महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-026
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भगदत्तपराक्रमवर्णनम्।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-26-1x |
तेष्वेवं सन्निवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः। कथं युयुधिरे पार्था मामकाश्च तरस्विनः।। | 5-26-1a 5-26-1b |
किमर्जुनश्चाप्यकरोत्संशप्तकबलं प्रति। संशप्तका वा पार्थस्य किमकुर्वत सञ्जय।। | 5-26-2a 5-26-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-26-3x |
तथा तेषु निवृत्तेषु प्रत्युद्यातेषु भागशः। स्वयमभ्यद्रवद्भीमं नागानीकेन ते सुतः।। | 5-26-3a 5-26-3b |
स नाग इव नागेन गोवृषेणेव गोवृषः। समाहूतः स्वयं राज्ञा नागानीकमुपाद्रवत्।। | 5-26-4a 5-26-4b |
स युद्धकुशलः पार्थो बाहुवीर्येण चान्वितः। अभिनत्कुञ्जरानीकमचिरेणैव मारिष।। | 5-26-5a 5-26-5b |
ते गजा गिरिसङ्काशाः क्षरन्तः सर्वतो मदम्। भीमसेनस्य नाराचैर्विमुखा विमदीकृताः।। | 5-26-6a 5-26-6b |
विधमेदभ्रजालानि यथा वायुः समुद्धतः। व्यधमत्तान्यनीकानि तथैव पवनात्मजः।। | 5-26-7a 5-26-7b |
स तेषु विसृजन्बाणान्भीमो नागेष्वशोभत। भुवनेष्विव सर्वेषु गभस्तीनुदितो रविः।। | 5-26-8a 5-26-8b |
ते भीमबाणाभिहताः संस्यूता विबभुर्गजाः। गभस्तिभिरिवार्कस्य व्योम्नि नानाबलाहकाः।। | 5-26-9a 5-26-9b |
तथा गजानां कदनं कुर्वाणमनिलात्मजम्। क्रुद्धो दुर्योधनोऽभ्येत्य प्रत्यविध्यच्छितैः शरैः।। | 5-26-10a 5-26-10b |
ततः क्षणेन क्षितिपं क्षतजप्रतिमेक्षणः। क्षयं निनीषुर्निशितैर्भीमो विव्याध पत्रिभिः।। | 5-26-11a 5-26-11b |
स शराचितसर्वाङ्गः क्रुद्धो विव्याध पाण्डवम्। नाराचैरर्करश्म्याभैर्भीमसेनं स्मयन्निव।। | 5-26-12a 5-26-12b |
तस्य नागं मणिमयं रत्नचित्रध्वजे स्थितम्। भल्लाभ्यां कार्मुकं चैव क्षिप्रं चिच्छेद पाण्डवः।। | 5-26-13a 5-26-13b |
दुर्योधनं पीड्यमानं दृष्ट्वा भीमेन मारिष। चुक्षोभयिषुरभ्यागादङ्गो मातङ्गमास्थितः।। | 5-26-14a 5-26-14b |
तमापतन्तं नागेन्द्रमम्बुदप्रतिमस्वनम्। कुम्भान्तरे भीमसेनो नाराचैरार्दयद्भृशम्।। | 5-26-15a 5-26-15b |
तस्य कायं विनिर्भिद्य न्यमज्जद्धरणीतले। ततः पपात द्विरदो वज्राहत इवाचलः।। | 5-26-16a 5-26-16b |
तस्वावर्जितनागस्य म्लेच्छस्याधः पतिष्यतः। शिरश्चिच्छेद भल्लेन क्षिप्रकारी वृकोदरः।। | 5-26-17a 5-26-17b |
तस्मिन्निपतिते वीरे सम्प्राद्रवत सा चमूः। सम्भ्रान्ताश्वद्विपरथा पदातीनवमृद्गती।। | 5-26-18a 5-26-18b |
तेष्वनीकेषु भग्नेषु विद्रवत्सु समन्ततः। प्राग्ज्योतिषस्ततो भीमं कुञ्जरेण समाद्रवत्।। | 5-26-19a 5-26-19b |
येन नागेन मघवानजयद्दैत्यदानवान्। तदन्वयेन नागेन भीमसेनमुपाद्रवत्।। | 5-26-20a 5-26-20b |
स नागप्रवरो भीमं सहसा समुपाद्रवत्। श्रवणाभ्यामथो द्वाभ्यां संहतेन करेण च।। | 5-26-21a 5-26-21b |
व्यावृत्तनयनः क्रुद्वः प्रमथन्निव पाण्डवम्। वृकोदररथं साश्वमविशेषमचूर्णयत्।। | 5-26-22a 5-26-22b |
पद्भ्यां भीमोऽप्यथो धावंस्तस्य गात्रेष्वलीयत। जानन्नञ्जलिकावेधं नापाक्रामत पाण्डवः।। | 5-26-23a 5-26-23b |
गात्राभ्यन्तरगो भूत्वा करेणाताडयन्मुहुः। लालयामास तं नागं वधाकाङ्क्षिणमव्ययम्।। | 5-26-24a 5-26-24b |
कुलालचक्रवन्नागस्तदा तूर्णमथाभ्रमत्। नागायुतबलः श्रीमान्कालयानो वृकोदरम्।। | 5-26-25a 5-26-25b |
भीमोऽपि निष्क्रम्य ततः सुप्रतीकाग्रतोऽभवत्। भीमं करेणावनम्य जानुभ्यामभ्यताडयत्।। | 5-26-26a 5-26-26b |
ग्रीवायां वेष्टयित्वैनं स गजो हन्तुमैहत। करवेष्टं भीमसेनो भ्रमं दत्त्वा व्यमोचयत्।। | 5-26-27a 5-26-27b |
पुनर्गात्राणि नागस्य प्रविवेश वृकोदरः। यावत्प्रतिगजायातं स्वबलं प्रत्यवैक्षत। भीमोपि नागगात्रेभ्यो विनिःसृत्यापयाज्जवात्।। | 5-26-28a 5-26-28b 5-26-28c |
ततः सर्वस्य सैन्यस्य नादः समभवन्महान्। अहो धिङ्गिहतो भीमः कुज्जरेणेति मारिष।। | 5-26-29a 5-26-29b |
तेन नागेन सन्त्रस्ता पाण्डवानामनीकिनी। सहसाऽभ्यद्रवद्राजन्यत्र तस्यौ वृकोदरः।। | 5-26-30a 5-26-30b |
ततो युधिष्ठिरो राजा हतं मत्वा वृकोदरम्। भगदत्तं सपाञ्चाल्यः सर्वतः समवारयत्।। | 5-26-31a 5-26-31b |
तं रथं रथिनां श्रेष्ठाः परिवार्य परन्तपाः। अवाकिरञ्शरैस्तीक्ष्णैः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 5-26-32a 5-26-32b |
स विघातं पृषत्कानामङ्कुशेन समाहरन्। क्षणेन पाण्डुपाञ्जालान्व्यधमत्पर्वतेश्वरः।। | 5-26-33a 5-26-33b |
तदद्भुतमपश्याम भगदत्तस्य संयुगे। तथा वृद्धस्य चरितं कुञ्जरेण विशाम्पते।। | 5-26-34a 5-26-34b |
ततो राजा दशार्णानां प्राग्ज्योतिषमुपाद्रवत्। तिर्यग्यातेन नागेन समदेनाशुगामिना।। | 5-26-35a 5-26-35b |
तयोर्युद्धं समभवन्नागयोर्भीमरूपयोः। सपक्षयोः पर्वतयोर्यथा सद्रुमयोः पुरा।। | 5-26-36a 5-26-36b |
प्राग्ज्योतिषपतेर्नागः सन्निवृत्त्यापसृत्य च। पार्श्वे दशार्णाधिपतेर्भित्त्वा नागमपातयत्।। | 5-26-37a 5-26-37b |
तोमरैः सूर्यरश्म्याभैर्भगदत्तोऽथ सप्तभिः। जघान द्विरदस्थं तं शत्रुं प्रचलितासनम्।। | 5-26-38a 5-26-38b |
व्यवच्छिद्य तु राजानं भगदत्तं युधिष्ठिरः। रथानीकेन महता सर्वतः पर्यवारयत्।। | 5-26-39a 5-26-39b |
स कुञ्जरस्थो रथिभिः शुशुभे सर्वतो वृतः। पर्वते वनमध्यस्थो ज्वलन्निव हुताशनः।। | 5-26-40a 5-26-40b |
मण्डलं सर्वतः श्लिष्टं रथिनामुग्रधन्विनाम्। किरतां शरवर्षाणि स नागः पर्यवर्तत।। | 5-26-41a 5-26-41b |
ततः प्राग्ज्योतिषो राजा परिगृह्य महागजम्। प्रेषयामास सहसा युयुधानरथं प्रति।। | 5-26-42a 5-26-42b |
`आपतन्तं च सम्प्रेक्ष्य नागं सात्वतपुङ्गवः। अविध्यत्पञ्चभिर्बाणैः शितैराशीविषोपमैः'।। | 5-26-43a 5-26-43b |
शिनेः पौत्रस्य तु रथं परिगृह्य महाद्विपः। अभिचिक्षेप वेगेन युयुधानस्त्वपाक्रमत्।। | 5-26-44a 5-26-44b |
बृहतः सैन्धवानश्वान्समुत्थाप्यथ सारथिः। तस्थौ सात्यकिमासाद्य सम्प्लुतस्तं रथं प्रति।। | 5-26-45a 5-26-45b |
स तु लब्ध्वान्तरं नागस्त्वरितो रथमण्डलात्। निष्पतन्सततं सर्वान्परिचिक्षेप पार्थिवान्।। | 5-26-46a 5-26-46b |
ते त्वाशुगतिना तेन त्रास्यमाना नरर्षभाः। तमेकं द्विरदं सङ्ख्ये मेनिरे शतशो द्विपान्।। | 5-26-47a 5-26-47b |
ते गजस्थेन काल्यन्ते भगदत्तेन पार्थिवाः। ऐरावतस्थेन यथा देवराजेन दानवाः।। | 5-26-48a 5-26-48b |
तेषां प्रद्रवतां भीमः पाञ्चालानामितस्ततः। गजवाजिकृतः शब्दः सुमहान्समजायत।। | 5-26-49a 5-26-49b |
भगदत्तेन समरे काल्यमानेषु पाण्डुषु। प्राग्ज्योतिषमभिक्रुद्धः पुनर्भीमः समभ्ययात्।। | 5-26-50a 5-26-50b |
तस्याभिद्रवतो वाहान्हस्तमुक्तेन वारिणा। सिक्त्वा व्यत्रासयन्नागस्ते पार्थसहरंस्ततः।। | 5-26-51a 5-26-51b |
ततस्तमभ्ययात्तूर्णं रुचिपर्वा कृतीसुतः। समघ्नञ्छरवर्षेण रथस्योऽन्तकसन्निभः।। | 5-26-52a 5-26-52b |
ततः स रुचिपर्वाणं शरेणानतपर्वणा। सुपर्वा पर्वतपतिर्निन्ये वैवस्वतक्षयम्।। | 5-26-53a 5-26-53b |
तस्मिन्निपतिते वीरे सौभद्रो द्रौपदीसुतः। चेकितानो धृष्टकेतुर्ययुत्सुश्चार्दयन्द्विपम्।। | 5-26-54a 5-26-54b |
त एनं शरधाराभिर्धाराभिरिव तोयदाः। सिषिचुर्भैरवान्नादान्विनदन्तो जिघांसवः।। | 5-26-55a 5-26-55b |
ततः पार्ष्ण्यङ्कुशाङ्गुष्ठैः कृतिना चोदितो द्विपः। प्रसारितकरः प्रायात्स्तब्धकर्णेक्षणो द्रुतम्।। | 5-26-56a 5-26-56b |
सोऽधिष्ठाय पदा वाहान्युयुत्सोः सूतमारुजत्। युयुत्सुस्तु रथाद्राजन्नपाक्रामत्त्वरान्वितः।। | 5-26-57a 5-26-57b |
ततः पाण्डवयोधास्ते नागराजं शरैर्द्रुतम्। सिषिचुर्भैरवान्नादान्विनदन्तो जिघांसवः।। | 5-26-58a 5-26-58b |
पुत्रस्तु तव सम्भ्रान्तः सौभद्रस्याप्लुतो रथम्। स कुञ्जरस्थो विसृजन्निषूनरिषु पार्थिवः। बभौ रश्मीनिवादित्यो भुवनेषु समुत्सृजन्।। | 5-26-59a 5-26-59b 5-26-59c |
तमार्जुनिर्द्वादशभिर्युयुत्सुर्दशभिः शरैः। त्रिभिस्त्रिभिर्द्रौपदेया धृष्टकेतुश्च विव्यधुः।। | 5-26-60a 5-26-60b |
`चेकितानः चतुःषष्ट्या सोत्तरायुधिकं पुनः। प्रत्यविध्यत्ततः सर्वान्भगदत्तस्त्रिभिस्त्रिभिः'।। | 5-26-61a 5-26-61b |
सोऽतियत्नार्पितैर्बाणैराचितो द्विरदो बभौ। संस्यूत इव सूर्यस्य रश्मिभिर्जलदो महान्।। | 5-26-62a 5-26-62b |
नियन्तुः शिल्पयत्नाभ्यां प्रेरितोऽरिशरार्दितः। परिचिक्षेप तान्नागः स रिपून्सव्यदक्षिणम्।। | 5-26-63a 5-26-63b |
गोपाल इव दण्डेन यथा पशुगणान्वने। सङ्कालयति तां सेनां भगदत्तस्तथा मुहुः।। | 5-26-64a 5-26-64b |
क्षिप्रं श्येनाभिप्रन्नानां वायसानामिव स्वनः। बभूव पाण्डवेयानां भृशं विद्रवतां स्वनः।। | 5-26-65a 5-26-65b |
स नागराजः प्रवराङ्कुशाहतः पुरा सपक्षोऽद्रिवरो यथा नृप। भयं तदा रिपुषु समादधद्भृशं वणिग्जनानां क्षुभितो यथाऽर्णवः।। | 5-26-66a 5-26-66b 5-26-66c 5-26-66d |
ततो ध्वनिर्द्विरदरथाश्वपार्थिवै र्भयाद्रवद्भिर्जनितोऽतिभैरवः। क्षितिं वियद् द्यां विदिशो दिशस्तथा समावृणोत्पार्थिवसंयुगे ततः।। | 5-26-67a 5-26-67b 5-26-67c 5-26-67d |
स तेन नागप्रवरेण पार्थिवो भृशं जगाहे द्विषतामनीकिनीम्। पुरा सुगुप्तां विबुधैरिवाहवे विरोचनो देववरूतिनीमिव।। | 5-26-68a 5-26-68b 5-26-68c 5-26-68d |
भृशं ववौ ज्वलनसखो वियद्रजः समावृणोन्मुहुरपि चैव सैनिकान्। तमेकनागं गणशो यथा गजान् समन्ततो द्रुतमथ मेनिरे जनाः।। | 5-26-69a 5-26-69b 5-26-69c 5-26-69d |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि संशप्तकवधपर्वणि द्वादशदिवसयुद्धे षड्विंशोऽध्यायः।। 26 ।। |
5-26-17 आवर्जितः पतनप्रवणो नागो यस्य।। 5-26-21 संहतेन सङ्कुचितेन ।। 5-26-35 तिर्यग्यातेन पार्श्वतोगामिना।। 5-26-39 व्यवच्छिद्य विद्ध्वा।। 5-26-41 पर्यवर्तत भ्रान्तवान्।। 5-26-45 समुत्थाप्य स्थिरीकृत्य।। 5-26-52 सुपर्वा पार्वतीसुतः इति क.ङ.पाठः।। 5-26-53 सुपर्वा शोभनाङ्गसंधिः।। 5-26-67 वियदाकाशम्। द्यां स्वर्गम्।। 5-26-26 षड्विंशोऽध्यायः।।
द्रोणपर्व-025 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-027 |