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महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-202

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  272. 272
  273. 273
  274. 274

युधिष्ठिरेण भीष्मंप्रति सप्रशंसनं पुनर्धर्मकथनप्रार्थना।। 1 ।।

वैशम्पायन* उवाच। 13-202-1x
अनुशास्य शुभैर्वाक्यैर्भीष्ममाह महामतिः।
प्रीत्या पुनः स शुश्रूषुर्वचनं यद्युधिष्ठिरः।।
13-202-1a
13-202-1b
जनमेजय उवाच। 13-202-2x
पितामहो मे विप्रर्षे भीष्मं कालवशं गतम्।
किमपृच्छत्तदा राजा सर्वसामाजिकं हितम्।।
13-202-2a
13-202-2b
उभयोर्लोकयोर्युक्तं पुरुषार्थमनुत्तमम्।
तन्मे वद महाप्राज्ञ श्रोतुं कौतूहलं हि मे।।
13-202-3a
13-202-3b
वैशम्पायन उवाच। 13-202-4x
भूय एव महाराज शृणु धर्मसमुच्चयम्।
यदपृच्छत्तदा राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।।
13-202-4a
13-202-4b
शरतल्पगतं भीष्मं सर्वपार्थिवसन्निधौ।
अजातशत्रुः प्रीतात्मा पुनरेवाभ्यभाषत।।
13-202-5a
13-202-5b
पितामह महाप्राज्ञ सर्वशास्त्रविशारदः।
श्रूयतां मे हि वचनमर्थित्वात्प्रब्रवीम्यहम्।।
13-202-6a
13-202-6b
परावरज्ञो भूतानां दयावान्सर्वजन्तुषु।
आगमैर्बहुभिः प्रीतो भवान्नः परमं कुले।।
13-202-7a
13-202-7b
त्वादृशो दुर्लभो लोके साम्प्रतं ज्ञानसंयुतः।
भवता गुरुणा चैव धन्याश्चैव वयं प्रभो।।
13-202-8a
13-202-8b
अयं स कालः सम्प्राप्तो दुर्लभैर्ज्ञातिबान्धवैः।
शास्ता तु नास्ति नः कश्चित्त्वदृते पुरुषर्षभ।।
13-202-9a
13-202-9b
तस्माद्धर्मार्थसहितमायत्यां च हितोदयम्।
आश्चर्यं परमं वाक्यं श्रोतुमिच्छामि भारत।।
13-202-10a
13-202-10b
अयं नारायणः श्रीमन्सर्वपार्थिवसन्निधौ।
भवन्तं बहुमानाच्च प्रणयाच्चैव सेवते।।
13-202-11a
13-202-11b
अस्यैव तु समक्षं नः पार्तिवानां तथैव च।
इतिवृत्तं पुराणं च श्रोतॄणां परमं हितम्।।
13-202-12a
13-202-12b
यदि तेऽहमनुग्राह्यो भ्रातृभिः सहितोऽनघ।
मत्प्रियार्थं हि कौरव्य स्नेहाद्भाषितुमर्हसि।।
13-202-13a
13-202-13b
वैशम्पायन उवाच। 13-202-14x
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा स्नेहादागतविक्लवः।
प्रविबन्निव तं दृष्ट्वा भीष्मो वचनमब्रवीत्।।
13-202-14a
13-202-14b
शृणु राजन्पुरावृत्तिमितिहासं पुरातनम्।
एतावदुक्त्वा गाङ्गेयः प्रणम्य शिरसा हरिम्।
धर्मराजं समीक्ष्येदं पुनर्वक्तुं समारभत्।।
13-202-15a
13-202-15b
13-202-15c
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि
दानधर्मपर्वणि द्व्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 202 ।।

13-202-1x * एकोत्तरद्विशततमाध्यायात्परं एकपञ्चाशदधिकद्विशततमाद्यायात्पूर्वं मध्ये परिदृश्यमानैकोनपञ्चाशदध्यायप्रतिनिधितया औत्तराहकोशे अष्टावेवाध्यायाः परिदृश्यन्ते। तेचानुपूर्वीभेदेन तदर्थैकदेशप्रतिपादकाएव दृश्यन्ते नतु तदनुक्तार्थप्रतिपादकाः।।

अनुशासनपर्व-201 पुटाग्रे अल्लिखितम्। अनुशासनपर्व-203