महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-053
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ऋष्यादीनां वियोनिजत्वेपि तपोविद्यादीनामेव माहात्म्यप्रयोजकत्वे निदर्शनतया तादृशानां सम्भवप्रकारादिकथनम्।। 1 ।।
`युधिष्ठिर उवाच। | 13-53-1x |
वैश्ययोन्यां समुत्पन्नाः शूद्रयोन्यां तथैव च। ब्रह्मर्षय इति प्रोक्ताः पुराणि द्विजसत्तमाः।। | 13-53-1a 13-53-1b |
कथमेतन्महाराज तत्त्वं शंसितुमर्हसि। विरुद्धमिह पश्यामि वियोनौ ब्राह्मणो भवेत्।। | 13-53-2a 13-53-2b |
भीष्म उवाच। | 13-53-3x |
अलं कौतूहलेनात्र निबोध त्वं युधिष्ठिर। शुभेतरं शुभं वाऽपि न चिन्तयितुमर्हसि।। | 13-53-3a 13-53-3b |
ईशन्त्यात्मन इत्येते गतिश्चैषां न सञ्जते। ब्रह्मभूयांस इत्येव ऋषयः श्रुतिचोदिताः।। | 13-53-4a 13-53-4b |
निन्द्या न चैते राजेन्द्र प्रमाणं हि प्रमाणिनाम्। लोकोऽनुमन्यते चैतान्प्रमाणं ह्यत्र वै तपः।। | 13-53-5a 13-53-5b |
एवं महात्मभिस्तात तपोज्ञानसमन्वितैः। प्रवर्तितानि कार्याणि प्रमाणान्येव सत्तम।। | 13-53-6a 13-53-6b |
भार्याश्चतस्रो राजेन्द्र ब्राह्मणस्य स्वधर्मतः। ब्राह्मणी क्षत्रिया वैश्या शूद्रा च भरतर्षभ।। | 13-53-7a 13-53-7b |
राज्ञां तु क्षत्रिया वैश्या शूद्रा च भरतर्षभ। वैश्यस्य वैश्या विहिता शूद्रा च भरतर्षभ।। | 13-53-8a 13-53-8b |
शूद्रस्यैका स्मृता भार्या प्रतिलोमे तु सङ्करः। शूद्रायास्तु नरश्रेष्ठ चत्वारः पतयः स्मृताः।। | 13-53-9a 13-53-9b |
वर्णोत्तमायास्तु पतिः सवर्णस्त्वेक एव सः। द्वौ क्षत्रियाया विहितौ ब्राह्मणः क्षत्रियस्तथा।। | 13-53-10a 13-53-10b |
वैश्यायास्तु नरश्रेष्ठ विहिताः पतयस्त्रयः। सवर्णः क्षत्रियश्चैव ब्राह्मणश्च विशाम्पते।। | 13-53-11a 13-53-11b |
एवंविधिमनुस्मृत्य ततस्ते ऋषिभिः पुरा। उत्पादिता महात्मानः पुत्रा ब्रह्मर्षयः पुरा।। | 13-53-12a 13-53-12b |
पुराणाभ्यामृषिभ्यां तु मित्रेण वरुणेन च। वसिष्ठोऽथ तथाऽगस्त्यो बर्हिषव्यस्तथैव च।। | 13-53-13a 13-53-13b |
कक्षीवानार्ष्टिषेणश्च पुरुषः कष एव च। मामतेयस्य वै पुत्रा गौतमश्चात्मजाः स्मृताः।। | 13-53-14a 13-53-14b |
वत्सप्रियश्च भगवान्स्थूलरश्मिस्तथाक्षणिः। गौतमस्यैव तनया ये दास्यां जनिता ह्युत।। | 13-53-15a 13-53-15b |
कपिञ्जलादो ब्रह्मर्षिश्चाण्डाल्यामुदपद्यत। वैनतेयस्तथा पक्षी तुर्यायां च वसिष्ठतः।। | 13-53-16a 13-53-16b |
प्रसादाच्च वसिष्ठस्य शुक्लाभ्युपगमेन च। अदृश्यन्त्याः पिता वैश्यो नाम्ना चित्रमुखः पुरा। ब्राह्मणत्वमनुप्राप्तो ब्रह्मर्षित्वं च कौरव।। | 13-53-17a 13-53-17b 13-53-17c |
वैश्यश्चित्रमुखः कन्यां वसिष्ठतनयस्य वै। शुभां प्रादाद्यतो जातो ब्रह्मर्षिस्तु पराशरः।। | 13-53-18a 13-53-18b |
तथैव दाशकन्यायां सत्यवत्यां महानृषिः। पराशरात्प्रसूतश्च व्यासो योगमयो मुनिः।। | 13-53-19a 13-53-19b |
विभण्डकस्य मृग्यां च तपोयोगात्मको मुनिः। ऋस्यशृङ्गः समुत्पन्नो ब्रह्मचारी महायशाः।। | 13-53-20a 13-53-20b |
शार्ङ्ग्यां च मन्दपालस्य चत्वारो ब्रह्मवादिनः। जाता ब्रह्मर्षयः पुण्या यैः स्तुतो हव्यवाहनः।। | 13-53-21a 13-53-21b |
द्रोणश्च स्तम्बमित्रश्च सारिसृक्वश्च बुद्धिमान्। जरितारिश्च विख्यातश्चत्वारः सूर्यसन्निभाः।। | 13-53-22a 13-53-22b |
महर्षेः कालवृक्षस्य शकुन्त्यामेव जज्ञिवान्। हिरण्यहस्तो भगवान्महर्षिः काञ्चनप्रभः।। | 13-53-23a 13-53-23b |
पावकात्तात सम्भूता मनसा च महर्षयः। पितामहस्य राजेन्द्र पुरस्त्यपुलहादयः।। | 13-53-24a 13-53-24b |
सावर्ण्यश्चापि राजर्षिः सवर्णायामजायत। मृण्मय्यां भरतश्रेष्ठ आदित्येन विवस्वता।। | 13-53-25a 13-53-25b |
शाण्डिल्यश्चाग्नितो जातः कश्यपस्याग्रजः प्रभुः। शरद्वतः शरस्तम्बात्कृपश्व कृपया सह।। | 13-53-26a 13-53-26b |
पद्माश्च जज्ञे राजेन्द्र सोस्यपस्य महात्मनः। रेणुश्च रेणुका चैव राममाता यशस्विनी।। | 13-53-27a 13-53-27b |
समुनायाः समुद्भूतः सोमकेन महात्मना। अर्कदन्तो महानृषिः प्रथितः पृथिवीतले।। | 13-53-28a 13-53-28b |
अग्नेराहवनीयाच्च द्रुपदस्येन्द्रवर्चसः। धृष्टद्युम्नश्च सम्भूतो वेद्यां कृष्णा च भारत।। | 13-53-29a 13-53-29b |
व्याघ्रयोन्यां ततो जाता वसिष्ठस्य महात्मनः। एकोनविंशतिः पुत्राः ख्याता व्याघ्रपदादयः।। | 13-53-30a 13-53-30b |
मन्धश्च बादलोमस्च जावालिश्च महानृषिः। मन्युश्चैवोपमन्युश्च सेतुकर्णस्तथैव च। एते चान्ये च विख्याताः पृथिव्यां गोत्रतां गताः।। | 13-53-31a 13-53-31b 13-53-31c |
विश्वकाशस्य राजर्षेरैक्ष्वाकोस्तु महात्मनः। बालाश्वो नाम पुत्रोऽभूच्छिखां भित्त्वा विनिस्सृतः।। | 13-53-32a 13-53-32b |
मान्धाता चैव राजर्षिर्युवनाश्वेन धीमता। स्वयं धृतोऽथ गर्भेण दिव्यास्त्रबलसंयुतः।। | 13-53-33a 13-53-33b |
गौरिकश्चापि राजर्षिश्चक्रवर्ती महायशाः। बाहुदायां समुत्पन्नो नद्यां राज्ञा सुबाहुना।। | 13-53-34a 13-53-34b |
भूमेश्च पुत्रो नरकः संवर्तश्चैव पुष्कलः। अद्भिश्चैव महातेजा ऋषिर्गार्ग्योऽभ्यजायत।। | 13-53-35a 13-53-35b |
एते चान्ये च बहवो राजन्या ब्राह्मणास्तथा। प्रभावेनाभिसम्भूता महर्षीणां महात्मनाम्। नासाध्य तपसा तेषां विद्ययाऽऽत्मगुणैः परैः।। | 13-53-36a 13-53-36b 13-53-36c |
अस्मिन्नर्थे च मनुना नीतः श्लोको नराधिप। धर्मं प्रणयता राजंस्तं निबोध युधिष्ठिर।। | 13-53-37a 13-53-37b |
ऋषिणां च नदीनां च साधूनां च महात्मनाम्। प्रभवो नाधिगन्तव्यः स्त्रीणां दुश्चरितस्य च।। | 13-53-38a 13-53-38b |
तन्नात्र चिन्ता कर्तव्या महर्षीणां समुद्भवे। यथा सर्वगतो ह्यग्निस्तथा तेजो महात्मसु।।' | 13-53-39a 13-53-39b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि त्रिपञ्चाशोऽध्यायः।। 53 ।। |
13-53-1 एतदादिसप्ताध्याया दाक्षिणात्यकोशेष्वेव दृश्यन्ते।
अनुशासनपर्व-052 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-054 |