महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-253
दिखावट
← अनुशासनपर्व-252 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-253 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-254 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति दृष्टान्ततया विप्रकन्योपाख्यानकथनपूर्वकं विद्वत्संरक्षणस्य महाफलहेतुत्वकथनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-253-1x |
कृपया परया प्रोक्तः सर्वेषां पापकर्मणाम्। ज्ञानस्य च परस्येह तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 13-253-1a 13-253-1b |
भीष्म उवाच। | 13-253-2x |
उपायोऽयं परप्राप्तौ परमः परिकीर्तितः। नारायणास्यानुध्यानमर्चनं यजनं स्तुतिः।। | 13-253-2a 13-253-2b |
श्रवणं तत्कथानां च विद्वत्संरक्षणं तथा। विद्वच्छुश्रूषणप्रीतिरुपदेशानुपालनम्। स ध्यानेन जपेननाशु मुच्यते प्राकृतोपि वा।। | 13-253-3a 13-253-3b 13-253-3c |
जपश्चतुर्विधः प्रोक्तो वैदिकस्तान्त्रिकोपि च। पौराणिकोथ विद्वद्भिः कथितः स्मार्त एव च।। | 13-253-4a 13-253-4b |
विद्वच्छुश्रूषया ज्ञानं विद्वत्संरक्षणेन च। नासाध्यं ज्ञानिनां किञ्चित्तस्माद्रक्ष्यास्त्वया द्विजाः।। | 13-253-5a 13-253-5b |
सुव्रता बन्धुहीनैका वने पूर्वं यमेन तु। आसीदाश्वासिता विद्वत्संरक्षणफलात्किल।। | 13-253-6a 13-253-6b |
विप्रस्य मरणे हेतुस्तत्पत्नी पितृशोकदा। वैश्या त्वमतिलाभोऽयं विप्रकन्येति साम्प्रतम्। | 13-253-7a 13-253-7b |
इत्युक्ताऽऽश्वासिताऽपृच्छत्केनैवं पापसंयुता। जाता विप्रकुले सम्यक् श्रेयश्चापि ब्रवीहि मे।। | 13-253-8a 13-253-8b |
यम उवाच। | 13-253-9x |
अन्यजन्मनि विद्वांसं प्रहारैरभिपीडितम्। चोरशङ्काविमोक्षेण मोक्षयित्वा सुजन्मिका।। | 13-253-9a 13-253-9b |
इत्युक्ताऽष्टाक्षरध्यानजपादिश्रेयसंयुता। यमेनानुगृहीताऽभूत्पुण्यलोकनिवासिनी।। | 13-253-10a 13-253-10b |
तन्नित्यं विदुषां रक्षा तत्परोऽभूर्महीपते। तेषां संरक्षणात्सद्यः सर्वपापैः प्रमुच्यते।। | 13-253-11a 13-253-11b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रिपञ्चशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 253 ।। |
अनुशासनपर्व-252 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-254 |