महाभारतम्-01-आदिपर्व-260
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मन्दपालस्य पुत्राश्वपूर्वकं सर्वैः सहान्यत्र गमनम्।। 1 ।।
देवगणैः सहागतस्येन्द्रस्य कृष्णार्जुनवरदानपूर्वकं स्वलोकगमनम्।। 2 ।।
अग्नेस्थानगमनानन्तरं कृष्णार्जुनमयानां नदीकूल उपवेशनम्।। 3 ।।
मन्दपाल उवाच। | 1-260-1x |
युष्माकमपवर्गार्थं ती ज्वलनो मया। अग्निना च तथेत्येतिज्ञातं महात्मना।। | 1-260-1a 1-260-1b |
अग्नेर्वचनमाज्ञाय धर्मज्ञतां च वः। भवतां च परं वीर्यं नाहमिहागतः।। | 1-260-2a 1-260-2b |
न सन्तापो हि वर्त्थः पुत्रका हृदि मां प्रति। ऋषीन्वेद हुताशो ब्रह्म तद्विदितं च वः।। | 1-260-3a 1-260-3b |
वैशंपायन उवाच। | 1-260-4x |
एवमाश्वासितान्पुत्रान्भार्यामादाय स द्विजः। मन्दपालस्ततो देशादन्यं देशं जगाम ह।। | 1-260-4a 1-260-4b |
भगवानापि तिग्मांशुः समिद्धः खाण्डवं ततः। ददाह सह कृष्णाभ्यां जनयञ्जगतो हितम्।। | 1-260-5a 1-260-5b |
वसामेदोवहाः कुल्यास्तत्र पीत्वा च पावकः। जगाम दर्शयामास चार्जुनम्।। | 1-260-6a 1-260-6b |
ततोऽञन्तरिक्षाद्भगवानवतीर्य पुरन्दरः। मरुद्गणैर्वृतः पार्थं केशवं चेदमब्रवीत्।। | 1-260-7a 1-260-7b |
कृतं युवाभ्यां कर्मेदममरैरपि दुष्करम्। वरं वृणीतं तुष्टोऽस्मि दुर्लभं पुरुषेष्विह।। | 1-260-8a 1-260-8b |
पार्थस्तु वरयामास शक्रादस्त्राणि सर्वशः। प्रदातुं तच्च शक्रस्तु कालं चक्रे महाद्युतिः।। | 1-260-9a 1-260-9b |
यदा प्रसन्नो भगवान्महादेवो भविष्यति। तदातुभ्यं प्रदास्यामि पाण्डवास्त्राणि सर्वशः।। | 1-260-10a 1-260-10b |
अहमेव च तं कालं वेत्स्यामि कुरुनन्दन। तपसा महता चापि दास्यामि भवतोऽप्यहम्।। | 1-260-11a 1-260-11b |
आग्नेयानि च सर्वाणि वायव्यानि च सर्वशः। मदीयानि च सर्वाणि ग्रहीष्यसि धनञ्जय।। | 1-260-12a 1-260-12b |
वासुदेवोऽपि जग्राह प्रीतिं पार्थेन शाश्वतीम्। ददौ सुरपतिश्चैव वरं कृष्णाय धीमते।। | 1-260-13a 1-260-13b |
एवं दत्त्वा वरं ताभ्यां सह देवैर्मरुत्पतिः। हुताशनमनुज्ञाप्य जगामत्रिदिवं प्रभुः।। | 1-260-14a 1-260-14b |
पावकश्च तदा दावं दग्ध्वसमृगपक्षिणम्। अहोभिरेकविंशद्भिर्विरराग्सुतर्पितः।। | 1-260-15a 1-260-15b |
जग्ध्वा मांसानि पीत्वा चदांसि रुधिराणि च। युक्तः परमया प्रीत्या तावुत्वाच्युतार्जुनौ।। | 1-260-16a 1-260-16b |
युवाभ्यां पुरुषाग्र्याभ्यां ततोऽस्मि यथासुखम्। अनुजानामि वां वीरौ चरतंत्र वाञ्छितम्।। | 1-260-17a 1-260-17b |
`गाण्डिवं च धनुर्दिव्यमक्षौ च महेषुधी। कपिध्वजो रथश्चायं तव द महामते।। | 1-260-18a 1-260-18b |
अनेन धनुषा चैव रथेनाने भारत। विजेष्यसि रणे शत्रून्सदेवामानुषान्।।' | 1-260-19a 1-260-19b |
एवं तौ समनुज्ञातौ पाववेमहात्मना। अर्जुनो वासुदेवश्च दानवश्चयस्तथा।। | 1-260-20a 1-260-20b |
परिक्रम्य ततः सर्वे त्रयोऽभरतर्षभ। रमणीये नदीकूले सहितामुपाविशंन्।। | 1-260-21a 1-260-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शतसाहस्त्र्यां संहितायां | |
।। समाप्तं मयदर्शनपर्वादिपर्व च।। |
1-260-15 अहानि पञ्च चैकं च इति ख. पाठः।। षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 260 ।।
आदिपर्व-259 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सभापर्व |