महाभारतम्-07-द्रोणपर्व-061
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नारदेन सञ्जयम्प्रति दिलीपप्रभाववर्णनम्।। 1 ।।
नारद उवाच। | 5-61-1x |
दिलीपं चापि राजेन्द्र मृतां सृञ्जय शुश्रुम। यस्य यज्ञशतेष्वासन्प्रयुतायुतशो द्विजाः।। | 5-61-1a 5-61-1b |
तन्त्रज्ञानार्थसम्पन्ना यज्वानः पुत्रपौत्रिणः। `स्वच्छन्दाः पुण्यगन्धाश्च सुभक्षा हेममालिनः। यस्य कर्माणि भूरिणि कथयन्ति मनीषिणः'।। | 5-61-2a 5-61-2b 5-61-2c |
य इमां वसुसम्पूर्णां वसुधां वसुधाधिपः। ईजानो वितते यज्ञे ब्राह्मणेभ्यो ह्यमन्यत।। | 5-61-3a 5-61-3b |
`राजानो वितते यज्ञे उपहारानुपाहरन्'। दिलीपस्य तु यज्ञेषु कृतः पन्था हिरण्मयः। तं धर्म इव कुर्वाणाः सेन्द्रा देवाः समागमन्।। | 5-61-4a 5-61-4b 5-61-4c |
सहस्रं यत्र मातङ्गा अगच्छन्पर्वतोपमाः। सौवर्णं चाभवत्सर्वं सदः परमभास्वरम्।। | 5-61-5a 5-61-5b |
रसानां चाभवन्कुल्या भक्ष्याणां चापि पर्वताः। सहस्रव्यामा नृपते यूपाश्चासन्हिरण्मयाः।। | 5-61-6a 5-61-6b |
चषालप्रचषालौ च यस्य यूपे हिरण्मयौ। नृत्यन्त्यप्सरसो यत्र षट्सहस्राणि सप्त च।। | 5-61-7a 5-61-7b |
यत्र वीणां वादयति प्रीत्या विश्वावसुः स्वयम्। सर्वभूतान्यमन्यन्त मम वादयतीति तम्।। | 5-61-8a 5-61-8b |
रागखाण्डवभोज्यैश्च मत्ताः पतिषु शेरते।। | 5-61-9a |
तदेतदद्भुतं मन्ये अन्यैर्न सदृशं नृपैः। यदप्सु युध्यमानस्य चक्रे न परिपेततुः।। | 5-61-10a 5-61-10b |
राजानं दृढधन्वानं दिलीपं सत्यवादिनम्। येऽपश्यन्भूरिदक्षिण्यं तेऽपि स्वर्गजितो नराः।। | 5-61-11a 5-61-11b |
पञ्च शब्दा न जीर्यन्ति दिलीपस्य निवेशने। स्वाध्यायघोषो ज्याघोषः पिबताश्नीत खादत।। | 5-61-12a 5-61-12b |
स चेन्ममार सृञ्जय चतुर्भद्रतरस्त्वया। पुत्रात्पुण्यतरस्तुभ्यं मा पुत्रमनुतप्यथाः। अयज्वानमदक्षिण्यमभि श्वैत्येत्युदाहरत्।। | 5-61-13a 5-61-13b 5-61-13c |
।। इति श्रीमन्महाभारते द्रोणपर्वणि अभिमन्युवधपर्वणि षोडशराजकीये एकषष्टितमोऽध्यायः।। 61 ।। |
5-61-2 तन्त्र क्रिया।। 5-61-4 पन्था हिरण्मयः। हिरण्मय्यः स्रुचो भवन्तीति विधिमार्गस्तत आरभ्य प्रवृत्त इत्यर्थः।। 5-61-9 रागखण्डवं गुडोदनम्। पर्पटिकेति वैदर्भाः। यद्योषा हेमसच्छन्ना मत्ताः पथिषु शेरते इति ङ.ड.पाठः। पथि सुशेरते इति क. पाठः। रागस्वाण्डवभोज्यैश्च मत्ताः पथिषु शेरते इति घ.पाठः।। 5-61-10 अप्सु न परिपेततुः न ममज्जतुः। यस्याप्ययुध्यमानस्य चक्रे न परिमर्दनम् इति क. पाठः।। 5-61-61 एकषष्टितमोऽध्यायः।।
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