महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-020
पठन सेटिंग्स
← अनुशासनपर्व-019 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-020 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-021 → |
कश्यपेन स्वभार्ययोः कद्रूविनतयोः क्रमेणि पुत्रसहस्रतद्द्वयलाभरूपवरदानम्।। 1 ।।
कद्र्वा अण्डसहस्रात्सर्पसहस्रविनिर्गमे उत्कण्ठितया विनतया स्वीयाण्डद्वये एकतराण्डविभेदनम्।। 2 ।।
अकालेऽण्डभेदनादसमग्राङ्गतया जातेनारूपेण विनतायै दास्यप्राप्तिरूपशापदानम्।। 3 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-20-1x |
युधिष्ठिर महाबाहो शृणु राजन्यथातथम्। गरुडं पक्षिणां श्रेष्ठं वैनतेयं महाबलम्।। | 13-20-1a 13-20-1b |
तथा च गरुडो राजन्सुपर्णश्च यथाऽभवत्। यथा च भुजगान्हन्ति तथा मे ब्रुवतः शृणु।। | 13-20-2a 13-20-2b |
पुराऽहं तात रामेणि जामदग्न्येन धीमता। कैलासशिखरे रम्ये मृगान्निघ्नन्सहस्रशः।। | 13-20-3a 13-20-3b |
तमहं तात दृष्टैव शस्त्रण्युत्सृज्य सर्वशः। अभिवाद्य पूर्वं रामाय विनयेनोपतस्थिवान्।। | 13-20-4a 13-20-4b |
तमहं कथान्ते वरदं सुपर्णस्य बलौजसी। अपृच्छं स च मां प्रीतः प्रत्युवाच युधिष्ठिर।। | 13-20-5a 13-20-5b |
कद्रूश्च विनता चास्तां प्रजापतिसुते उभे। ते तु धर्मेणोपयेमे मारीचः कश्यपः प्रभुः।। | 13-20-6a 13-20-6b |
प्रादात्ताभ्यां वरं प्रीतो भार्याभ्यां सुमहातपाः।। | 13-20-7a |
तत्र कद्रूर्वरं वव्रे पुत्राणां दशतः शतम्। तुल्यतेजःप्रभावानां सर्वेषां तुल्यजन्मनाम्।। | 13-20-8a 13-20-8b |
विनता तु वव्रे द्वौ पुत्रौ वीरौ भरतसत्तम। कद्रूपुत्रसहस्रेण तुल्यवेगपराक्रमौ।। | 13-20-9a 13-20-9b |
स तु ताभ्यां वरं प्रादात्तथेत्युक्त्वा महातपाः। जनयामास तान्पुत्रां स्ताभ्यामासीद्यथा पुरा।। | 13-20-10a 13-20-10b |
कद्रूः प्रजज्ञे ह्यण्डानां तथैव दशतःशतम्। अण्डे द्वे विनता चैव दर्शनीयतरे शुभे।। | 13-20-11a 13-20-11b |
तानि त्वण्डानि तु तयोः कद्रूविनतयोर्द्वयोः। सोपस्वेदेषु पात्रेषु निदधुः परिचारिणः।। | 13-20-12a 13-20-12b |
निस्सरन्ति तदाऽण्डेभ्यः कद्रूपुत्रा भुजङ्गमाः। पञ्चवर्षशते काले दृष्ट्वाऽमोघबलौजसः।। | 13-20-13a 13-20-13b |
विनता तेषु जातेषु पन्नगेषु महात्मसु। विपुत्रा पुत्रसंतापाद्दण्डमेकं बिभेद ह।। | 13-20-14a 13-20-14b |
किमनेन करिष्येऽहमिति वाक्यमभाषत। नहि पञ्चशते काले पुरा पुत्रौ ददर्श सा।। | 13-20-15a 13-20-15b |
सापश्यदण्डान्निष्क्रान्तं विनापत्रं मनस्विनम्। पूर्वकायोपसम्पन्नं वियुक्तमितरेण ह।। | 13-20-16a 13-20-16b |
दृष्ट्वा तु तं तथारूपमसमग्रशरीरिणम्। पुत्रदुःखान्विताऽशोचत्स च पक्षी तथा गतः।। | 13-20-17a 13-20-17b |
अब्रवीच्च मुदा युक्तः पर्यश्रुनयनस्तदा। मातरं च पलाशी ह हतोऽहमिति चासकृत्।। | 13-20-18a 13-20-18b |
न त्वया काङ्क्षितः कालो यावानेवात्यगात्पुरा। आवां भवाय पुत्रौ ते श्वसनाद्बलवत्तरौ।। | 13-20-19a 13-20-19b |
ईर्ष्याक्रोधाभिभूतत्वाद्योहमेवं कृतस्त्वया। तस्मात्त्वमपि मे मातर्दासीभावं गमिष्यसि।। | 13-20-20a 13-20-20b |
पञ्चवर्षशतानि त्वं स्पर्धसे वै यया सह। दासी तस्या भवित्रीति साश्रुपातमुवाच ह।। | 13-20-21a 13-20-21b |
एष चैव महाभागे बली बलवतांवरः। मोक्षयिष्यति ते मातर्दासीभावान्ममानुजः।।' | 13-20-22a 13-20-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि विंशोऽध्यायः।। 20 ।। |
13-20-3 रामेण सङ्गत इति शेषः।।
अनुशासनपर्व-019 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-021 |