।
दिवाकरसमं दीप्त्या चारुसर्वाङ्गभूषितम्।। 1-68-138a

निगूहमाना जातं वै बन्धुपक्षभयात्तदा।
उत्ससर्ज जले कुन्ती तं कुमारं यशस्विनम्।। 1-68-139a

तमुत्सृष्टं जले गर्भं राधाभर्ता महायशाः।
राधायाः कल्पयामास पुत्रं सोऽधिरथस्तदा।। 1-68-140a

चक्रतुर्नामधेयं च तस्य बालस्य तावुभौ।
दंपती वसुषेणेति दिक्षु सर्वासु विश्रुतम्।। 1-68-141a

संवर्धमानो बलवान्सर्वास्त्रेषूत्तमोऽभवत्।
वेदाङ्गानि च सर्वाणि जजाप जपतां वरः।। 1-68-142a

यस्मिन्काले जपन्नास्ते धीमान्सत्यपराक्रमः।
नादेयं ब्राह्मणेष्वासीत्तस्मिन्काले महात्मनः।। 1-68-143a

तमिन्द्रो ब्राह्मणो भूत्वा पुत्रार्थे भूतभावनः।
ययाचे कुण्डले वीरं कवचं च सहाङ्गजम्।। 1-68-144a

उत्कृत्य कर्णो ह्यददत्कवचं कुण्डले तथा।।
शक्तिं शक्रो ददौ तस्मै विस्मितश्चेदमब्रवीत्।। 1-68-145a

देवासुरमनुष्याणां गन्धर्वोरगरक्षसाम्।
यस्मिन्क्षेप्स्यसि दुर्धर्ष स एको न भविष्यति।। 1-68-146a

वैशंपायन उवाच।
पुरा नाम च तस्यासीद्वसुषेण इति क्षितौ।
ततो वैकर्तनः कर्णः कर्मणा तेन सोऽभवत्।। 1-68-147a

आमुक्तकवचो वीरो यस्तु जज्ञे महायशाः।
स कर्ण इति विख्यातः पृथायाः प्रथमः सुतः।। 1-68-148a

स तु सूतकुले वीरो ववृधे राजसत्तम।
कर्णं नरवरश्रेष्ठं सर्वशस्त्रभृतां वरम्।। 1-68-149a

दुर्योधनस्य सचिवं मित्रं शत्रुविनाशनम्।
दिवाकरस्य तं विद्धि राजन्नंशमनुत्तमम्।। 1-68-150a

यस्तु नारायणो नाम देवदेवः सनातनः।
तस्यांशो मानुषेष्वासीद्वासुदेवः प्रतापवान्।। 1-68-151a

शेषस्यांशश्च नागस्य बलदेवो महाबलः।
सनत्कुमारं प्रद्युम्नं विद्धि राजन्महौजसम्।। 1-68-152a

एवमन्ये मनुष्येन्द्रा बहवोंशा दिवौकसाम्।
जज्ञिरे वसुदेवस्य कुले कुलविवर्धनाः।। 1-68-153a

गणस्त्वप्सरसां यो वै मया राजन्प्रकीर्तितः।
तस्य भागः क्षितौ जज्ञे नियोगाद्वासवस्य ह।। 1-68-154a

तानि षोडशदेवीनां सहस्राणि नराधिप।
बभूवुर्मानुषे लोके वासुदेवपरिग्रहः।। 1-68-155a

श्रियस्तु भागः संजज्ञे रत्यर्थं पृथिवीतले।
[भीष्मकस्य कुले साध्वी रुक्मिणी नाम नामतः।। 1-68-156a

द्रौपदी त्वथ संजज्ञे शची भागादनिन्दिता।]
द्रुपदस्य कुले जाता वेदिमध्यादनिन्दिता।। 1-68-157a

नातिह्रस्वा न महती नीलोत्पलसुगन्धिनी।
पद्मायताक्षी सुश्रोणी स्वसिताञ्चितमूर्धजा।। 1-68-158a

सर्वलक्षणसंपन्ना वैदूर्यमणिसंनिभा।
पञ्चानां पुरुषेन्द्राणां चित्तप्रमथनी रहः।। 1-68-159a

सिद्धिर्धृतिश्च ये देव्यौ पञ्चानां मातरौ तु ते।
कुन्ती माद्री च जज्ञाते मतिस्तु कुबलात्मजा।। 1-68-160a

इति देवासुराणां ते गन्धर्वाप्सरसां तथा।
अंशावतरणं राजन्राक्षसानां च कीर्तितम्।। 1-68-161a

ये पृथिव्यां समुद्भूता राजानो युद्धदुर्मदाः।
महात्मानो यदूनां च ये जाता विपुले कुले।। 1-68-162a

ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्या मया ते परिकीर्तिताः।
धन्यं यशस्यं पुत्रीयमायुष्यं विजयावहम्।। 1-68-163a

इदमंशावतरणं श्रोतव्यमनसूयता।
अंशावतरणं श्रुत्वा देवगन्धर्वरक्षसाम्।। 1-68-164a

प्रभवाप्ययवित्प्राज्ञो न कृच्छ्रेष्ववसीदति।। 1-68-165a
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि
संभवपर्वणि अष्टषष्टितमोऽध्यायः।। 68 ।।

[सम्पाद्यताम्]

कुण्डलितोयं पाठः क्वचिन्न दृश्यते।

आदिपर्व-067 पुटाग्रे अल्लिखितम्। आदिपर्व-069
"https://sa.wikisource.org/w/index.php?title=महाभारतम्-01-आदिपर्व-068&oldid=401638" इत्यस्माद् प्रतिप्राप्तम्