महाभारतम्-01-आदिपर्व-044
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परीक्षिन्मरणोत्तरं तत्पुत्रस्य जनमेजयस्य राज्याभिषेकः।। 1 ।। वपुष्टमाविवाहः।। 2 ।।
सौतिरुवाच। | 1-44-1x |
तं तथा मन्त्रिणो दृष्ट्वा भोगेन परिवेष्टितम्। विषण्णवदनाः सर्वे रुरुदुर्भृशदुःखिताः।। | 1-44-1a 1-44-1b |
तं तु नागं ततो दृष्ट्वा मन्त्रिणस्ते प्रदुद्रुवुः। अपश्यन्त तथा यान्तमाकाशे नागमद्भुतम्।। | 1-44-2a 1-44-2b |
सीमन्तमिव कुर्वाणं नभसः पद्मवर्चसम्। तक्षकं पन्नगश्रेष्ठं भृशं शोकपरायणाः।। | 1-44-3a 1-44-3b |
ततस्तु ते तद्गृहमग्निना वृतं प्रदीप्यमानं विषजेन भोगिनः। भयात्परित्यज्य दिशः प्रपेदिरे पपात तच्चाशनिताडितं यथा।। | 1-44-4a 1-44-4b 1-44-4c 1-44-4d |
ततो नृपे तक्षकतेजसाहते प्रयुज्य सर्वाः परलोकसत्क्रियाः। शुचिर्दिजो राजपुरोहितस्तदा तथैव ते तस्य नृपस्य मन्त्रिणः।। | 1-44-5a 1-44-5b 1-44-5c 1-44-5d |
नृपं शिशुं तस्य सुतं प्रचक्रिरे समेत्य सर्वे पुरवासिनो जनाः। नृपं यमाहुस्तममित्रघातिनं कुरुप्रवीरं जनमेजयं जनाः।। | 1-44-6a 1-44-6b 1-44-6c 1-44-6d |
स बाल एवार्यमतिर्नृपोत्तमः सहैव तैर्मन्त्रिपुरोहितैस्तदा। शशास राज्यं कुरुपुंगवाग्रजो यथाऽस्य वीरः प्रपितामहस्तथा।। | 1-44-7a 1-44-7b 1-44-7c 1-44-7d |
ततस्तु राजानममित्रतापनं समीक्ष्य ते तस्य नृपस्य मन्त्रिणः। सुवर्णवर्माणमुपेत्य काशिप वपुष्टमार्थं वरयांप्रचक्रमुः।। | 1-44-8a 1-44-8b 1-44-8c 1-44-8d |
ततः स राजा प्रददौ वपुष्टमां कुरुप्रवीराय परीक्ष्य धर्मतः। स चापि तां प्राप्य मुदा युतोऽभव- न्न चान्यनारीषु मनो दधे क्वचित्।। | 1-44-9a 1-44-9b 1-44-9c 1-44-9d |
सरःसु फुल्लेषु वनेषु चैव प्रसन्नचेता विजहार वीर्यवान्। तथा स राजन्यवरो विजह्रिवान् यथोर्वशीं प्राप्य पुरा पुरूरवाः।। | 1-44-10a 1-44-10b 1-44-10c 1-44-10d |
वपुष्टमा चापि वरं पतिव्रता प्रतीतरूपा समवाप्य भूपतिम्। भावेन रामा रमयांबभूव तं विहारकालेष्ववरोधसुन्दरी।। | 1-44-11a 1-44-11b 1-44-11c 1-44-11d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः।। 44 ।। |
1-44-2 दह्यमानं ततो दृष्ट्वा इति पाठान्तरम्।। 1-44-7 प्रपितामहो युधिष्ठिरः।। 1-44-8 वपुष्टमा काशिराजकन्या।। 1-44-11 वरं वरणीयम्। प्रतीतरूपा हृष्टरूपा।। चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः।। 44 ।।
आदिपर्व-043 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-045 |