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महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-008

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महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-008
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  274. 274

भीष्मेणि युधिष्ठिरंप्रति वीतहव्यस्य ब्राह्मण्यप्राप्तिप्रकारकथनम्।। 1 ।।

युधिष्ठिर उवाच। 13-8-1x
श्रुतं मे महदाख्यानमेतत्कुरुकुलोद्वह।
सुदुष्प्रापं यद्ब्रवीषि ब्राह्मण्यं वदतांवर।।
13-8-1a
13-8-1b
विश्वामिइत्रो महाराज राजा ब्राह्मणतां गतः।
कथितं भवता सर्वं विस्तरेण पितामह।।
13-8-2a
13-8-2b
तच्च राजन्मया सर्वं श्रुतं बुद्धिमतांवर।
आगमो हि परोऽस्माकं त्वत्तः कौरवनन्दन।।
13-8-3a
13-8-3b
वीतहव्यश्च नृपतिः श्रुतो मे विप्रतां गतः।
तदेव तावद्गाङ्गेय श्रोतुमिच्छाम्यहं विभो।।
13-8-4a
13-8-4b
स केन कर्मणा प्राप्तो ब्राह्मण्यं राजसत्तमः।
वरेण तपसा वाऽपि तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।।
13-8-5a
13-8-5b
भीष्म उवाच। 13-8-6x
शृणु राजन्यथा राजा वीतहव्यो महायशाः।
राजर्षिर्दुर्लभं प्राप्तो ब्राह्मण्यं लोकसत्कृतम्।।
13-8-6a
13-8-6b
मनोर्महात्मनस्तात प्रजा धर्मेण शासतः।
बभूव पुत्रो धर्मात्मा शर्यातिरिति विश्रुतः।।
13-8-7a
13-8-7b
तस्यान्ववाये द्वौ राजन्राजानौ सम्बभूवतुः।
हैहयस्तालजङ्घश्च वत्सेषु जयतांवर।।
13-8-8a
13-8-8b
हैहयस्य तु राजेन्द्र दशसु स्त्रीषु भारत।
शतं बभूव पुत्राणां शूराणामनिवर्तिनाम्।
तुल्यरूपप्रभावानां बलिनां युद्धशालिनाम्।।
13-8-9a
13-8-9b
13-8-9c
धनुर्वेदे च वेदे च सर्वत्रैव कृतश्रमाः।। 13-8-10a
काशिष्वपि नृपो राजन्दिवोदासपितामहः।
हर्यश्व इति विख्यातो बभूव जयतांवरः।।
13-8-11a
13-8-11b
स वीतहव्यदायादैरागत्य पुरुषर्षभ।
गङ्गायमुनयोर्मध्ये सङ्ग्रामे विनिपातितः।।
13-8-12a
13-8-12b
तं तु हत्वा नरपतिं हैहयास्ते महारथाः।
प्रतिजग्मुः पुरीं रम्यां वत्सानामकुतोभयाः।।
13-8-13a
13-8-13b
हर्यश्वस्य च दायादः काशिराजोऽभ्यषिच्यत।
सुदेवो देवसंकाशः साक्षाद्धर्म इवापरः।।
13-8-14a
13-8-14b
स पालयामास महीं धर्मात्मा काशिनन्दनः।
तैर्वीतहव्यैरागत्य युधि सर्वैर्विनिर्जितः।।
13-8-15a
13-8-15b
तमथाजौ विनिर्जित्य प्रतिजग्मुर्यथागतम्।
सौदेविस्त्वथ काशीशोदिवोदासोऽभ्यषिच्यत।।
13-8-16a
13-8-16b
दिवोदासस्तु विज्ञाय वीर्य तेषां यतात्मनाम्।
वाराणसीं महातेजा निर्ममे शक्रशासनात्।।
13-8-17a
13-8-17b
विप्रक्षत्रियसम्बाधां वैश्यशूद्रसमाकुलाम्।
नैकद्रव्योच्चयवतीं समृद्धविपणापणाम्।।
13-8-18a
13-8-18b
गङ्गाया उत्तरे कूले वप्रान्ते राजसत्तम्।।
गोमत्या दक्षिणे कूले शक्रस्येवामरावतीम्।
13-8-19a
13-8-19b
तत्र तं राजशार्दूलं निवसन्तं महीपतिम्।
आगत्य हैहया भूयः पर्यधावन्त भारत।।
13-8-20a
13-8-20b
स निष्क्रम्य ददौ युद्धं तेभ्यो राजा महाबलः।
देवासुरसमं घोरं दिवोदासो महाद्युतिः।।
13-8-21a
13-8-21b
स तु युद्धे महाराज दिनानां दशतीर्दश।
हतवाहनभूयिष्ठस्ततो दैन्यमुपागमत्।।
13-8-22a
13-8-22b
हतयोधस्ततो राजन्क्षीणकोशश्चक भूमिपः।
दिवोदासः पुरीं त्यक्त्वा पलायनपरोऽभवत्।।
13-8-23a
13-8-23b
गत्वाऽऽश्रमपदं रम्यं भरद्वाजस्य धीमतः।
जगाम शरणं राजा कृताञ्जलिररिंदम्।।
13-8-24a
13-8-24b
तमुवाच भरद्वाजो ज्येष्ठः पुत्रो बृहस्पतेः।
पुरोधाः शीलसम्पन्नो दिवोदासं महीपतिम्।।
13-8-25a
13-8-25b
किमागमनकृत्यं ते सर्वं प्रबूहि मे नृप।
यत्ते प्रियं तत्करिष्ये न मेऽत्रास्ति विचारणा।।
13-8-26a
13-8-26b
राजोवाच। 13-8-27x
भगवन्वैतहव्यैर्मे युद्धे वंशः प्रणाशितः।
अहमेकः परिद्यूनो भवन्तं शरणं गतः।।
13-8-27a
13-8-27b
शिष्यस्नेहेन भगवंस्त्वं मां रक्षितुमर्हसि।
एकशेषः कृतो वंशो मम तैः पापकर्मभिः।।
13-8-28a
13-8-28b
तमुवाच महाभागो भरद्वाजः प्रतापवान्।
न भेतव्यं न भेतव्यं सौदेव व्येतु ते भयम्।।
13-8-29a
13-8-29b
अहमिष्टिं करिष्यामि पुत्रार्थं ते विशाम्पते।
वीतहव्यसहस्राणि येन त्वं प्रहरिष्यसि।।
13-8-30a
13-8-30b
तत इष्टिं चकारर्षिस्तस्य वै पुत्रकामिकीम्।
अथास्य तनयो जज्ञे दैवोदासः प्रतर्दनः।।
13-8-31a
13-8-31b
स जातमात्रो ववृधे समाः सद्यस्त्रयोदश।
वेदं चापि जगौ कृत्स्नं धनुर्वेदं च भारत।।
13-8-32a
13-8-32b
योगेन च समाविष्टो भरद्वाजेन धीमता।
कृत्स्नं हि तेजो यल्लोके तदेतद्देहमाविशत्।।
13-8-33a
13-8-33b
ततः स कवची धन्वी स्तूयमानः सुरर्षिभिः।
बन्दिभिर्वन्द्यमानश्च बभौ सूर्य इवोदितः।।
13-8-34a
13-8-34b
स रथी बद्धनिस्त्रिंशो बभौ दीप्त इवानलः।
प्रययौ स धनुर्धुन्वन्विवर्षिषुरिवाम्बुदः।।
13-8-35a
13-8-35b
तं दृष्ट्वा परमं हर्षं सुदेवतनयो ययौ।
मेने च मनसा दग्धान्वैतहव्यान्स पार्थिवः।।
13-8-36a
13-8-36b
ततोसौ यौवराज्ये च स्थापयित्वा प्रतर्दनम्।
कृतकृत्यं तदाऽऽत्मानं स राजा प्रत्यपद्यत।।
13-8-37a
13-8-37b
ततस्तु वैतहव्यानां वधाय स महीपतिः।
पुत्रं प्रस्थापयासास प्रतर्दनमरिंदमम्।।
13-8-38a
13-8-38b
सरथः स तु संतीर्य गङ्गामाशु पराक्रमी।
प्रययौ वीतहव्यानां पुरीं परपुरंजयः।।
13-8-39a
13-8-39b
वैतहव्यास्तु संश्रुत्य रथघोषं समुद्धतम्।
निर्ययुर्नगराकारै रथैः पररथारुजैः।।
13-8-40a
13-8-40b
निष्क्रम्य ते नरव्याघ्रा दंशिताश्चित्रयोधिनः।
प्रतर्दनं समाजग्मुः शरवर्षैरुदायुधाः।।
13-8-41a
13-8-41b
शस्त्रैश्च विविधाकारै रथौघैश्च युधिष्ठिर।
अभ्यवर्षन्त राजानं हिमवन्तमिवाम्बुदाः।।
13-8-42a
13-8-42b
अस्त्रैरस्त्राणि संवार्य तेषां राजा प्रतर्दनः।
जघान तान्महातेजा वज्रानलसमैः शरैः।।
13-8-43a
13-8-43b
कृत्तोत्तमाङ्गास्ते राजन्भल्लैः शतसहस्रशः।
अपतन्रुधिरार्द्राङ्गा निकृत्ता इव किंशुकाः।।
13-8-44a
13-8-44b
हतेषु तेषु सर्वेषु वीतहव्यः सुतेष्वथ।
प्राद्रवन्नगरं हित्वा भृगोराश्रममप्युत।।
13-8-45a
13-8-45b
ययौ भृगुं च शरणं वीतहव्यो नराधिपः।
अभयं च ददौ तस्मै वीतहव्याय भार्गवः।
आसनं शिष्यमध्ये च भृगुरन्यत्समादिशत्।।
13-8-46a
13-8-46b
13-8-46c
अथानुपदमेवाशु तत्रागच्छत्प्रतर्दनः।
स प्राप्य चाश्रमपदं दिवोदासात्मजोऽब्रवीत्।।
13-8-47a
13-8-47b
भोभो केऽत्राश्रमे सन्ति भृगोः शिष्या महात्मनः।
द्रष्टुमिच्छे मुनिमहं तस्याचक्षत मामिति।।
13-8-48a
13-8-48b
स तं विदित्वा तु भृगुर्निश्चक्रामाश्रमात्तदा।
पूजयामास च ततो विधिना नृपसत्तमम्।।
13-8-49a
13-8-49b
उवाच चैनं राजेन्द्र किं कार्यं ब्रूहि पार्थिव।
स चोवाच नृपस्तस्मै यदागमनकारणम्।।
13-8-50a
13-8-50b
राजोवाच। 13-8-51x
अयं ब्रह्मन्नितो राजा वीतहव्यो विसर्ज्यताम्।
अस्य पुत्रैर्हि मे कृत्स्नो ब्रह्मन्वंशः प्रणाशितः।।
13-8-51a
13-8-51b
उत्सादितश्च विषयः काशीनां रत्नसञ्चयः।
एतस्य वीर्यदृप्तस्य हतं पुत्रशतं मया।
अस्येदानीं वधादद्य भविष्याम्यनृणः पितुः।।
13-8-52a
13-8-52b
13-8-52c
तमुवाच कृपाविष्टो भृगुर्धर्मभृतांवरः।
नेहास्ति क्षत्रियः कश्चित्सर्वे हीमे द्विजातयः।।
13-8-53a
13-8-53b
एतत्तु वचनं श्रुत्वा भृगोस्तथ्यं प्रतर्दनः।
पादावुपस्पृश्य शनैः प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत्।।
13-8-54a
13-8-54b
एवमप्यस्मि भगवन्कृतकृत्यो न संशयः।
य एष राजा वीर्येण स्वजातिं त्याजितो मया।।
13-8-55a
13-8-55b
अनुजानीहि मां ब्रह्मन्ध्यायस्व च शिवेन माम्।
त्याजितो हि मया जातिमेव राजा भृगूद्वह।।
13-8-56a
13-8-56b
ततस्तेनाभ्यनुज्ञातो ययौ राजा प्रतर्दनः।
यथागतं महाराज मुक्त्वा विषमिवोरगः।।
13-8-57a
13-8-57b
भृगोर्वचनमात्रेण स च ब्रह्मर्षितां गतः।
वीतहव्यो महाराज ब्रह्मवादित्वमेव च।।
13-8-58a
13-8-58b
तस्य गृत्समदः पुत्रो रूपेणेन्द्र इवापरः।
शक्रस्त्वमिति यो दैत्यैर्निगृहीतः किलाभवत्।।
13-8-59a
13-8-59b
ऋग्वेदे वर्तते चाग्र्या श्रुतिर्यस्य महात्मनः।
यत्र गृत्समदो राजन्ब्राह्मणैः स महीयते।।
13-8-60a
13-8-60b
स ब्रह्मचारी विप्रर्षिः श्रीमान्गृत्समदोऽभवत्।
पुत्रो गृत्समदस्यापि विप्रः सावैनसोऽभवत्।।
13-8-61a
13-8-61b
सावैनसस्य पुत्रो वै वितस्त्यस्तस्य चात्मजः।
वितस्त्यस्य सुतस्तस्य शिवस्तश्चात्मजोऽभवत्।।
13-8-62a
13-8-62b
श्रवास्तस्य सुतश्चर्षिः श्रवसश्चाभवत्तमः।
तमसश्च प्रकाशोऽभूत्तनयो द्विजसत्तमः।।
13-8-63a
13-8-63b
प्रकाशस्य च वागिन्द्रो बभूव जयतांवरः।
तस्यात्मजश्च प्रमितिर्वेदवेदाङ्गपारगः।।
13-8-64a
13-8-64b
घृताच्यां तस्य पुत्रस्तु रुरुर्नामोदपद्यत।
प्रमद्वरायां तु रुरोः पुत्रः समुदपद्यत।
शुनको नाम विप्रर्षिर्यस्य पुत्रोऽथ शौनकः।।
13-8-65a
13-8-65b
13-8-65c
एवं विप्रत्वमगमद्वीतहव्यो नराधिपः।
भृगोः प्रसादाद्राजेन्द्र क्षत्रियः क्षत्रियर्षभ।।
13-8-66a
13-8-66b
एष ते कथितो वंशो राजन्गार्त्समदो मया।
विस्तरेण महाराज किमन्यदनुपृच्छसि।।
13-8-67a
13-8-67b
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि
दानधर्मपर्वणि अष्टमोऽध्यायः।। 8 ।।

13-8-7 शय्यातिरिति विश्रुत इति ट.घ.पाठः।।
13-8-10 ते चेति शेषः।।
13-8-12 वीतहव्यदायादैः। हैहयस्यैव नामान्तरं वीतहव्य इति तत्पुत्रैः।।
13-8-13 वत्सानां वत्सवंश्यानां राज्ञाम्।।
13-8-19 वप्रान्ते तटसमीपे।।
13-8-22 दशतीर्दश सहस्रमित्यर्थः।।
13-8-27 परिद्यूनः सर्वतोनिरस्तः।।
13-8-32 सद्यो ववृधे त्रयोदशवार्षिकोऽभूत् सद्यश्च वेदान् जगौ।।
13-8-33 योगेन योगबलेन।।
13-8-48 तस्य तंप्रति मां आगतं आचक्षत कथयत।।
13-8-58 आख्यायिकातात्पर्थमाह भृगोरिति।।
13-8-60 यत्र गार्त्समदं ब्रह्म ब्राह्मणैः समुदाहृतम्। इति ध.पाठः।।
13-8-61 पुत्रो गृत्समदस्यापि सुचेता अभवद् द्विजः।
वर्चाः सुचेतसः पुत्रो विहव्यस्तस्य चात्मजः।।

अनुशासनपर्व-007 पुटाग्रे अल्लिखितम्। अनुशासनपर्व-009