महाभारतम्-13-अनुशासनपर्व-022
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कद्र्वा स्वपुत्रान्प्रति विनतया सह स्वस्य पणबन्धननिवेदनपूर्वकमुच्चैरश्रवसो वाले स्वाङ्गवेष्टनेन नैल्यसम्पादनचोदना।। 1 ।।
`भीष्म उवाच। | 13-22-1x |
विनता तु तथेत्युक्त्वा कृतसंशयना पणे। कद्रूरपि तथेत्युक्त्वा पुत्रानिदमुवाच ह।। | 13-22-1a 13-22-1b |
मया कृतः पणः पुत्रा मिथो विनतया सह। उच्चैरश्रवसि गान्धर्वे तच्छृणुध्वं भुजङ्गमाः।। | 13-22-2a 13-22-2b |
अब्रवं नैकवर्णं तं सैकवर्णमथाब्रवीत्। जिता दासी भवेत्पुत्राः सा वाऽहं वा न संशयः।। | 13-22-3a 13-22-3b |
एकवर्णश्च वाजी स चन्द्रकोकनदप्रभः। साऽहं दासी भविष्यामि जिता पुत्रा न संशयः।। | 13-22-4a 13-22-4b |
ते यूयमश्वप्रवरमाविशध्वमतन्द्रिताः। सर्वश्वेतं वालधिषु वाला भूत्वाञ्जनप्रभाः।। | 13-22-5a 13-22-5b |
सर्पा ऊचुः। | 13-22-5x |
निकृत्या न जयः श्रेयान्मातः सत्या गिरः शृणु। आयत्यां च तदात्वे च न च धर्मोऽत्र विद्यते।। | 13-22-6a 13-22-6b |
सा त्वं धर्मादपेतं वै कुलस्यैवाहितं तव। निकृत्या विजयं मातर्मा स्म कार्षीः कथञ्चना।। | 13-22-7a 13-22-7b |
यद्यधर्मेण विजयं वयं काङ्क्षामहे क्वचित्। त्वया नाम निवार्याः स्म मा कुरुध्वमिति ध्रुवम्।। | 13-22-8a 13-22-8b |
सा त्वमस्मानपि सतो विपापानृजुबुद्धिनः। कल्मषेणाभिसंयोक्तुं काङ्क्षसे लोभमोहिता।। | 13-22-9a 13-22-9b |
ते वयं त्वां परित्यज्य द्रविष्याम दिशो दश। यत्र वाक्यं न ते मातः पुनः श्रोष्याम ईदृशम्।। | 13-22-10a 13-22-10b |
गुरोरप्यवलिप्तस्य कार्याकार्यमजानतः। उत्पथं प्रतिपन्नस्य परित्यागो विधीयते।। | 13-22-11a 13-22-11b |
कद्रूरुवाच। | 13-22-12x |
शृणोमि विविधा वाचो हेतुमत्यः समीरिताः। वक्रमार्गनिवृत्त्यर्थं तदहं वो न रोचये।। | 13-22-12a 13-22-12b |
न च तत्पणितं मन्दाः शक्यं जेतुमतोऽन्वथा। जिते निकृत्या श्रुत्वैतत्क्षेमं कुरुत पुत्रकाः।। | 13-22-13a 13-22-13b |
श्वोऽहं प्रभातसमये जिता धर्मेण पुत्रकाः। शैलूषिणी भविष्यामि विनताया न संशयः।। | 13-22-14a 13-22-14b |
इह चामुत्र चार्थाय पुत्रानिच्छन्ति मातरः। सेयमीहा विपन्ना मे युष्मानासाद्य सङ्गताम्।। | 13-22-15a 13-22-15b |
इह वा तारयेत्पुत्रः प्रेत्य वा तारयेत्पितॄन्। मात्र चित्रं भवेकिञ्चित्पुनातीति च पुत्रकः।। | 13-22-16a 13-22-16b |
ते यूयं तारणार्थाय मम पुत्रा मनोजवाः। आविशध्वं हयश्रेष्ठं वाला भूत्वाऽञ्जनप्रभाः।। | 13-22-17a 13-22-17b |
जानाम्यधर्मं सकलं विजिता विनता भवेत्। निकृत्या दासभावस्तु युष्मानप्यवपीडयेत्।। | 13-22-18a 13-22-18b |
निकृत्या विजयो वेति दासत्वं वा पराभवे। उभयं निश्चयं कृत्वा जयो वै धार्मिको वरः।। | 13-22-19a 13-22-19b |
यद्यप्यधर्मो विजयो युष्मानेव स्पृशेत्पुनः। गुरोर्वचनमास्थाय धर्मो वा सम्भविष्यति'।। | 13-22-20a 13-22-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अनुशासनपर्वणि दानधर्मपर्वणि द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।। |
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