महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-015
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति भगवन्महिमप्रतिपादकव्यासवासुदेवसंवादानुवादः।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-15-1x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। मद्रराजस्य संवादं व्यासस्य च महात्मनः।। | 13-15-1a 13-15-1b |
वैताने कर्मणि तते कुन्तीपुत्र यथा पुरा। उक्तः स भगवान्यज्ञे तथा तत्राशृणोद्भवान्।। | 13-15-2a 13-15-2b |
मद्रराज उवाच। | 13-15-3x |
कानि तीर्थानि भगवन्फलार्थाश्चेह केऽऽश्रमाः। क इज्यते कश्च यज्ञः को यूपः क्रमते च कः।। | 13-15-3a 13-15-3b |
कश्चाध्वरे शस्यते गीतिशब्दैः कश्चाध्वरे गीयते वल्गुभाषैः। को ब्रह्मशब्दैः स्तुतिभिः स्तूयते च कस्येह वै हविरध्वर्यवः कल्पयन्ति।। | 13-15-4a 13-15-4b 13-15-4c 13-15-4d |
वर्णाश्रमे गोफले कश्च सोमे कश्चोंकारः कश्च वेदार्थमार्गः। पृष्टस्तन्मे ब्रूहि सर्वं महर्षे लोकज्येष्ठं कस्य विज्ञानमाहुः।। | 13-15-5a 13-15-5b 13-15-5c 13-15-5d |
द्वैपायन उवाच। | 13-15-6x |
लोकज्येष्ठं यस्य विज्ञानमाहु र्योनिज्येष्ठं यस्य वदन्ति जन्म। पूतात्मानो ब्राह्मणा वेदमुख्या अस्मिन्प्रश्नो दीयतां केशवाय।। | 13-15-6a 13-15-6b 13-15-6c 13-15-6d |
ब्राह्मण उवाच। | 13-15-7x |
बालो जात्या क्षत्रधर्मार्थशीलो जातो देवक्यां शूरपुत्रेण वीर। वेत्तुं वेदानर्हते क्षत्रियो वै दाशार्हाणामुत्तमः पुष्कराक्षः।। | 13-15-7a 13-15-7b 13-15-7c 13-15-7d |
वासुदेव उवाच। | 13-15-8x |
पाराशर्य ब्रूहि यद्ब्राह्मणेभ्यः प्रीतात्मा वै ब्रह्मकल्पः सुमेधाः। पृष्टो यज्ञार्थं पाण्डवस्यातितेजा एतच्छ्रेयस्तस्य लोकस्य चैव।। | 13-15-8a 13-15-8b 13-15-8c 13-15-8d |
व्यास उवाच। | 13-15-9x |
उक्तं वाक्यं यद्भवान्मामवोच- त्प्रश्नं चित्रं नाहमत्रोत्सहेऽद्य। छेत्तुं विस्पष्टं तिष्ठति त्वद्विधे वै लोकज्येष्ठे विश्वरूपे सुनाभे।। | 13-15-9a 13-15-9b 13-15-9c 13-15-9d |
वासुदेव उवाच। | 13-15-10x |
तत्त्वं वाक्यं ब्रूहि यत्त्वं महर्षे यस्मिन्कृष्णः प्रोच्यते वै यथावत्। प्रीतस्तेऽहं ज्ञानशक्त्या यथाव- त्तस्मान्निर्देशे कर्मणां ब्रूहि सिद्धिम्।। | 13-15-10a 13-15-10b 13-15-10c 13-15-10d |
वैशम्पायन उवाच। | 13-15-11x |
उक्तवाक्ये सत्तमे यादवानां कृष्णो व्यासः प्राञ्जलिर्वासुदेवम्। विप्रैः सार्धं पूजयन्देवदेवं कृष्णं विष्णुं वासुदेवं बभाषे।। | 13-15-11a 13-15-11b 13-15-11c 13-15-11d |
व्यास उवाच। | 13-15-12x |
आनन्त्यं ते विश्वकर्मंस्तवैवं रूपं पौराणं शाश्वतं च ध्रुवं च। कस्ते बुद्ध्येद्वेदवादेषु चैत- ल्लोके ह्यस्मिञ्शासकस्त्वं पितेव।। | 13-15-12a 13-15-12b 13-15-12c 13-15-12d |
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