महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-195
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धृतराष्ट्रेण सञ्जयम्प्रति द्रोणवधश्राविणाश्वत्थाम्ना किमुक्तमिति प्रश्नः।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-195-1x |
अधर्मेण हतं श्रुत्वा धृष्टद्युम्नेन सञ्जय। ब्राह्मणं पितरं वृद्धमश्वत्थामा किमब्रवीत्।। | 5-195-1a 5-195-1b |
मानवं वारुणाग्नेयं ब्राह्ममस्त्रं च वीर्यवान्। ऐन्द्रं नारायणं चैव यस्मिन्नित्यं प्रतिष्ठितम्।। | 5-195-2a 5-195-2b |
तमधर्मेण धर्मिष्ठं धृष्टद्युम्नेन संयुगे। श्रुत्वा निहतमाचार्यं सोऽश्वत्थामा किमब्रवीत्।। | 5-195-3a 5-195-3b |
येन रामादवाप्येह धनुर्वेदं महात्मना। प्रोक्तान्यस्त्राणि दिव्यानि पुत्राय गुणकाङ्क्षिणा।। | 5-195-4a 5-195-4b |
एकमेव हि लोकेऽस्मिन्नात्मतो गुणवत्तरम्। इच्छन्ति पुरुषाः पुत्रं लोके नान्यं कथञ्चन।। | 5-195-5a 5-195-5b |
आचार्याणां भवन्त्येव रहस्यानि महात्मनाम्। तानि पुत्राय वा दद्युः शिष्यायानुगताय वा।। | 5-195-6a 5-195-6b |
स शिष्यः प्राप्य तत्सर्वं सविशेषं च सञ्जय। शूरः शारद्वतीपुत्रः सङ्ख्ये द्रोणादनन्तरः।। | 5-195-7a 5-195-7b |
रामस्य तु समः शस्त्रे पुरन्दरसमो युधि। कार्तवीर्यसमो वीर्ये बृहस्पतिसमो मतौ ।। | 5-195-8a 5-195-8b |
महीधरसमः स्थैर्ये तेजसाऽग्निसमो युवा। समुद्र इव गाम्भीर्ये क्रोधे चाशीविषोपमः।। | 5-195-9a 5-195-9b |
स रथी प्रथमो लोके दृढधन्वा जितक्लमः। शीघ्रोऽनिल इवाक्रन्दे चरन्क्रुद्ध इवान्तकः।। | 5-195-10a 5-195-10b |
अस्यता येन सङ्ग्रामे धरण्यभिनिपीडिता। `मेघस्तनितनिर्घोषं कम्पते भयविह्वलाः'। यो न व्यथति सङ्ग्रमे वीरः सत्यपराक्रमः।। | 5-195-11a 5-195-11b 5-195-11c |
वेदस्नातो व्रतस्नातो धनुर्वेदे च पारगः। महोदधिरिवाक्षोभ्यो रामो दाशरथिर्यथा।। | 5-195-12a 5-195-12b |
तमधर्मेण धर्मिष्ठं धृष्टद्युम्नेन संयुगे। श्रुत्वा निहतमाचार्यमश्वत्थामा किमब्रवीत्।। | 5-195-13a 5-195-13b |
धृष्टद्युम्नस्य यो मृत्युः सृष्टस्तेन महात्मना। यथा द्रोणस्य पाञ्चाल्यो यज्ञसेनसुतोऽभवत्।। | 5-195-14a 5-195-14b |
तं नृशंसेन पापेन क्रूरेणादीर्घदर्शिना। श्रुत्वा निहतमाचार्यमश्वत्थामा किमब्रवीत्।। | 5-195-15a 5-195-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि नारायणास्त्रमोक्षपर्वणि पञ्चदशदिवसयुद्धे पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 195 ।। |
5-195-4 पुत्राय गुरुकाङ्क्षिणे इति .क.झ.पाठः।। 5-195-195 पञ्चनवत्यधिकशततमोऽध्यायः।।
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