महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-135
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति श्राद्धे तिलमांसविशेषदानस्य फलविशेषकथनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-135-1x |
किंस्विद्दत्तं पितृभ्यो वै भवत्यक्षयमीश्वरः। किंस्विद्वहुफलं प्रोक्तं किमानन्त्याय कल्पते।। | 13-135-1a 13-135-1b |
भीष्म उवाच। | 13-135-2x |
हवींषि श्राद्धकल्पे तु यानि श्राद्धविदो विदुः। तानि मे शृणु काम्यानि फलं चैषां युधिष्ठिर।। | 13-135-2a 13-135-2b |
तिलैर्व्रीहियवैर्माषैरद्भिर्मूलफलैस्तथा। दत्तेन मासं प्रीयन्ते श्राद्धेन पितरो नृप।। | 13-135-3a 13-135-3b |
वर्धमानतिलं श्राद्धमक्षयं मनुरब्रवीत्। सर्वेष्वेव तु भोज्येषु तिलाः प्राधान्यतः स्मृताः।। | 13-135-4a 13-135-4b |
द्वौ मासौ तु भवेत्तुप्तिर्मत्स्यैः तितृगणस्य ह। त्रीन्मासानाविकेनाहुश्चतुर्मासं शशेन ह।। | 13-135-5a 13-135-5b |
आजेन मासान्प्रीयन्ते पञ्चैव पितरो नृप। वाराहेण तु षण्मासान्सप्त वै शाकुलेन तु।। | 13-135-6a 13-135-6b |
मासानष्टौ पार्षतेन रौरवेण नव प्रभो। गवयस्य तु मांसेन तृप्तिः स्याद्दशमासिकी।। | 13-135-7a 13-135-7b |
मांसेनेकादश प्रीतिः पितॄणां माहिषेण तु। गव्येन दत्ते श्राद्धे तु संवत्सरमिहोच्यते।। | 13-135-8a 13-135-8b |
यथा गव्यं तथा युक्तं पायसं सर्पिषा सह। वाध्रीणसस्य मांसेन तृप्तिर्द्वादशवार्षिकी।। | 13-135-9a 13-135-9b |
आन्त्याय भवेद्दतं खङ्गमांसं पितृक्षते। कालशाकं च लौहं चाप्यानन्त्यं छाग उच्यते।। | 13-135-10a 13-135-10b |
गाथाश्चाप्यत्र गायन्ति पितृगीता युधिष्ठिर। सनत्कुमारो भगवान्पुरा मध्यभ्यभाषत।। | 13-135-11a 13-135-11b |
अपि नः स्वकुले जायाद्यो नो दद्यात्त्रयोदशीम्। मघासु सर्पिःसंयुक्तं पायसं दक्षिणायने।। | 13-135-12a 13-135-12b |
आजेन वाऽपि लौहेन मघास्वेव यतव्रतः। हस्तिच्छायासु विधिवत्कर्णव्यजनवीजितम्।। | 13-135-13a 13-135-13b |
एष्टव्या बहवः पुत्रा यद्येकोपि गयां व्रजेत्। यत्रासौ प्रथितो लोकेष्वक्ष्यकरणो वटः।। | 13-135-14a 13-135-14b |
आपो मूलं फलं मांसमन्नं वाऽपि पितृक्षये। यत्किञ्चिन्मधुसंमिश्रं तदानन्त्याय कल्पते।। | 13-135-15a 13-135-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि पञ्चत्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः।। 135 ।। |
13-135-7 पृषतश्चित्रमृगस्तदीयं पार्षतम्। रुरुः कृष्णमृगस्तदीयं रौरवम्।। 13-135-9 वाध्रीणसः वध्र्या स्यूतनासिको महोक्षः। पक्षिविशेषोऽजविशेषश्चेत्यन्ये।। 13-135-10 पितृक्षते मृततिथौ। लौहं काञ्चनवृक्षजं पुष्पादिशाकम्।। 13-135-13 वीजितं पायसादिकं दद्यादिति पूर्वेणान्वयः।।
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