महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-027
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गरुडेन शैलाग्रे उपविश्य गजकच्छपयोर्भक्षणम्।। 1 ।। ततः स्वर्गेऽमृतसमीपं गतेन तेन तत्र परितो ज्वलदग्निदर्शनभया********* प्रति तच्छमनोपायप्रश्नः।। 2 ।। ब्रह्मणा तम्प्रति नवनीतप्रक्षेपेणाग्निसंशामनचेदना।। 3 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-27-1x |
हत्वा तं पक्षिशार्दूलः कुविन्दानां जनं व्रती। उपोपविश्य शैलाग्रे भक्षयामास तावुभौ। वारणं कच्छर्प चैव संहृष्टः स पतत्रिराट्।। | 13-27-1a 13-27-1b 13-27-1c |
तयोः स रुधिरं पीत्वा मेदसी च परन्तप। संहृष्टः यततांश्रेष्ठो लब्ध्वा बलमनुत्तमम्। जंगाम देवराजस्य भवनं पन्नगाशनः।। | 13-27-2a 13-27-2b 13-27-2c |
तं प्रणम्य महात्मानं पावकं विस्फुलिङ्गिनम्। रात्रिदिवं प्रज्वलितं रक्षार्थममृतस्य ह।। | 13-27-3a 13-27-3b |
तं दृष्ट्वा विहगेन्द्रस्य भयं तीव्रमुपाविशत्। नतु तोयान्न रक्षिभ्यो भयमस्योपपद्यते।। | 13-27-4a 13-27-4b |
पक्षित्वमात्मनो दृष्ट्वा ज्वलन्तं च हुताशनम्। पितामहमथो गत्वा ददर्श भुजगाशनः।। | 13-27-5a 13-27-5b |
तं प्रणम्य महात्मानं गरुडः प्रयताञ्जलिः। प्रोवाच तदसन्दिग्धं वचनं पन्नगेश्वरः।। | 13-27-6a 13-27-6b |
उद्यतं गुरुकृत्ये मां भगवन्धर्मनिश्चितम्। विमोक्षणार्थं मातुर्हि दासभावादनिन्दितम्।। | 13-27-7a 13-27-7b |
कद्रूसकाशममृतं मयाहर्तव्यमीश्वर। तदा मे जननी देव दासभावात्प्रमोक्ष्यते।। | 13-27-8a 13-27-8b |
तत्रामृतं प्रज्वलितो नित्यमीश्वर रक्षति। हिरण्यरेता भगवान्पाकशासनशासनात्।। | 13-27-9a 13-27-9b |
तत्र मे देवदेवेश भयं तीव्रमथाविशत्। ज्वलन्तं पावकं दृष्ट्वा पक्षित्वं चात्मनः प्रभो।। | 13-27-10a 13-27-10b |
समतिक्रमितुं शक्यः कथं स्यात्पावको मया। तस्याभ्युपायं वरद वक्तुमीशोऽसि मे प्रभो।। | 13-27-11a 13-27-11b |
तमब्रवीन्महाभाग तप्यमानं विहङ्गमम्। अग्नेः संशमनोपायमुत्सयन्त पुनःपुनः।। | 13-27-12a 13-27-12b |
पयसा शाम्यते वत्स सर्पिषा च हुताशनः। शरीरस्थोपि भूतानां किं पुनः प्रज्वलन्भुवि।। | 13-27-13a 13-27-13b |
नवनीतं पयो वाऽपि पावके त्वं समादधेः। ततो गच्छ यथाकामं न त्वा धक्ष्यति पावकः।।' | 13-27-14a 13-27-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि सप्तविंशोऽध्यायः।। 27 ।। |
13-27-7 जानीहीति शेषः।।
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