महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-037
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ब्रह्मादिसर्वजगतामनित्यत्वादिकथनपूर्वकं नारायणस्य नित्यत्वादिकथनेन तदुपासनविधानम्।। 1 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-37-1x |
सदृशं राजशार्दूल वृत्तस्य च कुलस्य च।। | 13-37-1a |
को राज्यं विपुलं गृह्य स्फीताकारं पुनर्महत्। निर्जितारातिसामन्तं देवराज्योपमं सुखम्।। | 13-37-2a 13-37-2b |
राज्ये राज्यगुणा ये च तान्व्युदस्य नराधिप। दोषं पश्यति राजेन्द्र देहेऽस्मिन्पाञ्चभौतिके।। | 13-37-3a 13-37-3b |
अतिक्रान्तास्त्वया राजन्वृत्तेन प्रपितामहाः। धर्मो विग्रहवान्धीरो विदुरश्च महायशाः।। | 13-37-4a 13-37-4b |
सञ्जयश्च महातेजा ये चान्ये दिव्यदर्शनाः। प्रवृत्तज्ञानसम्पन्नास्तत्वज्ञानविदो नृप।। | 13-37-5a 13-37-5b |
तेऽतिक्रान्ता महाराज ब्रह्माद्याः ससुरासुराः। अनित्यं दुःखसंतप्तं जगदेतन्न संशयः।। | 13-37-6a 13-37-6b |
एवमेतान्महाबाहो ब्रह्माद्यान्ससुरासुरान्। अनित्यान्सततं पश्य मनुष्यादिषु का कथा।। | 13-37-7a 13-37-7b |
नित्यां तु प्रकृतीमाह याऽसौ प्रसवधर्मिणी। अरूपिणीमनिर्देश्यामकृतां पुरुषातिगाम्।। | 13-37-8a 13-37-8b |
तामत्यन्तसुखां सौम्यां निर्वाणमिति संज्ञिताम्। आहुर्ब्रह्मर्षयो ह्याद्यां भुवि चैव महर्षयः।। | 13-37-9a 13-37-9b |
तया पुरुषरूपिण्या धर्मप्रकृतिकोऽनघ। स यात्येव हि निर्वाणं यत्तत्प्रकृतिसंज्ञितम्।। | 13-37-10a 13-37-10b |
स एष प्राकृतो धर्मो भ्राजत्यादियुगे नृप। विकारधर्माः शेषेषु युगेषु भरतर्षभ। भ्राजन्तेऽभ्यधिकं वीर संसारपथगोचराः।। | 13-37-11a 13-37-11b 13-37-11c |
प्रकृतीनां च सर्वासामकृता प्रकृतिः स्मृता। एवं प्रकृतिधर्मा हि वरां प्रकृतिमाश्रिता।। | 13-37-12a 13-37-12b |
पश्यन्ति परमां लोके दृष्टादृष्टानुदर्शिनीम्। सत्वादियुगपर्यन्ते त्रेतायुगसमुद्भवे।। | 13-37-13a 13-37-13b |
कामं कामयमानेषु ब्राह्मणेषु तिरोहितः। कुपथेषु तु धर्मेषु प्रादुर्भूतेषु कौरव। जातो मन्दप्रचारो हि धर्मः कलियुगे नृप।। | 13-37-14a 13-37-14b 13-37-14c |
नित्यस्तु पुरुषो ज्ञेयो विश्वरूपो निरञ्जनः। ब्रह्माद्या अपि देवाश्च यं सदा पर्युपासते।। | 13-37-15a 13-37-15b |
तं च नारायणं विद्धि परं ब्रह्मेति शाश्वतम्। तत्कर्म कुरु कायेन ध्यायस्व मनसा च तम्।। | 13-37-16a 13-37-16b |
कीर्तयस्व च तन्नाम वाचा सर्वत्र भूपते। तत्पदं प्राप्नुहि प्राप्यं शाश्वतं चापुनर्भवम्।। | 13-37-17a 13-37-17b |
इत्येतद्विष्णुमाश्रित्य संसारग्रहमोक्षणम्। कथितं ते महाबाहो किं भूयः श्रोतुमिच्छसि।।' | 13-37-18a 13-37-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि सप्तत्रिंशोऽध्यायः।। 37 ।। |
13-37-3 देहेऽस्मिन्पञ्चविंशक इति ट. थ. ध. पाठः।।
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