महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-200
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति दृष्टान्तप्रदर्शनपूर्वकं दानप्रशंसनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-200-1x |
दानेन वर्ततेत्याह तपसा चैव भारत। तदेतन्मे मनोदुःशं व्यपोह त्वं पितामह। किंस्वित्पृथिव्यां ह्येतन्मे भवाञ्शंसितुमर्हति।। | 13-200-1a 13-200-1b 13-200-1c |
भीष्म उवाच। | 13-200-2x |
शृणु यैर्धर्मनिरतैस्तपसा भावितात्मभिः। लोका ह्यसंशयं प्राप्ता दानपुण्यरतैर्नृपैः।। | 13-200-2a 13-200-2b |
सत्कृतश्च तथाऽऽत्रेयः शिष्येभ्यो ब्रह्म निर्गुणम्। उपदिश्य तदा राजन्गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-3a 13-200-3b |
शिबिरोशीनरः प्राणान्प्रियस्य तनयस्य च। ब्राह्मणार्थमुपाकृत्य नाकपृष्ठमितो गतः।। | 13-200-4a 13-200-4b |
प्रतर्दनः काशिपतिः प्रदाय तनयं स्वकम्। ब्राह्मणायातुलां कीर्तिमिह चामुत्र चाश्नुते।। | 13-200-5a 13-200-5b |
रन्तिदेवश्च सांकृत्यो वसिष्ठाय महात्मने। अर्घ्यं प्रदाय विधिवल्लेभे लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-6a 13-200-6b |
दिव्यं शतशलाकं च यज्ञार्थं काञ्चनं शुभम्। छत्रं देवावृधो दत्त्वा ब्राह्मणायास्थितो दिवम्।। | 13-200-7a 13-200-7b |
भगवानम्बरीषश्च ब्राह्मणायामितौजसे। प्रदाय सकलं राष्ट्रं सुरोलकमवाप्तवान्।। | 13-200-8a 13-200-8b |
सावित्रः कुण्डलं दिव्यं यानं च जनमेजयः। ब्राह्मणाय च गा दत्त्वा गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-9a 13-200-9b |
वृषादर्भिश्च राजर्षी रत्नानि विविधानि च। रम्यांश्चावसथान्दत्त्वा द्विजेभ्यो दिवमागतः।। | 13-200-10a 13-200-10b |
निमी राष्ट्रं च वैदर्भिः कन्यां दत्त्वा महात्मने। अगस्त्याय गतः स्वर्गं सपुत्रपशुबान्धवः।। | 13-200-11a 13-200-11b |
जामदग्न्यश्च विप्राय भूमिं दत्त्वा महायशाः। रामोऽक्षयांस्तथा लोकाञ्जगाम मनसोऽधिकान्।। | 13-200-12a 13-200-12b |
अवर्षति च पर्जन्ये सर्वभूतानि देवराट्। वसिष्ठो जीवयामास येन यातोऽक्षयां गतिम्।। | 13-200-13a 13-200-13b |
रामो दाशरथिश्चैव हुत्वा यज्ञेषु वै वसु। सगतो ह्यक्षयाँल्लोकान्यस्य लोके महद्यशः।। | 13-200-14a 13-200-14b |
कक्षसेनश्च राजर्षिर्वसिष्ठाय महात्मने। न्यासं यथावत्संन्यस्य जगामि सुमहायशः।। | 13-200-15a 13-200-15b |
करंधमस्य पौत्रस्तु मरुत्तोऽविक्षितः सुतः। कन्यामाङ्गिरसे दत्त्वा दिवामाशु जगाम सः।। | 13-200-16a 13-200-16b |
ब्रह्मदत्तश्च पाञ्चाल्यो राजा धर्मभृतांवरः। निधिं शङ्खमनुज्ञाप्य जगाम परमां गतिम्।। | 13-200-17a 13-200-17b |
राजा मित्रसहश्चैव वसिष्ठाय महात्मने। मदयन्तीं प्रियां भार्यां दत्त्वा च त्रिदिवं गतः।। | 13-200-18a 13-200-18b |
मनोः पुत्रश्च सुद्युम्नो लिखिताय महात्मने। दण्डमुद्धृत्य धर्मेण गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-19a 13-200-19b |
सहस्रचित्यो राजर्षिः प्राणानिष्टान्महायशाः। ब्राह्मणार्थे परित्यज्य गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-20a 13-200-20b |
सर्वकामैश्च सम्पूर्णं दत्त्वा वेश्म हिरण्मयम्। मौद्गल्याय गतः स्वर्गं शतद्युम्नो महीपतिः।। | 13-200-21a 13-200-21b |
भक्ष्यभोज्यस्य च कृतान्राशयः पर्वतोपमान्। शाण्डिल्याय पुरा दत्त्वा सुमन्युर्दिवमास्थितः।। | 13-200-22a 13-200-22b |
नाम्ना च द्युतिमान्नाम साल्वराजो महाद्युतिः। दत्त्वा राज्यमृचीकाय गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-23a 13-200-23b |
मदिराश्वश्च राजर्षिर्दत्त्वा कन्यां सुमध्यमाम्। हिरण्यहस्ताय गतो लोकान्देवैरधिष्ठितान्।। | 13-200-24a 13-200-24b |
लोमपादश्च राजर्षिः शान्तां दत्त्वा सुतां प्रभुः। ऋश्यशृङ्गाय विपुलैः सर्वैः कामैरयुज्यत।। | 13-200-25a 13-200-25b |
कौत्साय दत्त्वा कन्यां तु हंसीं नाम यशस्विनीम्। गतोऽक्षयानतो लोकान्राजर्षिश्च भगीरथः।। | 13-200-26a 13-200-26b |
दत्त्वा शतसहस्रं तु गवां राजा भगीरथः। स वत्सानां कोहलाय गतो लोकाननुत्तमान्।। | 13-200-27a 13-200-27b |
एते चान्ये च बहवो दानेन तपसा च ह। युधिष्ठिर गताः स्वर्गं निवर्तन्ते पुनःपुनः।। | 13-200-28a 13-200-28b |
तेषां प्रतिष्ठिता कीर्तिर्यावत्स्थास्यति मेदिनी। गृहस्थैर्दानतपसा यैर्लोका वै विनिर्जिताः।। | 13-200-29a 13-200-29b |
शिष्टानां चरितं ह्येतत्कीर्तितं मे युधिष्ठिर। दानयज्ञप्रजासर्गैरेते हि दिवमास्थिताः।। | 13-200-30a 13-200-30b |
दत्त्वा तु सततं तेऽस्तु कौरवाणां धुरन्धर। दानयज्ञक्रियायुक्ता बुद्धिर्धर्मोपचायिनी।। | 13-200-31a 13-200-31b |
यत्र ते नृपशार्दूल सन्देहो वै भविष्यति। श्वः प्रभाते हि वक्ष्यामि सन्ध्या हि समुपस्थिता।। | 13-200-32a 13-200-32b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि द्विशततमोऽध्यायः।। 200 ।। |
13-200-1 दानतपसोर्मध्ये किं श्रेष्ठमिति प्रश्नः। वर्तते स्वर्गे इति शेषः सन्धिरार्षः।। 13-200-9 सावित्रः कर्णः।। 13-200-12 मनसो मनःसङ्कल्पादप्यधिकान्।। 13-200-13 देवराट् भूदेवाराट् वसिष्ठः।। 13-200-15 न्यासं दानरूपेण स्थापनम्।। 13-200-17 अनुज्ञाप्य दत्त्वा।। 13-200-19 दण्डं चोरयोग्यं हस्तच्छेदरूपम्।। 13-200-22 राशयः राशीन्।।
अनुशासनपर्व-199 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-201 |