महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-074
दिखावट
← अनुशासनपर्व-073 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-074 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-075 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति स्त्रीणां दुश्चरितकथनम्।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-74-1x |
इमे वै मानवा लोके स्त्रीषु सज्जन्त्यभीक्ष्णशः। मोहेन परमाविष्टा देवदृष्टेन कर्मणा।। | 13-74-1a 13-74-1b |
स्त्रियश्च पुरुषेष्वेव प्रत्यक्षं लोकसाक्षिकम्। अत्र मे संशयस्तीव्रो हृदि सम्परिवर्तते।। | 13-74-2a 13-74-2b |
कथमासां नराः सङ्गं कुर्वते कुरुनन्दनः। स्त्रियो वातेषु रज्यन्ते विरज्यन्ते च ताः पुनः।। | 13-74-3a 13-74-3b |
इति ताः पुरुषव्याघ्र कथं शक्यास्तु रक्षितुम्। प्रमदाः पुरुषेणेह तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 13-74-4a 13-74-4b |
भीष्म उवाच। | 13-74-5x |
एत्वा हि स्वीयमायाभिर्वञ्चयन्तीह मानवान्। न चासां मुच्यते कश्चित्पुरुषो हस्तमागतः।। | 13-74-5a 13-74-5b |
गावो नवतृणानीव गृह्णन्त्येता नवन्नवम्।। | 13-74-6a |
शम्बरस्य च या माया माया या नमुचेरपि। बलेः कुम्भीनसेश्चैव सर्वास्तां योषितो विदुः।। | 13-74-7a 13-74-7b |
हसन्तं प्रहसन्त्येता रुद्रन्तं प्ररुदन्ति च। अप्रियं प्रियवाक्यैश्च गृह्णते कालयोगतः।। | 13-74-8a 13-74-8b |
`यदि जिह्वासहस्रं स्याज्जीवेच्च शरदां शतम्। अनन्यकर्मा स्त्रीदोषाननुक्त्वा निधनं व्रजेत्।।' | 13-74-9a 13-74-9b |
उशना वेद यच्छास्त्रं यच्च वेद बृहस्पतिः। स्त्री बुद्ध्या न विशिष्येत तास्तु रक्ष्याः कथं नरैः।। | 13-74-10a 13-74-10b |
अनृतं सत्यमित्याहुः सत्यं चापि तथाऽनृतम्। इति यास्ताः कथं वीर संरक्ष्याः पुरुषैरिह। `दोषास्पदेऽशुचौ देहे ह्यासां सक्तास्त्वहो नराः'।। | 13-74-11a 13-74-11b 13-74-11c |
स्त्रीणां बुद्ध्यर्थनिष्कर्षादर्थशास्त्राणि शत्रुहन्। बृहस्पतिप्रभृतिभिर्मन्ये सद्भिः कृतानि वै।। | 13-74-12a 13-74-12b |
संपूज्यमानाः पुरुषैर्विकुर्वन्ति मनो नृषु। अपास्ताश्च तथा राजन्विकुर्वन्ति मनः स्त्रियः।। | 13-74-13a 13-74-13b |
इमाः प्रजा महापाहो धार्मिक्य इति नः श्रुतम्।। | 13-74-14a |
सत्कृतासत्कृताश्चापि विकुर्वन्ति मनः सदा। कस्ताः शक्तो रक्षितुं स्यादिति मे संशयो महान्।। | 13-74-15a 13-74-15b |
तथा ब्रूहि महाभाग कुरूणां वंशवर्धन। यदि शक्या कुरुश्रेष्ठ रक्षा तासां कदाचन। | 13-74-16a 13-74-16b |
कर्तुं वा कृतपूर्वं वा तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 13-74-17a |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि चतुःसप्ततितमोऽध्यायः।। 74 ।। |
13-74-7 कुहकानि च वार्ष्णेय सर्वास्ता इति ट.थ.पाठः।। 13-74-13 एताः पूजिता दिक्कृता वा तुल्यवद्विकारं जनयन्तीत्यर्थः।। 13-74-14 इमाः स्त्रीरूपाः धार्मिक्य इति श्रुतं सावित्र्यादिषु दृष्टं च।।
अनुशासनपर्व-073 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-075 |