महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-019
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श्रीकृष्णेन भीष्मंप्रति युधिष्ठिराय गरुडोपाख्यानकथनचोदना।। 1 ।।
`युधिष्ठिर उवाच। | 13-19-1x |
गरुडः पक्षिणां श्रेष्ठ इति पूर्वं पितामह। उक्तस्त्वया महाबाहो श्वेतवाहं प्रशंसता।। | 13-19-1a 13-19-1b |
अत्र कौतूहल इति श्रवणे जायते मतिः। कथं गरुत्मान्पक्षीणां श्रैष्ठ्यं प्राप परन्तप।। | 13-19-2a 13-19-2b |
सुपर्णो वैनतेयश्च केन शत्रुश्च भोगिनाम्। किंवीर्यः किंबलश्चासौ वक्तुमर्हसि भारत।। | 13-19-3a 13-19-3b |
भीष्म उवाच। | 13-19-4x |
वासुदेव महाबाहो देवकी सुप्रजास्त्वया। श्रुतं ते धर्मराजस्य मम हर्षविवर्धन।। | 13-19-4a 13-19-4b |
सुपर्णं शंस इत्येव मामाह कुरुनन्दनः। अस्य प्रवक्तुमिच्छामि त्वयाऽज्ञप्तो महाद्युते।। | 13-19-5a 13-19-5b |
त्वं हि शौरे महाबाहो सुपर्णः प्रोच्यसे पुरा। अनादिनिधने काले गरुडश्चासि केशव।। | 13-19-6a 13-19-6b |
तस्मात्पूर्वं प्रसाद्य त्वां धर्मपुत्राय धीमते। गरुडं पततांश्रेष्ठं वक्तुमिच्छामि माधव।। | 13-19-7a 13-19-7b |
वासुदेव उवाच। | 13-19-8x |
यथैव मां भवान्वेद तथा वेद युधिष्ठिरः। यथा च गरुडो जातस्तथाऽस्मै ब्रूहि तत्वतः'।। | 13-19-8a 13-19-8b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनविंशोऽध्यायः।। 19 ।। |
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