महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-204
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कृष्णेनाश्चर्यकथनं प्रार्थितैर्मुनिगणैर्नारदंप्रति तच्चोदना।। 1 ।।
श्रीभगवानुवाच। | 13-204-1x |
भवतां दर्शनादेव प्रीतिरभ्यधिका मम। भवन्तस्तु तपःसिद्धा भवन्तो दिव्यदर्शनाः।। | 13-204-1a 13-204-1b |
सर्वत्र गतिमन्तश्च ज्ञानविज्ञानभाविताः। गत्यागतिज्ञा लोकानां सर्वे निर्दूतकल्मषाः।। | 13-204-2a 13-204-2b |
तस्माद्भवद्भिर्यत्किंचिदृष्टं वाऽप्यथवा श्रुतम्। आश्चर्यभूतं लोकेषु तद्भवन्तो ब्रुवन्तु मे।। | 13-204-3a 13-204-3b |
युष्माभिः कथितं यत्स्यात्तपसा भावितात्मभिः तस्यादमृतसंकाशं वाङ्मधुश्रवणे स्पृहा।। | 13-204-4a 13-204-4b |
रागद्वेषवियुक्तानां सततं सत्यवादिनाम्। श्रद्धेयं श्रवणीयं च वचनं हि सतां भवेत्।। | 13-204-5a 13-204-5b |
तत्संयोगं हितं मेऽस्तु न वृथा कर्तुमर्हथ। भवतां दर्शनं तस्मात्सफलं तु भवेन्मम।। | 13-204-6a 13-204-6b |
तदहं सज्जनमुखान्निःसृतं जनसंसदि। कथयिष्याम्यहं बुद्ध्या बुद्धिदीपकरं नृणाम्।। | 13-204-7a 13-204-7b |
तदन्ये वर्धयिष्यन्ति पूजयिष्यन्ति चापरे। वात्सल्यविगताश्चान्ये प्रशंसन्ति पुरातनाः।। | 13-204-8a 13-204-8b |
एवं ब्रुवति गोविन्दे श्रवणार्थं महर्षयः। वाग्भिः साञ्जलिमालाभिरिदमूचुर्जनार्दनम्।। | 13-204-9a 13-204-9b |
अयुक्तमस्मानेवं त्वं वाचा वरद भाषितुम्। त्वच्छासनमुखाः सर्वे त्वदधीनपरिश्रमाः।। | 13-204-10a 13-204-10b |
एवं पूजयितुं चास्मान्न चैवार्हसि केशव। त्वत्तस्त्वन्यं न पश्यामो यल्लोके ते न विद्यते। दिवि वा भुवि वा किञ्चित्तत्सर्वं हि त्वया ततम्।। | 13-204-11a 13-204-11b 13-204-11c |
न विद्महे वयं देव कथ्यमानं तवान्तिके। एवमुक्तो हृषीकेशः सस्मितं चेदमब्रवीत्।। | 13-204-12a 13-204-12b |
अहं मानुषयोनिस्थः साम्प्रतं मुनिपुङ्गवाः। तस्मान्मानुषवद्वीर्यं मम जानीत सुव्रताः। भवद्भिः कथ्यमानं च अपूर्वमिव तद्भवेत्।। | 13-204-13a 13-204-13b 13-204-13c |
भीष्म उवाच। | 13-204-14x |
एवं संचोदिताः सर्वे केशवेन महात्मना। ऋषयश्चानुवर्तन्ते वासुदेवस्य शासनम्।। | 13-204-14a 13-204-14b |
ततस्त्वृषिगणाः सर्वे नारदं देवदर्शनम्। अमन्यन्त बुधा बुद्ध्या समर्थं तन्निबोधने।। | 13-204-15a 13-204-15b |
ऋषिरुग्रतपाश्चायं केशवस्य प्रियोऽधिकम्। पुराणज्ञश्च वाग्मी च कारणैस्तं च मेनिरे।। | 13-204-16a 13-204-16b |
सर्वे तदर्हणं कृत्वा नारदं वाक्यमब्रुवन्।। | 13-204-17a |
भवता तीर्थयात्रार्थं चरता हिमवद्गिरौ। दृष्टं वै यत्तदाश्चर्यं श्रोतॄणां परमं प्रियम्।। | 13-204-18a 13-204-18b |
अतस्त्वमविशेषेण हितार्थं सर्वमादितः। प्रियार्थं केशवस्यास्य स भवान्वक्तुमर्हति।। | 13-204-19a 13-204-19b |
तदा संयोजितः सर्वैर्ऋषिभिर्नारदस्तदा। प्रणम्य शिरसा विष्णुं सर्वलोकहिते रतम्। समुद्वीक्ष्य हृषीकेशं वक्तुमेवोपचक्रमे।। | 13-204-20a 13-204-20b 13-204-20c |
ततो नारायणसुहृन्नारदो वदतांवरः। शङ्करस्योमया सार्धं संवादमनुभाषत।। | 13-204-21a 13-204-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि चतुरधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 204 ।। |
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