महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-249
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पार्वत्या परमेश्वरंप्रति देवगन्धर्वादियोषितां मध्ये स्त्रीधर्मकथनम्।। 1 ।।
नारद उवाच। | 13-249-1x |
एवं ब्रुवन्त्यां स्त्रीधर्मं देव्यां देवस्य शासनात्। ऋषिगन्धर्वयक्षाणां योषितश्चाप्सरोगणाः।। | 13-249-1a 13-249-1b |
नागभूतस्त्रियश्चैव नद्यश्चैव समागताः। श्रुतुकामाः परं वाक्यं सर्वाः पर्यवतस्थिरे।। | 13-249-2a 13-249-2b |
उमादेवी मुदा युक्ता पुज्यमानाऽङ्गनागणैः। आनृशंस्यपरा देवी सततं स्त्रीगणं प्रति।। | 13-249-3a 13-249-3b |
स्त्रीगणस्य हितार्थाय भवप्रियचिकीर्षया। वक्तुं वचनमारेभे स्त्रीणां धर्माश्रयान्वितम्।। | 13-249-4a 13-249-4b |
उमोवाच। | 13-249-5x |
भगवन्सर्वभूतेश श्रूयतां वचनं मम। ऋतुप्राप्ता सुशुद्दा या कन्या सेत्यभिधीयते।। | 13-249-5a 13-249-5b |
तां तु कन्यां पिता माता भ्राता मातुल एव वा। पितृव्यश्चैव पञ्चते दातुं प्रभवतां गताः।। | 13-249-6a 13-249-6b |
विवाहाश्च तथा पञ्च तासां धर्मार्थकारणात्। कामतश्च मिथो दानमितरेतरकाम्यया।। | 13-249-7a 13-249-7b |
दत्ता यस्य भवेद्भार्या एतेषां येन केन चित्। दातारः सुविमृश्यैव दातुमर्हन्ति नान्यथा।। | 13-249-8a 13-249-8b |
उत्तमानां तु वर्णानां मन्त्रवत्पाणिसङ्ग्रहः। विवाहकारणं चाहुः शूद्राणां सम्प्रयोगतः।। | 13-249-9a 13-249-9b |
यदा दत्ता भवेत्कन्या तस्माद्भार्यार्थिने स्वकैः। तदाप्रभृति सा नारी दशरात्रं विलज्जया। मनसा कर्मणा वाचा अनुकूला च सा भवेत्।। | 13-249-10a 13-249-10b 13-249-10c |
इति भर्तृव्रतं कुर्यात्पतिमुद्दिश्य शोभना। तदाप्रभृति सा नारी न कुर्यात्पत्युरप्रियम्।। | 13-249-11a 13-249-11b |
यद्यदिच्छति वै भर्ता ध्रमकामार्थकारणात्। तथैवानुप्रिया भूत्वा तथैवोपचरेत्पतिम्। पतिव्रतात्वं नारीणामेतदेव सनातनम्।। | 13-249-12a 13-249-12b 13-249-12c |
तादृशी सा भवेन्नित्यं यादृशस्तु भवेत्पतिः। शुभाशुभसमाचार एतद्वृत्तं समासतः।। | 13-249-13a 13-249-13b |
दैवतं सततं साध्वी भर्तारं या तु पश्यति। दैवमेव भवेत्तस्याः पतिरित्यवगम्यते।। | 13-249-14a 13-249-14b |
एतस्मिन्कारणं देव पौराणी श्रूयते श्रुतिः। कथयामि प्रसादात्ते शृणु देव समासतः।। | 13-249-15a 13-249-15b |
कस्य चित्त्वथ विप्रस्य भार्ये द्वे हि बभूवतुः। तयोरेका धर्मकामा देवानुद्दिश्य भक्तितः।। | 13-249-16a 13-249-16b |
भर्तारमवमत्यैव देवतासु समाहिता। चकार विपुलं धर्मं पूजयानाऽर्चयाऽन्वितम्।। | 13-249-17a 13-249-17b |
अपरा धर्मकामा च पतिमुद्दिश्य शोभना। भर्तारं दैवतं कृत्वा चकार किल तत्प्रियम्।। | 13-249-18a 13-249-18b |
एवं विवर्तमाने तु युगपन्मरणेऽध्वनि। गते किल महादेव तत्रैका या पतिव्रता। देवप्रियायां तिष्ठन्त्यां पुण्यलोकं जगाम सा।। | 13-249-19a 13-249-19b 13-249-19c |
देवप्रिया च तिष्ठन्ती विललाप सुदुःखिता। तां यमो लोकपालस्तु बभाषे पुष्कलं वचः।। | 13-249-20a 13-249-20b |
मा शुचस्त्वं निवर्तस्व न लोकाः सन्ति तेऽनघे। स्वधर्मविमुखा सा त्वं तस्माल्लोका न सन्ति ते।। | 13-249-21a 13-249-21b |
देवता हि पतिर्नार्याः स्थापिता सर्वदैवतैः। अवमत्य शुभे तत्त्वं कथं लोकान्गमिष्यसि।। | 13-249-22a 13-249-22b |
मोहेनि त्वं वरारोहे न जानीषे स्वदैवतम्। पतिमत्या स्त्रिया कार्यो धर्मः पत्यर्पणस्त्विति।। | 13-249-23a 13-249-23b |
तस्मात्त्वं हि निवर्तस्व कुरु पत्याश्रितं हितम्। तदा गन्तासि लोकांस्तान्यान्गच्छन्ति पतिव्रताः। नान्यथा शक्यते प्राप्तुं पतीनां लोकमुत्तमम्।। | 13-249-24a 13-249-24b 13-249-24c |
यमेनैवंविधं चोक्ता निवृत्ता पुनरेव सा। बभूव पतिमालम्ब्य पतिप्रियपरायणा।। | 13-249-25a 13-249-25b |
एवमेतन्महगादेव दैवतं हि स्त्रियाः पतिः। तस्मात्पतिपरा भूत्वा पतीनुपचरेदिति।। | 13-249-26a 13-249-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 249 ।। |
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