महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-050
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युद्धभूमिवर्णनम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 5-50-1x |
वयं तु प्रवरं हत्वा तेषां तैः शरपीडिताः। निवेशायाभ्युपायामः सायाह्ने रुधिरोक्षिताः।। | 5-50-1a 5-50-1b |
निरीक्षमाणास्तु वयं परे चायोधनं शनैः। अपयाता महाराज ग्लानिं प्राप्ता विचेतसः।। | 5-50-2a 5-50-2b |
ततो निशाया दिवसस्य चाशिवः शिवारुतैः सन्धिरवर्तताद्भुतः। कुशेशयापीडनिभे दिवाकरे विलम्बमानेऽस्तमुपेत्य पर्वतम्।। | 5-50-3a 5-50-3b 5-50-3c 5-50-3d |
वरासिशक्त्यृष्टिवरूथचर्मणां विभूषणानां च समाक्षिपन्प्रभाः। दिवं च भूमिं च समानयन्निव प्रियां तनुं भानुरुपैति पावकम्।। | 5-50-4a 5-50-4b 5-50-4c 5-50-4c |
महाभ्रकूटाचलशृङ्गसन्निभै-- र्गजैरनेकैरिव वज्रपातितैः। सवैजयन्त्यङ्कुशवर्मयन्तृभि-- र्निपातितैर्नष्टगतिश्चिता क्षितिः।। | 5-50-5a 5-50-5b 5-50-5c 5-50-5d |
हतेश्वरैश्चूर्णितचक्रकूबरै-- र्हताश्वसूतैर्विपताककेतुभिः। महारथैर्भूः शुशुभे विचूर्णितैः पुरैरिवामित्रहतैर्नराधिप।। | 5-50-6a 5-50-6b 5-50-6c 5-50-6d |
रथाश्वबृन्दैः सहसादिभिर्हतैः प्रविद्धभाण्डाभरणैः पृथग्विधैः। निरस्तजिह्वादशनान्त्रलोचनै-- र्धरा बभौ घोरविरूपदर्शना।। | 5-50-7a 5-50-7b 5-50-7c 5-50-7d |
प्रविद्धवर्माभणाम्बरायुधा विपन्नहस्त्यश्वरथानुगा नराः। महार्हशय्यास्तरणोचितास्तदा क्षितावनाथा इव शेरते हताः।। | 5-50-8a 5-50-8b 5-50-8c 5-50-8d |
अतीव हृष्टाः श्वशृगालवायसा बकाः सुपर्णाश्च वृकास्तरक्षवः। वयांस्यसृक्पान्यथ रक्षसां गणाः पिशाचसङ्घाश्च सुदारुणा रणे।। | 5-50-9a 5-50-9b 5-50-9c 5-50-9d |
त्वचो विनिर्भिद्य पिबन्वसामसृक् तथैव मज्जाः पिशितानि चाश्नुवन्। वपां विलुम्पन्ति हसन्ति गान्ति च प्रकर्षमाणाः कुणपान्यनेकशः।। | 5-50-10a 5-50-10b 5-50-10c 5-50-10d |
शरीरसङ्घाटवहा ह्यसृग्जला रथोडुपा कुञ्जरशैलसङ्कटा। मनुष्यशीर्षोपलमांसकर्दमा प्रविद्धनानाविधशस्त्रमालिनी।। | 5-50-11a 5-50-11b 5-50-11c 5-50-11d |
भयावहा वैतरणीव दुस्तरा प्रवर्तिता योधवरैस्तदा नदी। उवाह मध्येन रणाजिरे भृशं भयावहा दीनमृतप्रवाहिनी।। | 5-50-12a 5-50-12b 5-50-12c 5-50-12d |
पिबन्ति च स्नान्ति च यत्र दुर्दृशाः पिशाचसङ्घास्तु नदन्ति भैरवाः। सुनन्दिताः प्रणभृतां क्षयंकराः समानभक्षाः श्वसृगालपक्षिणः।। | 5-50-13a 5-50-13b 5-50-13c 5-50-13d |
तथा तदायोधनमुग्रदर्शनं निशामुखे पितृपतिराष्ट्रवर्धनम्। निरीक्षमाणः शनकैर्जहुर्नराः समुत्थिता नृत्तकबन्धसङ्कुलम्।। | 5-50-14a 5-50-14b 5-50-14c 5-50-14d |
अपेतविध्वस्तमहार्हभूषणं निपातितं शक्रसमं महाबलम्। रणेऽभिमन्युं ददृशुस्तदा जना व्यपोढहव्यं सदसीव पावकम्।। | 5-50-15a 5-50-15b 5-50-15c 5-50-15d |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रयोदशदिवसयुद्धावहारे पञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 50 ।। |
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