महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-091
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च्यवनेन कुशिकम्प्रति स्वकुले जनिष्यत ऋचीकस्यानुभावेन तद्भार्याश्वश्र्वो कुशिकपौत्रस्य गाधेः पुत्रीपत्र्योः क्रमेण पौत्रपुत्रभावेन परशुरामविश्वामित्रयोर्जन्मकथनम्।। 1 ।।
च्यवन उवाच। | 13-91-1x |
अवश्यं कथनीयं मे तवैतन्नरपुङ्गव। यदर्थं त्वाहमुच्छेत्तुं सम्प्राप्तो मनुजाधिप।। | 13-91-1a 13-91-1b |
भूगूणां क्षत्रिया याज्या नित्यमेतज्जनाधिप। ते च भेदं गमिष्यन्ति दैवयुक्तेन हेतुना।। | 13-91-2a 13-91-2b |
क्षत्रियाश्च भृगून्सर्वान्वधिष्यन्ति नराधिप। आगर्भादनुकृन्तन्तो दैतदण्डनिपीडिताः।। | 13-91-3a 13-91-3b |
तत उत्पत्स्यतेऽस्माकं कुले गोत्रविवर्धनः। और्वो नाम महातेजा ज्वलितार्कसमद्युतिः।। | 13-91-4a 13-91-4b |
स त्रैलोक्यविनाशाय कोपाग्निं जनयिष्यति। महीं सपर्वतवनां यः करिष्यति भस्मसात्। | 13-91-5a 13-91-5b |
कञ्चित्कालं तु वह्निं च स एव शमयिष्यति। समुद्रे वडवावक्त्रे प्रक्षिप्य मुनिसत्तमः। | 13-91-6a 13-91-6b |
पुत्रं तस्य महाराज ऋचीकं भृगुनन्दनम्। साक्षात्कृत्स्नो धनुर्वेदः समुपस्थास्यतेऽनघ।। | 13-91-7a 13-91-7b |
क्षत्रियाणामभावाय दैवयुक्तेनु हेतुना। स तु तं प्रतिगृह्यैव पुत्रे संक्रामयिष्यति।। | 13-91-8a 13-91-8b |
जमदग्नौ महाभागे तपसा भावितात्मनि। स चापि भृगुशार्दूलस्तं वेदं धारयिष्यति।। | 13-91-9a 13-91-9b |
कुलात्तु तव धर्मात्मन्कन्यां सोऽधिगमिष्यति। उद्भावनार्थं भवतो वंशस्य भरतर्षभ।। | 13-91-10a 13-91-10b |
`क्षत्रहन्ता भवेद्धिंस्र इति दैवं सनातनम्। नारायणमुपास्यास्य वरात्तं पुत्रमृच्छति।।' | 13-91-11a 13-91-11b |
गाधेर्दुहितरं प्राप्यि पौत्रीं तव महातपाः। ब्राह्मणं क्षत्रधर्माणं पुत्रमुत्पादयिष्यति।। | 13-91-12a 13-91-12b |
क्षत्रियं विप्रधर्माणं बृहस्पतिमिवौजसा। विश्वामित्रं तव कुले गाधेः पुत्रं सुधार्मिकम्। तपसा महता युक्तं प्रदास्यति महाद्युते।। | 13-91-13a 13-91-13b 13-91-13c |
स्त्रियौ तु कारणं तत्र परिवर्ते भविष्यतः। पितामहनियोगाद्वै नान्यथैतद्भविष्यति।। | 13-91-14a 13-91-14b |
तृतीये पुरुषे तुभ्यं ब्राह्मणत्वमुपैष्यति। भविता त्वं च सम्बन्धी भृगूणां भावितात्मनाम्।। | 13-91-15a 13-91-15b |
भीष्म उवाच। | 13-91-16x |
कुशिकस्तु मुनेर्वाक्यं च्यवनस्य महात्मनः। श्रुत्वा हृष्टोऽभवद्राजा वाक्यं चेदमुवाच ह। एवमस्त्विति धर्मात्मा तदा भरतसत्तम।। | 13-91-16a 13-91-16b 13-91-16c |
च्यवनस्तु महातेजाः पुनरेव नराधिपम्। वरार्थं चोदयामास तमुवाच स पार्थिवः।। | 13-91-17a 13-91-17b |
बाढमेवं ग्रहीष्यामि कामांस्त्वत्तो महामुने। ब्रह्मभूतं कुलं मेऽस्तु धर्मे चास्य मनो भवेत्।। | 13-91-18a 13-91-18b |
एवमुक्तस्तथेत्येवं प्रत्युक्त्वा च्यवनो मुनिः। अभ्यनुज्ञाय नृपतिं तीर्थयात्रां ययौ तदा।। | 13-91-19a 13-91-19b |
एतत्ते कथितं सर्वमशेषेण मया नृप। भृगूणां कुशिकानां च अभिसम्बन्धकारणम्।। | 13-91-20a 13-91-20b |
यथोक्तमृषिणा चापि तदा तदभवन्नृप। जन्म रामस्य च मुनेर्विश्वामित्रस्य चैव हि।। | 13-91-21a 13-91-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकनवतितमोऽध्यायः।। 91 ।। |
13-91-15 तुभ्यं तव। ब्राह्मणत्वं कर्तृ।।
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