महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-222
दिखावट
← अनुशासनपर्व-221 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-222 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-223 → |
महेश्वरेणोमांप्रति स्त्रीणां पुंश्चलीत्वादिदोषहेतुभूतदुष्कर्मकथनम्।। 1 ।। तथा प्राणिसाधारण्येन दास्यादिप्रयोजकदुष्कर्मकथनम्।। 2 ।।
उमोवाच। | 13-222-1x |
भगवन्देवदेवेश शूलपाणे वृषध्वज। पुंश्चल्य इव या स्त्रीषु नीचवृत्तिरताः स्मृताः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-222-1a 13-222-1b 13-222-1c |
महेश्वर उवाच। | 13-222-2x |
याः पुरा मनुजा देवि बुद्धिमोहसमन्विताः। कामरागसमायुक्ताः पतीनतिचरन्ति वै।। | 13-222-2a 13-222-2b |
प्रतिकूलपरा यास्तु पतीन्प्रति यथा तथा। शौचं लज्जां तु विस्मृत्य यथेष्टपरिचारणाः।। | 13-222-3a 13-222-3b |
एवंयुक्तसमाचारा यमलोके सुदण्डिताः। यदि वै मानुषं जन्म लभेरंस्तास्तथाविधाः। बहुसाधारणा एव पुंश्चल्यश्च भवन्ति ताः।। | 13-222-4a 13-222-4b 13-222-4c |
पौश्चल्यं यत्तु तद्वृत्तं स्त्रीणां कष्टतमं स्मृतम्। ततःप्रभृति ता देवि पतन्त्येव न संशयः।। | 13-222-5a 13-222-5b |
शोचन्ति चेत्तु तद्वृत्तं मनसा हितमाप्नुयुः।। | 13-222-6a |
उमोवाच। | 13-222-6x |
भगवन्देवदेवेश प्रमदा विधवा भृशम्। | 13-222-6b |
दृश्यन्ते मानुषा लोके सर्वकल्याणवर्जिताः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-222-7a 13-222-7b |
महेश्वर उवाच। | 13-222-8x |
याः पुरा मनुजा देवि बुद्धिमोहसमन्विताः। कुटुम्बं तत्र वे पत्युर्नाशयन्ति वृथा तथा।। | 13-222-8a 13-222-8b |
विषदाश्चाग्निदाश्चैव पतीन्प्रति सुनिर्दयाः। अन्यासां हि पतीन्यान्ति स्वपतिद्वेषकारणात्।। | 13-222-9a 13-222-9b |
एवंयुक्तसमाचारा यमलोके सुदण्डिताः। निरयस्थाश्चिरं कालं कथंचित्प्राप्य मानुषम्। तत्र ता भोगरहिता विधवास्तु भवन्ति वै।। | 13-222-10a 13-222-10b 13-222-10c |
उमोवाच। | 13-222-11x |
भगवन्प्रमदा लोके पत्यौ ज्ञातिषु सत्सुच। लिङ्गिन्यः सम्प्रदृश्यन्ते पाषण्डं मतमाश्रिताः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-222-11a 13-222-11b 13-222-11c |
महेश्वर उवाच। | 13-222-12x |
याः पुरा भावदोषेणि लोभमोहसमन्विताः। परद्रव्यपरा लोभात्परेषां द्रव्यहारकाः।। | 13-222-12a 13-222-12b |
अभ्यसूयापरा यास्तु सपत्नीनां प्रदूषकाः। ईर्ष्यापराः कोपनाश्च बन्धूनां विफलाः सदा।। | 13-222-13a 13-222-13b |
एवंयुक्तसमाचाराः पुनर्जन्मनि ताः स्त्रियः। अलक्षणसमायुक्ताः पाषण्डं धर्ममाश्रिताः। स्त्रियः प्रव्राजशीलाश्च भवन्त्येव न संशयः।। | 13-222-14a 13-222-14b 13-222-14c |
उमोवाच। | 13-222-15x |
भगवन्मानुषाः केचित्कारुवृत्तिसमाश्रिताः। प्रदृश्यन्ते मनुष्येषु नीचकर्मरतास्तथा। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हति।। | 13-222-15a 13-222-15b 13-222-15c |
महेश्वर उवाच। | 13-222-16x |
ये पुरा मनुजा देवि स्तब्धमानयुता भृशम्। दर्पाहङ्कारसंयुक्ताः केवलात्मपरायणाः।। | 13-222-16a 13-222-16b |
तादृशा मानुषा देवि पुनर्जन्मनि शोभने। कात्वो नटगन्धर्वाः सम्भवन्ति यथा तथा।। | 13-222-17a 13-222-17b |
नापिता बन्दिनश्चैव तथा वैतालिकाः प्रिये। एवंभूतास्त्वधोवृत्तिं जीवन्त्याश्रित्य मानवाः।। | 13-222-18a 13-222-18b |
परप्रसाधनकरास्ते परैः कृतवेतनाः। परावमानस्य फलं भुञ्जते पौर्वदैहिकम्।। | 13-222-19a 13-222-19b |
उमोवाच। | 13-222-20x |
भगवन्देवदेवेश मानुषेष्वेव केचन। दासभूताः प्रदृश्यन्ते सर्वकर्मपरा भृशम्।। | 13-222-20a 13-222-20b |
आघातभर्त्सनसहाः पीड्यमानाश्च सर्वशः। केन कर्मविपाकेन तन्मे शंसितुमर्हसि।। | 13-222-21a 13-222-21b |
महेश्वर उवाच। | 13-222-22x |
तदहं ते प्रवक्ष्यामि शृणु कल्याणि कारणम्।। | 13-222-22a |
ये पुरा मनुजा देवि परेषां वित्तहारकाः। ऋणवृद्धिकरं कृष्या न्यासदत्तं तथैव च।। | 13-222-23a 13-222-23b |
निक्षेपकारणाद्दत्तपरद्रव्यापहारिणः। प्रमादाद्विस्मृतं नष्टं परेषां धनहारकाः।। | 13-222-24a 13-222-24b |
वधबन्धपरिक्लेशैर्दासत्वं कुर्वते परान्। तादृशा मरणं प्राप्ता दण्डिता यमशासनैः।। | 13-222-25a 13-222-25b |
कथञ्चित्प्राप्य मानुष्यं तत्र ते देवि सर्वथा। दासभूता भविष्यन्ति जन्मप्रभृति मानवाः।। | 13-222-26a 13-222-26b |
तेषां कर्माणि कुर्वन्ति येषां ते धनहारकाः। आसमाप्तेः स्वपापस्य कुर्वन्तीति विनिश्चयः।। | 13-222-27a 13-222-27b |
पशुभूतास्तथा चान्ये भवन्ति धनहारकाः। तत्तथा क्षीयते कर्म तेषां पूर्वापराधजम्। अतोऽन्यथा न तच्छक्यं कर्म भोक्तुं सुरासुरैः।। | 13-222-28a 13-222-28b 13-222-28c |
किन्तु मोक्षविधिस्तेषां सर्वता तत्प्रसादनम्। अयथावन्मोक्षकामः पुनर्जन्मनि चेष्यते।। | 13-222-29a 13-222-29b |
मोक्षकामी यथान्यायं कुर्वन्कर्माणि सर्वशः। भर्तुः प्रसादमाकाङ्क्षेदायासान्सर्वथा सहन्।। | 13-222-30a 13-222-30b |
प्रीतिपूर्वं तु यो भर्त्रा मुक्तो मुक्तः स्वपापतः। तथाभूतान्कर्मकरान्सदा सन्तोषयेत्पतिः।। | 13-222-31a 13-222-31b |
यथार्हं कारयेत्कर्म दण्डकारणतः क्षिपेत्। वृद्धान्बालांस्तथा क्षीणान्पालयन्धर्ममाप्नुयात्।। | 13-222-32a 13-222-32b |
इति ते कथितं देवि भूयः श्रोतुं किमिच्छसि।। | 13-222-33a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि द्वाविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। |
अनुशासनपर्व-221 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-223 |