महाभारतम्-01-आदिपर्व-112
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विचित्रवीर्यभार्ययोरम्बिकाम्बालिकयोः पुत्रोत्पादनाय सत्यवत्या नियुक्तेन भीष्मेण तदनङ्गीकारः।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 1-112-1x |
ततः सत्यवती दीना कृपणा पुत्रगृद्धिनी। पुत्रस्य कृत्वा कार्याणि स्नुषाभ्यां सह भारत।। | 1-112-1a 1-112-1b |
समाश्वास्य स्नुषे ते च भर्तृशोकनिपीडिते। धर्मं च पितृवंशं च मातृवंशं च भामिनी। प्रसमीक्ष्य महाभागा गाङ्गेयं वाक्यमब्रवीत्।। | 1-112-2a 1-112-2b 1-112-2c |
`दुःखार्दिता तु सा देवी मज्जन्ती शोकसागरे। शन्तनोर्धर्मनित्यस्य कौरव्यस्य यशस्विनः।' त्वयि पिण्डश्च कीर्तिश्च संतानश्च प्रतिष्ठितः।। | 1-112-3a 1-112-3b 1-112-3c |
`भ्राता विचित्रवीर्यस्ते भूतानामन्तमेयिवान्।' यथाकर्म शुभं कृत्वा स्वर्गोपगमनं ध्रुवम्। यथा चायुर्ध्रुवं सत्ये त्वयि धर्मस्तथा ध्रुवः।। | 1-112-4a 1-112-4b 1-112-4c |
वेत्थ धर्मांश्च धर्मज्ञ समासेनेतरेण च। विविधास्त्वं श्रुतीर्वेत्थ वेदाङ्गानि च सर्वशः।। | 1-112-5a 1-112-5b |
व्यवस्थानं च ते धर्मे कुलाचारं च लक्षये। प्रतिपत्तिं च कृच्छ्रेषु शुक्राङ्गिरसयोरिव।। | 1-112-6a 1-112-6b |
तस्मात्सुभृशमाश्वस्य त्वयि धर्मभृतां वर। कार्ये त्वां विनियोक्ष्यामि तच्छ्रुत्वा कर्तुमर्हसि।। | 1-112-7a 1-112-7b |
मम पुत्रस्तव भ्राता वीर्यवान्सुप्रियश्च ते। बाल एव गतः स्वर्गमपुत्रः पुरुषर्षभ।। | 1-112-8a 1-112-8b |
इमे महिष्यौ भ्रातुस्ते काशिराजसुते शुभे। रूपयौवनसंपन्ने पुत्रकामे च भारत।। | 1-112-9a 1-112-9b |
तयोरुत्पादयापत्यं सन्तानाय कुलस्य नः। मन्नियोगान्महाबाहो धर्मं कर्तुमिहार्हसि।। | 1-112-10a 1-112-10b |
राज्ये चैवाभिषिच्यस्व भारताननुशाधि च। दारांश्च कुरु धर्मेण मा निमज्जीः पितामहान्।। | 1-112-11a 1-112-11b |
वैशंपायन उवाच। | 1-112-12x |
तथोच्यमानो मात्रा स सुहृद्भिश्च परन्तपः। इत्युवाचाथ धर्मात्मा धर्म्यमेवोत्तरं वचः।। | 1-112-12a 1-112-12b |
असंशयं परो धर्मस्त्वया मातरुदाहृतः। त्वमपत्यं प्रति च मे प्रतिज्ञां वेत्थ वै परां।। | 1-112-13a 1-112-13b |
जानासि च यथावृत्तं शुल्कहेतोस्त्वदन्तरे। स सत्यवति सत्यं ते प्रतिजानाम्यहं पुनः।। | 1-112-14a 1-112-14b |
परित्यजेयं त्रैलोक्यं राज्यं देवेषु वा पुनः। यद्वाऽप्यधिकमेताभ्यां न तु सत्यं कथंचन।। | 1-112-15a 1-112-15b |
त्यजेच्च पृथिवी गन्धमापश्च रसमात्मनः। ज्योतिस्तथा त्यजेद्रूपं वायुः स्पर्शगुणं त्यजेत्।। | 1-112-16a 1-112-16b |
प्रभां समुत्सृजेदर्को धूमकेतुस्तथोष्मताम्। त्यजेच्छब्दं तथाऽऽकाशं सोमः शीतांशुतां त्यजेत्।। | 1-112-17a 1-112-17b |
विक्रमं वृत्रहा जह्याद्धर्मं जह्याच्च धर्मराट्। न त्वहं सत्यमुत्स्रष्टुं व्यवसेयं कथंचन।। | 1-112-18a 1-112-18b |
`तन्न जात्वन्यथा कुर्यां लोकानामपि संक्षये। अमरत्वस्य वा हेतोस्त्रैलोक्यस्य धनस्य च।।' | 1-112-19a 1-112-19b |
एवमुक्ता तु पुत्रेण भूरिद्रविणतेजसा। माता सत्यवती भीष्ममुवाच तदनन्तरम्।। | 1-112-20a 1-112-20b |
जानामि ते स्थितिं सत्ये परां सत्यपराक्रम। इच्छन्सृजेथास्त्रींल्लोकानन्यांस्त्वं स्वेन तेजसा।। | 1-112-21a 1-112-21b |
जानामि चैवं सत्यं तन्मदर्थे यच्च भाषितम्। आपद्धर्मं त्वमावेक्ष्य वह पैतामहीं धुरम्।। | 1-112-22a 1-112-22b |
यथा ते कुलतन्तुश्च धर्मश्च न पराभवेत्। सुहृदश्च प्रहृष्येरंस्तथा कुरु परन्तप।। | 1-112-23a 1-112-23b |
`आत्मनश्च हितं तात प्रियं च मम भारत।' लालप्यमानां तामेवं कृपणां पुत्रगृद्धिनीम्। धर्मादपेतं ब्रुवतीं भीष्मो भूयोऽब्रवीदिदम्।। | 1-112-24a 1-112-24b 1-112-24c |
राज्ञि धर्मानवेक्षस्व मा नः सर्वान्व्यनीनशः। सत्याच्च्युतिः क्षत्रियस्य न धर्मेषु प्रशस्यते।। | 1-112-25a 1-112-25b |
शान्तनोरपि संतानं यथा स्यादक्षयं भुवि। तत्ते धर्मं प्रवक्ष्यामि क्षात्रं राज्ञि सनातनम्।। | 1-112-26a 1-112-26b |
श्रुत्वा तं प्रतिपद्यस्व प्राज्ञैः सह पुरोहितैः। आपद्धर्मार्थकुशलैर्लोकतन्त्रमवेक्ष्य च।। ।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि संभवपर्वणि द्वादशाधिकशततमोऽध्यायः।। 112 ।। | 1-112-27a 1-112-27b |
1-112-11 अभिषिच्यस्व अभिषेचय। आत्मानमिति शेषः। कुरु अङ्गीकुरु। मा निमज्जीर्मा निमज्जय।। 1-112-14 त्वदन्तरेत्वन्निमित्तम्।। 1-112-20 भूरिद्रविणतेजसा बहुबलोत्साहवता।। द्वादशाधिकशततमोऽध्यायः।। 112 ।।
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