महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-069
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भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रति ब्राह्मणमाहात्म्यप्रतिपादकपृथ्वीवासुदेवसंवादानुवादः।। 1 ।।
भीष्म उवाच। | 13-69-1x |
ब्राह्मणानेव सततं भृशं सम्परिपूजयेत्। एते हि सोमराजान ईश्वरः सुखदुःखयोः।। | 13-69-1a 13-69-1b |
एते भोगैरलङ्कारैरन्यैश्चैव किमिच्छकैः। सदा पूज्या नमस्कारै रक्ष्याश्च पितृवन्नृपैः। ततो राष्ट्राय शान्तिर्हि भूतानामिव वासवात्।। | 13-69-2a 13-69-2b 13-69-2c |
ज्ञानवान्ब्रह्मवर्चस्वी राष्ट्रे वै ब्राह्मणः शुचिः। महारथश्च राजन्य एष्टव्यः शत्रुतापनः।। | 13-69-3a 13-69-3b |
ब्राह्मणं जातिसम्पन्नं धर्मज्ञं संशितव्रतम्। बोजयीत गृहे राजन्न तस्मात्परमस्ति वै।। | 13-69-4a 13-69-4b |
ब्राह्मणेभ्यो हविर्दत्तं प्रतिगृह्णन्ति देवताः। पितरः सर्वभूतानां नैतेभ्यो विद्यते परम्।। | 13-69-5a 13-69-5b |
आदित्यश्चन्द्रमा विष्णुः सङ्करोऽग्निः प्रजापतिः। सर्वे ब्राह्मणमाविश्य सदाऽन्नमुपभुञ्जते।। | 13-69-6a 13-69-6b |
न तस्याश्नन्ति पितरो यस्य विप्रा न भुञ्जते। देवाश्चाप्यस्य नाश्नन्ति पापस्य ब्राह्मणद्विषः।। | 13-69-7a 13-69-7b |
ब्राह्मणेषु तु तुष्टेषु प्रीयन्ते पितरः सदा। तथैव देवता राजन्नात्र कार्या विचारणा।। | 13-69-8a 13-69-8b |
तथैव तेऽपि प्रीयन्ते येषां भवति तद्धविः। न च प्रेत्य विनश्यन्ति गच्छन्ति च परां गतिम्।। | 13-69-9a 13-69-9b |
येनयेनैव प्रीयन्ते पितरो देवतास्तथा।। तेनतेनैव प्रीयन्ते पितरो देवतास्तथा।। | 13-69-10a 13-69-10b |
ब्राह्मणादेव तद्भूतं प्रभवन्ति यतः प्रजाः। यतश्चायं प्रभवति प्रेत्य यत्र च गच्छति।। | 13-69-11a 13-69-11b |
वेदैष मार्गं स्वर्गस्य तथैव नरकस्य च। आगतानागते चोमे ब्राह्मणो द्विपदांवरः।। | 13-69-12a 13-69-12b |
ब्राह्मणो द्विपदां श्रेष्ठः स्वधर्मं चैव वेद यः। ये चैनमनुवर्तन्ते ते न यान्ति पराभवम्। न ते प्रेत्य विनश्यन्ति गच्छन्ति न पराभवम्।। | 13-69-13a 13-69-13b 13-69-13c |
यद्ब्राह्मणमुखात्प्राप्तं प्रतिगृह्णन्ति वै वचः। कृतात्मानो महात्मानस्ते न यान्ति पराभवम्।। | 13-69-14a 13-69-14b |
क्षत्रियाणां प्रतपतां तेजसा च बलेन च। ब्राह्मणेष्वेव शाम्यन्ति तेजांसि च बलानि च।। | 13-69-15a 13-69-15b |
भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। | 13-69-16a 13-69-16b |
चित्रायुधांश्चाप्यजयन्नेते कृष्णाजिनध्वजाः। प्रक्षिप्याथ च कुम्भान्वै पारगामिनमारभेत्।। | 13-69-17a 13-69-17b |
यत्किंचित्कथ्यते लोके श्रूयते पठ्यतेऽपि वा। सर्वं तद्ब्राह्मणेष्वेव गूढोऽग्निरिव दारुषु।। | 13-69-18a 13-69-18b |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरातनम्। संवादं वासुदेवस्य पृथ्व्याश्च भरतर्षभ।। | 13-69-19a 13-69-19b |
वासुदेव उवाच। | 13-69-20x |
मातरं सर्वभूतानां पृच्छे त्वां संशयं शुभे। केनस्वित्कर्मणा पापं व्यपोहति नरो गृही।। ब्राह्मणानुमते तिष्ठेत्पुरुषः शुचिरात्मवान्।। | 13-69-20a 13-69-20b 13-69-28b |
भीष्म उवाच। | 13-69-29x |
इत्येतद्वचनं श्रुत्वा मेदिन्या मधूसूदनः। साधुसाध्विति कौरव्य मेदिनीं प्रत्यपूजयत्।। | 13-69-29a 13-69-29b |
एतां श्रुत्वोपमां पार्थ प्रयतो ब्राह्मणर्षभान्। सततं पूजयेथास्त्वं ततः श्रेयोऽभिपत्स्यसे।। | 13-69-30a 13-69-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनसप्ततितमोऽध्यायः।। 69 ।। |
13-69-1 सोमो राजा येषां ते सोमराजानः।। 13-69-2 प्रश्नपूर्वकं यत्तदिष्टं दीयते तत्किमिच्छकम्।। 13-69-6 चन्द्रमा वायुरापो भूरम्बरं दिशः इति झ.पाठः।। 13-69-9 तेपि दातारोपि। तत् प्रदेयं द्रव्यम्।। 13-69-11 तद्यज्ञादिकम्। भूतमुत्पन्नम्। ब्राह्मणो वेद तद्भूतमिति थ.ध. पाठः।। 13-69-17 कुं पृथिवीं ब्राह्मणाय प्रक्षिप्य दत्त्वा पारगामिनं परलोकहितं कर्म आरभेदाचरेत्। भानू दीप्तिं कुर्वन्नुभयलोके इति शेषः। पुरगामिनमाहरन्निति थ.पाठः।। 13-69-23 अपरे ब्राह्मणं सर्वभूतये इच्छेदित्याहुरिति विपरिणामेनानषङ्गः।। 13-69-24 क्रुष्टः क्रोशति। कर्तरि क्तः।।
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