महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-126
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व्यासेन शुकम्प्रति कपिलानां गवां स्वाङ्गप्रवेशनेन देवेभ्यः प्रच्छन्नमात्मनोगोपनात्परितुष्टस्याग्नेर्वरात्सर्वश्रैष्ठ्यप्राप्तिकथनम्।। 1 ।।
`शुक उवाच। | 13-126-1x |
नानावर्णैरुपेतानां गवां किं मुनिसत्तम। कपिलाः सर्ववर्णेषु वरिष्ठत्वमवाप्नुवन्।। | 13-126-1a 13-126-1b |
व्यास उवाच। | 13-126-2x |
शृणु पुत्र यथा गोषु वरिष्ठाः कपिलाः स्मृताः। कपिलत्वं च सम्प्राप्ताः पूज्याश्चि सततं नृषु।। | 13-126-2a 13-126-2b |
अग्निः पुरापचक्राम देवेभ्य इति नः श्रुतम्। देवेभ्यो मां छादयत शरण्याः शरणं गतम्।। | 13-126-3a 13-126-3b |
ऊचुस्ताः सहितास्तत्र स्वागतं तव पावकः। इह गुप्तस्त्वमस्माभिर्न देवैरुपलप्स्यसे।। | 13-126-4a 13-126-4b |
अथ देवा विवित्सन्तः पावकं परिचक्रमुः। गोषु गुप्तं च विज्ञाय ताः क्षिप्रमुपतस्थिरे।। | 13-126-5a 13-126-5b |
युष्मासु निवसत्यग्निरिति गाः समचूचुदन्। प्रकाश्यतां हुतवहो लोकान्न च्छेत्तुमर्हथ।। | 13-126-6a 13-126-6b |
एवमस्त्वित्युनुज्ञाय पावकं समदर्शयन्।। | 13-126-7a |
अधिगम्य पावकं तुष्टास्ते देवाः सद्य एव तु। अग्निं प्रचोदयामासुः क्रियतां गोष्वनुग्रहः।। | 13-126-8a 13-126-8b |
गवां तु यासां गात्रेषु पावकः समवस्थितः। कपिलत्वमनुप्राप्ताः सर्वश्रेष्ठत्वमेव च।। | 13-126-9a 13-126-9b |
महाफलत्वं लोके च ददौ तासां हुताशनः। तस्माद्धि सर्ववर्णानां कपिलां गां प्रदापय। श्रोत्रियाय प्रशान्ताय प्रयतायाग्निहोत्रिणे।। | 13-126-10a 13-126-10b 13-126-10c |
यावन्ति रोमाणि भन्ति धेन्वा युगानि तावन्ति पुनाति दातॄन्। प्रतिग्रहीतॄंश्च पुनाति दत्ता शिष्टे तु गौर्वै प्रतिपादनेन।। | 13-126-11a 13-126-11b 13-126-11c 13-126-11d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि षड्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 126 ।। |
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