महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-058
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति स्त्रीणामतिक्रमे प्रायश्चित्तादिप्रतिपादकनारदमार्कण्डेयसंवादानुवादः।। 1 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 13-58-1x |
श्रुतं नराणां चापल्यं परस्त्रीषु प्रजायताम्। प्रमदानां तु चापल्ये दोषमिच्छामि वेदितुम्।। | 13-58-1a 13-58-1b |
नारद उवाच। | 13-58-2x |
एकवर्णे विदोषं तु गमनं पूर्वकालिकम्। धाता च समनुज्ञातो विष्णुना तत्तथाऽकरोत्।। | 13-58-2a 13-58-2b |
भगलिङ्गे महाप्राज्ञ पूर्वमेव प्रजापतिः। ससर्ज ताभ्यां संयोगमनुज्ञातश्चकार सः।। | 13-58-3a 13-58-3b |
अथ विष्णुप्रसादेन भगो दत्तवरः किल। तेन चैव प्रसादेन सर्वांल्लोकानुपाश्नुते।। | 13-58-4a 13-58-4b |
तस्मात्तु पुरुषे दोषो ह्यधिको नात्र संशयः। विना गर्भं सवर्णेषु न त्याज्या गमनात्स्त्रियः।। | 13-58-5a 13-58-5b |
प्रायश्चित्तं यथान्यायं दण्डं कुर्यात्स पण्डितः। श्वभिर्वा दंशनं स्नानं सवनत्रितयं निशि।। | 13-58-6a 13-58-6b |
भूमौ च भस्मशयनं दानं भोगविवर्जितम्। दोषगौरवतः कालो द्रव्यगौरवमेव च। मर्यादा स्थापिता पूर्वमिति तीर्थान्तरं गते।। | 13-58-7a 13-58-7b 13-58-7c |
तद्योषितीं तु दीर्घायो नास्ति दोषो व्यतिक्रमे। भगतीर्थान्तरे शुद्धो विष्णोस्तु वचनादिह।। | 13-58-8a 13-58-8b |
रक्ष्याश्चैवान्यसंवादैरन्यगेहाद्विचक्षणैः। आसां शुद्धौ विशेषेण कर्मणां फलमश्नुते।। | 13-58-9a 13-58-9b |
नैता वाच्या न वै वध्या न क्लेश्याः शुभमिच्छता। विष्णुप्रसादादित्येव भगस्तीर्थान्तरं गतः। मासिमासि ऋतुस्तासां दुष्कृतान्यपकर्षति।। | 13-58-10a 13-58-10b 13-58-10c |
स्त्रियस्तोषकरा नॄणां स्त्रियः पुष्टिप्रदाः सदा। पुत्रसेतुप्रतिष्ठाश्च स्त्रियो लोके महाद्युते।। | 13-58-11a 13-58-11b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि अष्टपञ्चाशोऽध्यायः।। 58 ।। |
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