महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-109
दिखावट
← अनुशासनपर्व-108 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-109 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-110 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ब्रह्मणा इन्द्रायोक्तगोविक्रयापहारफलानुवादः।। 1 ।। तथा सुवर्णस्य गोदाने दक्षिणात्वप्रशंसनानुवादः।। 2 ।।
इन्द्र उवाच। | 13-109-1x |
जान्यो गामपहरेद्विक्रीयाच्चार्थकारणात्। एतद्विज्ञातुमिच्छामि कानु तस्य गतिर्भवेत्।। | 13-109-1a 13-109-1b |
पितामह उवाच। | 13-109-2x |
भक्तार्थं विक्रयार्थं वा येऽपहारं हि कुर्वते। दानार्थं ब्राह्मणार्थाय तत्रेदं श्रूयतां फलम्।। | 13-109-2a 13-109-2b |
विक्रयार्थं हि यो हिंस्याद्भक्षयेद्वा निरङ्कुशः। घातयानं हि पुरुषं येऽनुमन्येयुरर्थिनः।। | 13-109-3a 13-109-3b |
घातकः खादको वाऽपि तथा यश्चानुमन्यते। यावन्ति तस्या रोमाणि तावद्वर्षाणि मज्जति।। | 13-109-4a 13-109-4b |
ये दोषा यादृशाश्चैव द्विजयज्ञोपघातके। विक्रये चापहारे च ते दोषा वै स्मृता गवाम्।। | 13-109-5a 13-109-5b |
अपहृत्य तु यो गां वै ब्राह्मणाय प्रयच्छति। यावद्दाने तु यो गां वै ब्राह्मणाय प्रयच्छति। | 13-109-6a 13-109-6b |
सुवर्णं दक्षिणामाहुर्गोप्रदाने महाद्युते। सुवर्णं परमित्युक्तं दक्षिणार्थमसंशयम्।। | 13-109-7a 13-109-7b |
गोप्रदानात्तारयते सप्त पूर्वांस्तथाऽपरान्। सुवर्णं दक्षिणां कृत्वा तावद्द्विगुणमुच्यते।। | 13-109-8a 13-109-8b |
सुवर्णं परमं दानं सुवर्णं दक्षिणा परा। सुवर्णं पावनं शक्र पावनानां परं स्मृतम्।। | 13-109-9a 13-109-9b |
कुलानां पावनं प्राहुर्जातरूपं शतक्रतो। एषा मे दक्षिणा प्रोक्ता समासेन महाद्युते।। | 13-109-10a 13-109-10b |
भीष्म उवाच। | 13-109-11x |
एतत्पितामहेनोक्तमिन्द्राय भरतर्षभ। इन्द्रो दशरथायाह रामायाह पिता तथा।। | 13-109-11a 13-109-11b |
राघवोपि प्रियभ्रात्रे लक्ष्मणाय यशस्विने। ऋषिभ्यो लक्ष्मणेनोक्तमरण्ये वसता प्रभो।। | 13-109-12a 13-109-12b |
पारम्पर्यागतं चेदमृषयः संशितव्रताः। दुर्धरं दारयामासू राजानश्चैव धार्मिकाः।। | 13-109-13a 13-109-13b |
उपाध्यायेन गदितं मम चेदं युधिष्ठिर।। | 13-109-14a |
य इदं ब्राह्मणो नित्यं वदेद्ब्राह्मणसंसदि। यज्ञेषु गोप्रदानेषु द्वयोरपि समागमे।। | 13-109-15a 13-109-15b |
तस्य लोकाः किलाक्षय्या दैवतैः सह नित्यदा। इति ब्रह्मा स भगवानुवाच परमेश्वरः।। | 13-109-16a 13-109-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि नवाधिकशततमोऽध्यायः।। 109 ।। |
13-109-3 विक्रयार्थं यो नियुङ्क्ते इति शेषः।। 13-109-10 सुवर्णं प्राहुरित्यज्ञाजातरूपमिति ध.पाठः।।
अनुशासनपर्व-108 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-110 |