महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-047
दिखावट
← द्रोणपर्व-046 | महाभारतम् सप्तमपर्व महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-047 वेदव्यासः |
द्रोणपर्व-048 → |
|
अभिमन्युपराक्रमवर्णनम्।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-47-1x |
तथा प्रविष्टं तरुणं सौभद्रमपराजितम्। कुलानुरूपं कुर्वाणं सङ्ग्रामेष्वपराजितम्।। | 5-47-1a 5-47-1b |
आजानेयैः सुबलिभिर्यान्तमश्वैस्त्रिहायनैः। प्लवमानमिवाकाशे के शूराः समवारयन्।। | 5-47-2a 5-47-2b |
सञ्जय उवाच। | 5-47-3x |
अभिमन्युः प्रविश्यैतांस्तावकान्निशितैः शरैः। अकरोत्पार्थिवान्सर्वान्विमुखान्पाण्डुनन्दनः।। | 5-47-3a 5-47-3b |
तं तु द्रोणः कृपः कर्णो द्रौणिश्च सबृहद्बलः। कृतवर्मा च हार्दिक्यः षड्रथाः पर्यवारयन्।। | 5-47-4a 5-47-4b |
दृष्ट्वा तु सैन्धवे भारमतिमात्रं समाहितम्। सैन्यं तव महाराज युधिष्ठिरमुपाद्रवत्।। | 5-47-5a 5-47-5b |
सौभद्रमितरे वीरमभ्यवर्षञ्शराम्बुभिः। तालमात्राणि चापानि विकर्षन्तो महाबलाः।। | 5-47-6a 5-47-6b |
तांस्तु सर्वान्महेष्वासान्सर्वविद्यासु निष्ठितान्। व्यदृष्टम्भयद्रणे बाणैः सौभद्रः परवीरहा।। | 5-47-7a 5-47-7b |
द्रोणं पञ्चाशताविध्यद्विंशत्या च बृहद्बलम्। अशीत्या कृतवर्माणं कृपं षष्ट्या शिलीमुखैः।। | 5-47-8a 5-47-8b |
रुक्मपुङ्खैर्महावेगैराकर्णसमचोदितैः। अविध्यद्दशभिर्बाणैरश्वत्थामानमार्जुनिः।। | 5-47-9a 5-47-9b |
कर्णं च कर्णिना कर्णे पीतेन च शितेन च। फाल्गुनिर्द्विषतां मध्ये विव्याध परमेषुणा।। | 5-47-10a 5-47-10b |
पातयित्वा कृपस्याश्वांस्तथोभौ पार्ष्णिसारथी। अथैनं दशभिर्बाणैः प्रत्यविध्यत्स्तनान्तरे।। | 5-47-11a 5-47-11b |
ततो बृन्दारकं वीरं कुरूणां कीर्तिवर्धनम्। पुत्राणां तव वीराणां पश्यतामवधीद्बली।। | 5-47-12a 5-47-12b |
तं द्रौणिः पञ्चविंशत्या क्षुद्रकाणां समार्पयत्। वरंवरममित्राणामारुजन्तमभीतवत्।। | 5-47-13a 5-47-13b |
स तु बाणैः शितैस्तूर्णं प्रत्यविध्यत मारिष। पश्यतां धार्तराष्ट्राणामश्वत्थामानमार्जुनिः।। | 5-47-14a 5-47-14b |
षष्ट्या शराणां तं द्रौणिस्तिग्मधारैः सुतेजनैः। उग्रैर्नाकम्पयद्विद्ध्वा मैनाकमिव पर्वतम्।। | 5-47-15a 5-47-15b |
स तु द्रौणिं त्रिसप्तत्या हेमपुङ्घैरजिह्मगैः। प्रत्यविध्यन्महातेजा बलवानपकारिणम्।। | 5-47-16a 5-47-16b |
तस्मिन्द्रोणो बाणशतं पुत्रगृद्धी न्यपातयत्। अश्वत्थामा तथाऽष्टौ च परीप्सन्पितरं रणे।। | 5-47-17a 5-47-17b |
कर्णो द्वाविंशतिं भल्लान्कृतवर्मा च विंशतिम्। बृहद्बलस्तु पञ्चाशत्कृपः शारद्वतो दश।। | 5-47-18a 5-47-18b |
तांस्तु प्रत्यवधीत्सर्वान्दशभिर्दशभिः शरैः। तैरर्द्यमानः सौभद्रः सर्वतो निशितैः शरैः।। | 5-47-19a 5-47-19b |
तं कोसलानामधिपः कर्णिनाऽताडयद्धृदि। स तस्याश्वान्ध्वजं चापं सूतं चापातयत्क्षितौ।। | 5-47-20a 5-47-20b |
अथ कोसलराजस्तु विरथः खङ्ग्रचर्मधृत्। इयेष फाल्गुनेः कायाच्छिरो हर्तुं सकुण्डलम्।। | 5-47-21a 5-47-21b |
स कोसलानामधिपं राजपुत्रं बृहद्बलम्। हृदि विव्याध वाणेन स भिन्नहृदयोऽपतत्।। | 5-47-22a 5-47-22b |
बभञ्ज च सहस्राणि दश राज्ञां महात्मनाम्। सृजतामशिवा वाचः खङ्गकार्मुकधारिणाम्।। | 5-47-23a 5-47-23b |
तथा बृहद्बलं हत्वा सौभद्रो व्यचरद्रणे। व्यष्टम्भयन्महेष्वासो योधांस्तव शराम्बुभिः।। | 5-47-24a 5-47-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि त्रोयदशदिवसयुद्धे सप्तचत्वारिंशोऽध्यायः।। 47 ।। |
द्रोणपर्व-046 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | द्रोणपर्व-048 |