महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-099
पठन सेटिंग्स
← अनुशासनपर्व-098 | महाभारतम् त्रतयोदशपर्व महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-099 वेदव्यासः |
अनुशासनपर्व-100 → |
भीष्मेण युधिष्ठिरम्प्रत्यश्विन्यादिनक्षत्रयोगेऽन्नदानफलप्रतिपादकनारददेवकीसंवादानुवादः।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 13-99-1x |
श्रुतं मे भवतो वाक्यमन्नदानस्य यो विधिः। नक्षत्रयोगस्येदानीं दानकल्पं ब्रवीहि मे।। | 13-99-1a 13-99-1b |
भीष्म उवाच। | 13-99-2x |
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहासं पुरानम्। देवक्याश्चैव संवादं समर्षेर्नारदस्य च।। | 13-99-2a 13-99-2b |
द्वारकामनुसम्प्राप्तं नारदं देवदर्शनम्। पप्रच्छेदं वचः प्रश्नं देवकी धर्मदर्शिनी।। | 13-99-3a 13-99-3b |
तस्याः सम्पृच्छमानाया देवर्षिर्नारदस्ततः। आचष्ट विधइवत्सर्वं तच्छृणुष्व विशाम्पते।। | 13-99-4a 13-99-4b |
नारद उवाच। | 13-99-5x |
कृत्तिकासु महाभागे पायसेन ससर्पिषा। सन्तर्प्य ब्राह्मणान्साधूँल्लोकानाप्नोत्यनुत्तमान्।। | 13-99-5a 13-99-5b |
रोहिण्यां प्रसृतैर्मार्गैर्मांसैरन्नेन सर्पिषा। पयोऽन्नपानं दातव्यमनृणार्थं द्विजातये।। | 13-99-6a 13-99-6b |
दोग्ध्रीं दत्त्वा सवत्सां तु नक्षत्रे सोमदैवते। गच्छन्ति मानुपाल्लोकात्स्वर्गलोकमनुत्तमम्।। | 13-99-7a 13-99-7b |
आर्द्रायां कृसरं दत्त्वा तिलभिश्रमुपोषितः। नरस्तरति दुर्गाणि क्षुरधारांश्च पर्वतान्।। | 13-99-8a 13-99-8b |
पूपान्पुनर्वसौ दत्त्वा तथैवान्नानि शोभने। यशस्वी रूपसम्पन्नो बह्वन्नो जायते कुले।। | 13-99-9a 13-99-9b |
पुण्येण कनकं दत्त्वा कृतं वाऽकृतमेव च। अनालोकेषु लोकेषु सोमवत्स विराजते।। | 13-99-10a 13-99-10b |
आश्लेषायां तु यो रूप्यमृषभं वा प्रयच्छति। स सर्पभयनिर्मुक्तः सम्भवानधितिष्ठति।। | 13-99-11a 13-99-11b |
मघासु तिलपूर्णानि वर्धमानानि मानवः। प्रदाय पुत्रपशुमानिह प्रेत्य च मोदते।। | 13-99-12a 13-99-12b |
फल्गुनीपूर्वसमये ब्राह्मणानामुपोषितः। भक्ष्यान्फाणितसंयुक्तान्दत्त्वा सौभाग्यमृच्छति।। | 13-99-13a 13-99-13b |
घृतक्षीरसमायुक्तं विधिवत्षष्टिकौदनम्। उत्तराविषये दत्त्वा स्वर्गलोके महीयते।। | 13-99-14a 13-99-14b |
यद्यत्प्रदीयते दानमुत्तराविषये नरैः। महाफलमनन्तं तद्भवतीति विनिश्चयः।। | 13-99-15a 13-99-15b |
हस्ते हस्तिरथं दत्त्वा चतुर्युक्तमुपोषितः। प्राप्नोति परमाँल्लोकान्पुण्यकामसमन्वितान्।। | 13-99-16a 13-99-16b |
चित्रायां वृषभं दत्त्वा पुण्यगन्धांश्च भारत। चरन्त्यप्सरसां लोके रमन्ते नन्दने तथा।। | 13-99-17a 13-99-17b |
स्वात्यामथ धनं दत्त्वा यदिष्टतममात्मनः।i प्राप्नोति लोकान्स शुभानिह चैव महद्यशः।। | 13-99-18a 13-99-18b |
विशाखायामनड्वाहं धेनुं दत्त्वा च दुग्धदाम्। सप्रासङ्गं च शकटं सधान्यं वस्त्रसंयुतम्। | 13-99-19a 13-99-19b |
पितॄन्देवांश्च प्रीणाति प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते। न च दुर्गाण्यवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति।। | 13-99-20a 13-99-20b |
दत्त्वा यथोक्तं विप्रेभ्यो वृत्तिमिष्टां स विन्दति। नरकादींश्च संक्लेशान्नाप्नोतीति विनिश्चयः।। | 13-99-21a 13-99-21b |
अनुराधासु प्रावरं वरान्नं समुपोषितः। दत्त्वा युगशतं चापि नरः स्वर्गे महीयते।। | 13-99-22a 13-99-22b |
कालशाकं तु विप्रेभ्यो दत्त्वा मर्त्यः समूलकम्। ज्येष्ठायामृद्धिमिष्टां वै गतिमिष्टां स गच्छति।। | 13-99-23a 13-99-23b |
मूले मूलफलं दत्त्वा ब्राह्मणेभ्यः समाहितः। पितॄन्प्रीणयते चापि गतिमिष्टां च गच्छति। | 13-99-24a 13-99-24b |
अथ पूर्वास्वषाढासु दधिपात्राण्युपोषितः। कुलवृत्तोपसम्पन्ने ब्राह्मणे वेदपारगे।। | 13-99-25a 13-99-25b |
प्रदाय जायते प्रेत्य कुले सुबहुगोधने। उदमन्थं ससर्पिष्कं प्रभूतमधुफाणितम्।। | 13-99-26a 13-99-26b |
दत्त्वोत्तरास्वषाढासु सर्वकामानवाप्नुयात्। दुग्धं त्वभिजिते योगे दत्त्वा मधुघृतप्लुतम्। धर्मनित्यो मनीषिभ्यः स्वर्गलोके महीयते।। | 13-99-27a 13-99-27b 13-99-27c |
श्रवणे कम्बलं दत्त्वा वस्त्रान्तरितमेव वा। श्वेतेन याति यानेन स्वर्गलोकानसंवृतान्।। | 13-99-28a 13-99-28b |
गोप्रयुक्तं धनिष्ठासु यानं दत्त्वा समाहितः। वस्त्रराशिधनं सद्यः प्रेत्य राज्यं प्रपद्यते।। | 13-99-29a 13-99-29b |
गन्धाञ्शतभिषग्योगे दत्त्वा सागरुचन्दनान्। प्राप्नोत्यप्सरसां सङ्घान्प्रेत्य गन्धांश्च शाश्वतान् | 13-99-30a 13-99-30b |
पूर्वप्रोष्ठपदायोगे राजमाषान्प्रदाय तु। सर्वभक्षफलोपेतः स वै प्रेत्य सुखी भवेत्।। | 13-99-31a 13-99-31b |
औरभ्रमुत्तरायोगे यस्तु मांसं प्रयच्छति। स पितॄन्प्रीणयति वै प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।। | 13-99-32a 13-99-32b |
कांस्योपदोहनां धेनु रेवत्यां यः प्रयच्छति। सा प्रेत्य कामानादाय दातारमुपतिष्ठति।। | 13-99-33a 13-99-33b |
रथमश्वसमायुक्तं दत्त्वाऽश्विन्यां नरोत्तमः। हस्त्यश्वरथसम्पन्ने वर्चस्वी जायते कुले।। | 13-99-34a 13-99-34b |
भरणीषु द्विजातिभ्यस्तिलधेनुं प्रदाय वै। गाः सुप्रभूताः प्राप्नोति नरः प्रेत्य यशस्तथा।। | 13-99-35a 13-99-35b |
भीष्म उवाच। | 13-99-36x |
इत्येष लक्षणोद्देशः प्रोक्तो नक्षत्रयोगतः। देवक्या नारदेनेह सा स्नुषाभ्योऽब्रवीदिदम्।। | 13-99-36a 13-99-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि एकोनशततमोऽध्यायः।। 99।। |
13-99-6 मार्गैर्मृगसम्बन्धिभिः।। 13-99-7 सौम्यनक्षत्रे मृगशिरसि।। 13-99-9 पूपान् पिष्टमयान् घृतपाचितपिण्डान्।। 13-99-10 अनालोकेष आलोकान्तरवर्जितेषु स्वयंप्रकाशेष्वित्यर्थः।। 13-99-13 फाणितं गोरसविकारः।। 13-99-19 प्रासङ्गो धान्यादिपिधानयोग्यं चतुरश्रम्।। 13-99-23 उदमन्धं उदकुम्भयुक्तं सक्तुविकारम्।। 13-99-31 पूर्वप्रोष्टपदायोगे छागमांसमिति थ.पाठः।। 13-99-32 उरभ्रः पशुविशेष अजो वा।।
अनुशासनपर्व-098 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | अनुशासनपर्व-100 |